Edited By ,Updated: 10 Feb, 2015 02:43 AM
2014 के लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी जद (यू) की भारी पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने त्यागपत्र दे दिया
2014 के लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी जद (यू) की भारी पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने त्यागपत्र दे दिया और तब उनके विश्वस्त जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया।
नीतीश कुमार को अपना राजनीतिक गुरु कहने वाले मांझी ने मुख्यमंत्री बनते ही दलितों के बीच अपना चुनावी आधार बनाने की कोशिश तो की पर दलित उत्पीड़ऩ के मुद्दे पर कुछ नहीं किया तथा बिहार के दबंग सवर्ण नेताओं के संरक्षण में स्वयं को उभारते नजर आए। मांझी ने नीतीश को लोभी कहना शुरू कर दिया व आरोप लगाया कि वह सत्ता के बगैर नहीं रह सकते।
नीतीश कुमार को चिढ़ाने तथा नीचा दिखाने के लिए वह 10 या 20 मिनट में नरेंद्र मोदी और भाजपा से दोस्ती कर लेने की धमकी भी देते रहे जबकि राज्य में होने वाले चुनावों में मात्र 7-8 महीने ही बाकी हैं और मांझी विधानसभा भंग करने के पक्ष में हैं, अत: ये चुनाव जल्दी भी हो सकते हैं।
वह नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि राज्य के छोटे-मोटे भाजपा नेताओं का भी अभिनंदन करने लगे थे जिससे जद (यू) को यह आशंका सताने लगी थी कि कहीं वह चुनाव आते-आते भाजपा के मददगार ही न बन जाएं।
मांझी ने हाल ही में नीतीश समर्थक 2 मंत्रियों की छुट्टी करके जल्दी ही अपने मंत्रिमंडल के विस्तार व 2 उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की घोषणा भी कर दी ताकि नीतीश खेमे में फूट डाली जा सके। यहां तक कि वह नीतीश कुमार पर महादलितों को परेशान करने का आरोप भी लगाने लगे थे और इसी कारण पार्टी नीतीश को फिर से मुख्यमंत्री पद देकर चुनावों से पहले सब कुछ व्यवस्थित करना चाहती है। अत: पार्टी नेतृत्व द्वारा मुख्यमंत्री पद दोबारा नीतीश कुमार के हवाले करने के लिए कहने पर वह पार्टी के नेताओं से ही भिड़ गए। पार्टी में राजनीतिक उठापटक के लिए मांझी को जिम्मेदार ठहराते हुए जद (यू) के महासचिव के.सी. त्यागी को कहना पड़ा कि मांझी द्वारा जद (यू) की डुबोई जा रही नौका को अब नीतीश कुमार ही उबारेंगे।
जद (यू) के अध्यक्ष शरद यादव ने इस संबंध में विचार करने और जद (यू) विधायक दल के नेता का निर्णय करने के लिए 7 फरवरी को पार्टी की बैठक बुलाई जिसे अवैध करार देते हुए मांझी ने 20 फरवरी को सदन का नेता होने के नाते अलग से बैठक बुलाने की घोषणा कर दी। वहीं दलित मुसहर चेतना समिति के बैनर तले कुछ लोगों ने जिनमें से कुछेक को मांझी समर्थक माना जाता है, पार्टी के कार्यालय के बाहर जमा होकर नीतीश के खिलाफ नारेबाजी की तथा उनका पुतला भी जलाया।
बहरहाल 7 फरवरी को मांझी की अनुपस्थिति में जद (यू) की बैठक में नीतीश को फिर से विधायक दल का नेता चुन लिया गया। उधर जीतन राम मांझी ‘नीति आयोग’ की बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली चले गए। वहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य भाजपा नेताओं से भेंट की और त्यागपत्र न देने की घोषणा करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने उन्हें रबड़ स्टाम्प बनाने की कोशिश की ‘‘लेकिन अब मेरा स्वाभिमान जाग उठा है और मांझी की नाव कभी नहीं डूबेगी।’’
पटना लौट कर जब जीतन राम मांझी सोमवार को राज्यपाल से भेंट करने गए हुए थे तो जद (यू) द्वारा जीतन राम मांझी को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा कर दी गई। के.सी. त्यागी के अनुसार ‘‘बिहार के मतदाताओं ने फतवा नीतीश कुमार के पक्ष में दिया था, जीतन राम मांझी के पक्ष में नहीं। श्री मांझी भाजपा के वरिष्ठï नेताओं के साथ मिलीभगत से काम कर रहे थे। नीतीश के विकास कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए श्री मांझी को सत्ता सौंपी गई थी लेकिन उन्होंने जंगल राज स्थापित कर दिया जिससे जनता में त्राहि-त्राहि मची थी।’’
बहरहाल सोमवार को नीतीश कुमार ने राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी से भेंट करके विधानसभा में बÞमत अपने पक्ष में बताते Þए सरकार बनाने का दावा पेश किया। नीतीश खेमे के अनुसार उन्हें 243 सदस्यीय सदन में 100 जद(यू), 24 राजद, 5 कांग्रेस व 1 भाकपा सदस्य का समर्थन प्राप्त है।
वहीं दोबारा राज्यपाल से भेंट करके मांझी ने त्यागपत्र देने से इंकार करते हुए 20-21 फरवरी को सदन पटल पर बहुमत सिद्ध करने का दावा किया है और फिलहाल राज्य की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। जो जीतन राम मांझी यह दावा करते नहीं थकते थे कि उनकी नाव कभी नहीं डूब सकती, उन्हीं की नाव अब मंझदार में फंस गई है।