‘मांझी जब खुद नाव डुबोए’ तो उसे कौन बचाए

Edited By ,Updated: 21 Feb, 2015 04:21 AM

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गत वर्ष लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से भाजपा की विजय के बाद जद (यू) की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 17 मई को त्यागपत्र दे दिया

गत वर्ष लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से भाजपा की विजय के बाद जद (यू) की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 17 मई को त्यागपत्र दे दिया और अपने स्थान पर अपने विश्वासपात्र जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री मनोनीत कर दिया।

इससे जहां नीतीश कुमार जद (यू) पार्टी को एकजुट रखने में सफल हो गए वहीं त्यागपत्र का दाव खेल कर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा और कद दोनों ऊंचे कर लिए। नीतीश का यह पग उनका ‘मास्टर स्ट्रोक’ माना गया था।
 
अपने विश्वासपात्र मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर वह 2015 के चुनावों में अपनी पार्टी का वोट बैंक मजबूत करने व भाजपा के विरुद्ध पुराने ‘जनता दल’ को पुनर्गठित करके एक सशक्त विपक्ष बनाने की कोशिश तेज करना चाहते थे।
 
परंतु मांझी ने मुख्यमंत्री बनते ही पैर फैलाने शुरू कर दिए और सरकार के साथ-साथ पार्टी पर कब्जा करने की कोशिश में भी जुट गए। नीतीश को चिढ़ाने व नीचा दिखाने के लिए 10 या 20 मिनट में ही नरेंद्र मोदी और भाजपा से दोस्ती कर लेने की वह धमकी भी देने लगे।
 
नीतीश खेमे में फूट डालने के लिए मांझी ने नीतीश समर्थक 2 मंत्रियों की छुट्टी भी कर दी। मांझी की ऐसी हरकतें देखते हुए पार्टी नीतीश को पुन: मुख्यमंत्री बनाकर चुनावों से पहले सब कुछ व्यवस्थित करना चाहती थी।
 
अत: पार्टी नेतृत्व द्वारा नीतीश को मुख्यमंत्री पद फिर सौंपने के लिए कहने पर मांझी पार्टी नेताओं से ही भिड़ गए। इस पर विचार करने व जद (यू) विधायक दल के नेता के निर्णय के लिए जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव ने 7 फरवरी को बैठक बुलाई और नीतीश को पुन: नेता चुन कर मांझी को पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने 20 फरवरी को बजट सत्र के पहले ही दिन उन्हें सदन में बहुमत सिद्ध करने का आदेश दे दिया।
 
यह आदेश मिलने के बाद जहां मांझी ने आनन-फानन में अनेक लोक- लुभावन निर्णय लिए, वहीं उच्च न्यायालय ने उनके द्वारा विश्वास मत सिद्ध करने तक इनके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। इसी बीच मांझी कैम्प ने विधायकों की खरीद-फरोख्त भी शुरू कर दी। 
 
कुछ दिनों से चर्चा थी कि भाजपा मांझी सरकार को बचाने का हर संभव प्रयास करेगी और वीरवार को भाजपा ने उन्हें समर्थन देने का फैसला करके अपने सदस्यों को ‘व्हिप’ भी जारी कर दिया। इसी दिन पटना हाईकोर्ट के आदेश ने मांझी को जबरदस्त झटका दे दिया कि जद (यू) के मांझी खेमे के 8 बागी विधायक मतदान नहीं कर सकेंगे जिससे मांझी की मुश्किलें बढ़ गर्ईं। 
 
बहरहाल 20 फरवरी को विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने से पूर्व ही  सुबह 10.15 बजे जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप कर हथियार डाल दिए जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया। 
 
20 फरवरी को ही शाम के समय नीतीश कुमार ने राज्यपाल से भेंट की और उन्होंने नीतीश कुमार को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया और 22 फरवरी को नीतीश कुमार दोबारा बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
 
त्यागपत्र के बाद मांझी बोले, ‘‘जद (यू) के 40 से 51 विधायकों  सहित मेरे पास अब भी 140 से ज्यादा का बहुमत है पर सदन में रक्तपात न हो इसलिए मैंने इस्तीफे का फैसला किया। मैंने राज्यपाल से गुप्त मतदान को कहा था पर वह इस स्थिति में नहीं थे। मुझे समय मिलता तो कई घोटाले एक्सपोज करता।’’
 
दूसरी ओर नीतीश कुमार ने कहा कि ‘‘मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाने का मेरा निर्णय भावुकतापूर्ण और एक भूल थी जिसके लिए मैं आप सबसे माफी मांगता हूं। सत्ता की भूखी भाजपा का गेम प्लान एक्सपोज हो गया है इसके झांसे में मत आइएगा। जोड़तोड़ की कोशिश की गई पर उन्हें सफलता नहीं मिली।’’
 
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश कुमार को अपने साथ जोड़े रखा और भाजपा नीत केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए नीतीश कुमार ने अनेक सुधारवादी पग उठाए थे परंतु वर्तमान भाजपा नेतृत्व ने उन्हें ठुकरा दिया।
 
बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भी नीतीश कुमार ने न सिर्फ प्रदेश को कुशासन से मुक्त करवाया बल्कि महिला सशक्तिकरण, कानून व्यवस्था और शिक्षा, राज्य के बुनियादी ढांचे में सुधार तथा औद्योगिकीकरण आदि की दिशा में भी अनेक पग उठाए परंतु भाजपा से उन्हें आखिर उपेक्षा ही मिली। 
 
मांझी ने अपने राजनीतिक गुरु से ही नहीं बल्कि पार्टी से भी विश्वासघात किया। इस प्रकार उन्होंने अपना राजनीतिक करियर समाप्त कर लिया है। इन हालात में अब मांझी को न ही जद (यू) मुंह लगाएगा और न ही भाजपा।
‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम,
न इधर के रहे न उधर के रहे।’

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