लापता बच्चों की राजधानी-दिल्ली

Edited By ,Updated: 31 Mar, 2015 02:07 AM

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कानून व्यवस्था देश के दूसरे भागों से बेहतर होने की आशा की जाती है परंतु वास्तविकता काफी भिन्न है। यहां प्रत्येक 24 घंटों में 20 बच्चे गुम हो रहे हैं

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कानून व्यवस्था देश के दूसरे भागों से बेहतर होने की आशा की जाती है परंतु वास्तविकता काफी भिन्न है। यहां प्रत्येक 24 घंटों में 20 बच्चे गुम हो रहे हैं जिनमें से अधिकांश घर ही नहीं लौटते। 

दिल्ली पुलिस के लम्बे-चौड़े दावों के बावजूद हाल ही के वर्षों में बच्चों के लापता होने के मामलों में खतरनाक हद तक वृद्धि हुई है। इस वर्ष अभी तक कम से कम 1120 बच्चे गुम हो चुके हैं। इनमें लड़कियों की संख्या (621) अधिक है। पिछले वर्ष दिल्ली में 7572 बच्चे गुम हुए थे और उनमें भी 4166 लड़कियां ही थीं।
 
इतने बड़े पैमाने पर बच्चे लापता होने के बावजूद दिल्ली पुलिस इसके पीछे सक्रिय मानव तस्कर गिरोहों का पता लगाने में नाकाम रही है और कुल गुम हुए बच्चों में से मुश्किल से 50 प्रतिशत के लगभग बच्चे ही ढूंढे जा सके हैं। परन्तु सबसे बड़ी समस्या 8 वर्ष से कम आयु के बच्चों की है। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक बच्चे लापता होते हैं जिनमें से अधिकांश बच्चे मानव तस्कर गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं। 
 
जहां अधिकांश लड़कों को ये मानव तस्कर दूसरे राज्यों में ले जाकर बेच देते हैं या उनसे भीख मंगवाने से लेकर बंधुआ मजदूरी तक करवाई जाती है, वहीं लड़कियों को आमतौर पर देह-व्यापार में धकेल दिया जाता है। 
 
इस स्थिति को रोकने के लिए न सिर्फ कानून व्यवस्था को चुस्त करने की आवश्यकता है बल्कि माता-पिता द्वारा भी इस संबंध में विशेष ध्यान अपेक्षित है क्योंकि लापता होने वाले बच्चों में से अधिकांश सही मार्गदर्शन के अभाव, घरेलू तनाव एवं विवादों से परेशान होकर, पढ़ाई तथा स्कूल के भय और अभिभावकों की मारपीट से डर कर घरों से भागते हैं।

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