‘आप’ ने ‘भाजपा’ की दौड़ लगवा दी

Edited By ,Updated: 08 Feb, 2015 05:19 AM

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वर्ष 2013 के 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनावों में 28 सीटें जीत कर अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, जबकि भाजपा को 32 और कांग्रेस को 8 व 2 सीटें अन्य को मिली थीं।

वर्ष 2013 के 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनावों में 28 सीटें जीत कर अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, जबकि भाजपा को 32 और कांग्रेस को 8 व 2 सीटें अन्य को मिली थीं। 

बाद में कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसम्बर, 2013 को मुख्यमंत्री बन कर अपने सुधारवादी कार्यक्रम लागू करने शुरू किए परन्तु मात्र 49 दिनों के बाद ही 14 फरवरी, 2014 को लोकपाल विधेयक पारित करने में असफल रहने के मुद्दे पर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। 
 
आज तक के दिल्ली विधानसभा के इतिहास में अरविन्द केजरीवाल की सबसे कम अवधि की सरकार थी जबकि उनसे पहले अक्तूबर-दिसम्बर 1998 में सुषमा स्वराज ने 52 दिनों की सरकार चलाई थी।
 
अरविंद केजरीवाल के त्यागपत्र के बाद दिल्ली में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा और चुनाव आयोग द्वारा 14 जनवरी, 2015 को जारी अधिसूचना के अनुसार 7 फरवरी को पुन: मतदान हुआ। इन चुनावों में भाजपा ने 66, सहयोगी शिअद ने 4, आप तथा कांग्रेस ने 70-70 उम्मीदवार उतारे।
 
दिसम्बर, 2013 में 66 प्रतिशत मतदान हुआ था जो एक रिकार्ड था और इस बार भी लगभग इतने ही प्रतिशत वोट पड़े हैं। ठंड के बावजूद सुबह से ही मतदान केन्द्रों पर लम्बी-लम्बी कतारें लग गई थीं। 
 
हमेशा की तरह इन चुनावों में भी मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए विभिन्न दलों द्वारा अपने पक्ष में मतदान न करने पर ‘देख लेने’ के आरोप दोनों मुख्य दलों द्वारा एक-दूसरे पर लगाए गए। ‘सफेदा बस्ती झुग्गी’ के निवासियों ने तो यह आरोप भी लगाया कि ‘आप’ कार्यकत्र्ताओं ने बस्ती को बम से उड़ा देने की धमकी दी थी। 
 
दिल्ली में 800 झुग्गी-झोंपड़ी क्लस्टर हैं जिनकी 40 लाख आबादी का कुल पडऩे वाले वोटों में 30 प्रतिशत के लगभग हिस्सा है जिस कारण सभी दलों ने इन क्षेत्रों पर अपना पूरा जोर लगाया।
 
प्रचार के शुरूआती दौर से लेकर मतदान के दिन तक मुख्य दलों के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी रहा। इसमें जन और धन बल के जबरदस्त इस्तेमाल के अलावा प्रचार से लेकर बयानबाजियों तक में यह अब तक के सबसे खराब चुनाव के रूप में याद किया जाएगा। इसमें नेताओं ने सारी सीमाएं लांघ कर बदजुबानी की। ‘आप’ को विदेश से मिलने वाले चंदे को लेकर भी भारी विवाद चलता रहा। 
 
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अनुसार, ‘‘अब तक मैंने ‘आप’ जैसी अजीब पार्टी नहीं देखी। इसके नेता कभी भी वह काम नहीं करते जो वे कहते हैं।’’ दूसरी ओर भाजपा के ही शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि  ‘‘केजरीवाल ने हमारी रातों की नींद उड़ा दी है। उनका अभियान काफी हद तक सफल रहा है और वह अच्छे व्यक्ति हैं।’’
 
नि:संदेह इन चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और ‘आप’ के बीच ही  है और मतदान से पूर्व के सर्वेक्षणों में कभी भाजपा और कभी ‘आप’ का पलड़ा भारी बताया जाता रहा है। 15 वर्षों तक दिल्ली में अपनी सरकार चलाने वाली कांग्रेस मुकाबले से बाहर नजर आ रही है और मतदान के दिन भी इसके बहुत कम कार्यकत्र्ता बूथों पर नजर आ रहे थे।
 
बहरहाल, शाम 6.30 बजे इन चुनावों के परिणामों के प्रथम रुझान सामने आने लगे और ‘ए.बी.पी.’ के अनुसार ‘आप’ को 39, भाजपा को 28 व कांग्रेस को 3, अन्य को 0, इंडिया टूडे-सिसरो के अनुसार ‘आप’ को 35-43, भाजपा को 23-29, कांग्रेस को 3-5, अन्य को 2 तथा इंडिया टी.वी. सी-वोटर के अनुसार ‘आप’ को 35-43, भाजपा को 27-35 और कांग्रेस को 3-5 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। एक एग्जिट पोल ने तो ‘आप’ को 53 सीटें मिलने की बात भी कही है। 
 
बहरहाल आधिकारिक परिणामों का पता तो 10 फरवरी को ही चलेगा परन्तु यदि उपरोक्त के अनुसार नतीजा आता है और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बनते हैं तो यह 26 मई 2014 को केन्द्र में भारी सफलता प्राप्त कर सत्ता में आई भाजपा सरकार के लिए पिछले 8 महीनों में लगने वाला सबसे बड़ा झटका होगा।                                     
 

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