Edited By ,Updated: 17 Mar, 2015 04:20 AM
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को लंबे समय से चरमपंथियों और आतंकवादी समूहों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को लंबे समय से चरमपंथियों और आतंकवादी समूहों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। उत्तरी वजीरिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, पेशावर तथा आस-पास के इलाकों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले लगातार सामने आते रहे हैं।
पाकिस्तान की गुप्तचर एजैंसी आई.एस.आई. का समर्थन प्राप्त ‘तालिबान’ जैसे कट्टरपंथी संगठन हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों, कादियानियों पर हमले, फिरौती के लिए अपहरण, जबरदस्ती धर्मांतरण और उनकी बहू-बेटियों का अपहरण कर मुसलमानों के साथ उनके जब्री विवाह करवा रहे हैं।
इसके अलावा वहां शिया मुसलमानों को भी अपना दुश्मन समझने वाले ये सुन्नी संगठन उन्हें भी लगातार अपना निशाना बना रहे हैं। इसी शृंखला में 12 फरवरी, 2015 को पेशावर के फैशनेबल हायताबादी इलाके में एक शिया मस्जिद पर हमले में 22 लोगों की मृत्यु और 50 अन्य घायल हो गए।
और अब 15 मार्च को लाहौर स्थित सबसे बड़ी ईसाई कालोनी योहानाबाद में पास-पास स्थित 2 गिरजाघरों ‘रोमन कैथोलिक चर्च’ और ‘प्रोटैस्टैंट क्राइस्ट चर्च’ में प्रार्थना के दौरान चरमपंथियों के आत्मघाती हमलों में एक लड़के और एक लड़की सहित 17 लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हो गए।
धमाके इतने जबरदस्त थे कि मृतकों के शरीर के अंग हवा में उड़ते दिखाई दिए। इस घटना में मारे गए एक बालक अभिषेक की मां ने रोते हुए कहा, ‘‘मेरा बेटा तो परीक्षा में अच्छे अंक पाने की प्रार्थना करने गया था, उसे किस कसूर की सजा मिली?’’
इसके बाद क्रुद्ध भीड़ ने 2 संदिग्ध आतंकियों को पहले तो पकड़ कर जम कर पीटा और उसके बाद जिंदा जलाकर मार डाला। इन संदिग्धों ने स्वीकार किया कि वे आत्मघाती हमलावरों के साथी थे और उन्हें इस अभियान पर नजर रखने के लिए भेजा गया था।
उल्लेखनीय है कि योहानाबाद पाकिस्तान का सबसे बड़ा ईसाई रिहायशी इलाका है जहां दर्जनों गिरजाघर हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से अलग हुए संगठन जमात-उल-एहरार ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। इसी ने सितम्बर, 2014 में वाघा सीमा पर आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली थी जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए थे।
इस घटना का एक खेदजनक पहलू यह भी है कि जिस समय आतंकवादी वारदात को अंजाम देने जा रहे थे उस समय घटनास्थल के निकट ही कुछ पुलिस कर्मी टी.वी. पर पाकिस्तान और आयरलैंड के बीच क्रिकेट मैच देख रहे थे। पुलिस कर्मियों की इस हरकत से भीड़ ने अपना आपा खो दिया और उसने सभी पुलिस कर्मियों को बंधक बनाकर जमकर पीट दिया।
18 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में ईसाइयों की संख्या लगभग 2 प्रतिशत है। ईशनिंदा के नाम पर उन पर अत्याचार के कई मामले इससे पहले भी हुए हैं। अप्रैल, 2013 में लाहौर की निकटवर्ती जोसेफ कालोनी में 100 ईसाइयों के मकान जला दिए गए थे और उसी वर्ष सितम्बर में पेशावर के कोहाटी गेट इलाके में ‘आल सेंट्स चर्च’ पर भी 2 आत्मघाती हमले हुए थे और इन हमलों में 82 लोग मारे गए थे।
पाकिस्तान में एक ओर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है तो दूसरी ओर आतंकवादी अपने ही लोगों को भी विस्फोटों से उड़ा रहे हैं। 15 मार्च को लाहौर में ईसाई समुदाय पर हमला करने के साथ ही आतंकियों ने कराची में बम धमाके किए जिनमें 2 लोगों की मृत्यु और अनेक घायल हो गए।
इन दोनों ही घटनाओं से सिद्ध हो गया है कि पाकिस्तान सरकार का अपने ही पाले हुए आतंकवादियों पर कोई नियंत्रण नहीं रहा और वे सरकार की कोई परवाह न करते हुए सभी समुदायों के लोगों को मनमाने तरीके से निशाना बना रहे हैं।
पाकिस्तान सरकार ने पेशावर स्कूल छात्र संहार कांड के बाद फांसी की सजा प्राप्त अभियुक्तों को फांसी देने का रोका हुआ फैसला बहाल कर दिया है परंतु इसका आतंकवादियों पर अधिक असर होता दिखाई नहीं दे रहा। इसी को देखते हुए राजनीतिक प्रेक्षकों ने पाकिस्तान को विश्व भर के सर्वाधिक अशांत देशों में शामिल करते हुए कहा है कि इन देशों की घटनाओं ने इनके शासकों के लिए गंभीर समस्या पैदा कर दी है और वे अपने ही पाले हुए इन संगठनों से निपटने में अब स्वयं को असहाय पा रहे हैं।