मोदी सरकार बारे उनके अपने साथी व सहयोगी क्या कहते हैं

Edited By ,Updated: 02 May, 2015 09:16 PM

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अच्छे दिनों के वादे पर सत्ता में आई नरेंद्र मोदी नीत केंद्रीय भाजपा सरकार के विरुद्ध विपक्षी दल तो पहले ही आवाज उठा रहे थे, अब उनका परिवार, उनकी पार्टी के लोग व साथी दल भी कुछ-कुछ आलोचना करने लगे हैं।

अच्छे दिनों के वादे पर सत्ता में आई नरेंद्र मोदी नीत केंद्रीय भाजपा सरकार के विरुद्ध विपक्षी दल तो पहले ही आवाज उठा रहे थे, अब उनका परिवार, उनकी पार्टी के लोग व साथी दल भी कुछ-कुछ आलोचना करने लगे हैं।

सबसे पहले मोदी सरकार के विरुद्ध श्री नरेंद्र मोदी के छोटे भाई ‘प्रह्लाद मोदी’ ने आवाज उठाते हुए 17 मार्च को कहा कि ‘‘यह सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी और न ही जन-समस्याओं का समाधान कर सकी है।’’ 
 
अब जबकि मोदी सरकार की पहली वर्षगांठ निकट आ रही है, श्री अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भाजपा के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक, पूर्व निवेश मंत्री व प्रख्यात पत्रकार अरुण शौरी ने मोदी सरकार के कामकाज पर निराशा व्यक्त करते हुए 1 मई को एक चैनल पर इंटरव्यू में कहा कि :
 
‘‘भाजपा को नरेंद्र मोदी, अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेतली की त्रिमूर्ति चला रही है और भाजपा की विस्तार योजना ने विपक्षी दलों को इतना डरा दिया है कि वे इसके विरुद्ध लामबंद होने लगे हैं।
 
सरकार अपने वादे पूरे नहीं कर सकी। इसमें स्पष्ट सोच का अभाव है। कथनी और करनी में भारी अंतर है। इसे अपनी गलतियां स्वीकार करके उन्हेें दूर करना चाहिए परंतु यहां इसके विपरीत हो रहा है।
 
सरकार में इस बात पर तो बहस हो रही है कि जी.एस.टी. या बीमा बिल आएगा कि नहीं, पर असली सुधारों पर बहस नहीं हो रही। देश में श्रमिक सुधारों की जरूरत है। भू-अधिग्रहण बिल पर साथी दल विश्वास में नहीं लिए गए। इससे असंतोष बढ़ा है। सरकार को यह मामला राज्यों पर छोडऩा चाहिए था। कोई भी सुधार विपक्ष के समर्थन के बिना संभव नहीं। 
 
देश की आर्थिक नीति की तस्वीर साफ नहीं और अर्थव्यवस्था दिशाहीन है। नरेंद्र मोदी एक मुख्यमंत्री की तरह अर्थव्यवस्था पर फोकस कर रहे हैं। 
 
मोदी की विदेश नीति सफल है परंतु इसका फालोअप भी तेजी से होना चाहिए। भारत के लिए चीन बड़ी चुनौती है। पाकिस्तान के प्रति नीति में स्पष्टता का अभाव है तथा उस पर तीखी नजर रखनी चाहिए।
 
सरकार को जागने की जरूरत है। देश में निवेश तेजी नहीं पकड़ रहा। निवेशक अभी भी आशावान हैं लेकिन उद्योग जगत सरकार के ठोस पगों की प्रतीक्षा कर रहा है। विकास के दावे सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए किए जा रहे हैं, इनमें वास्तविकता नहीं। सरकार द्वारा जल्दी ही विकास दर 10 प्रतिशत पर पहुंचाने का दावा भी अतिशयोक्तिपूर्ण है।
 
कराधान क्षेत्र में अनिश्चितता है। सरकार निवेशकों को खुद से दूर कर रही है और कराधान संबंधी निर्णयों से पीछे हट रही है। सरकार ने अल्पसंख्यकों पर हमलों प्रति आंखें मूंद रखी हैं। इसे उनकी शंकाएं दूर करनी चाहिएं। अल्पसंख्यकों का पार्टी से दूर जाना खतरनाक है। ईसाइयों की भाजपा से नाराजगी सही है। नैतिकता के मुद्दों पर मोदी चुप हैं। 
 
अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात के दौरान 10 लाख का सूट पहनना नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी भूल थी। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि महात्मा गांधी के नामलेवा नरेंद्र मोदी ने यह सूट क्यों स्वीकार किया।’’
 
जेतली ही नहीं सुप्रीमकोर्ट के जजों की नियुक्ति हेतु कॉलेजियम प्रणाली की बजाय नया कानून लाने के लिए भी भाजपा सरकार को पार्टी से निष्कासित वरिष्ठ नेता राम जेठमलानी की आलोचना झेलनी पड़ रही है। उन्होंने कहा है कि ‘‘भ्रष्ट सरकार को ही भ्रष्ट न्यायपालिका की जरूरत होती है और वह भ्रष्ट न्यायाधीशों की नियुक्ति को बढ़ावा देती है।’’
 
जहां भाजपा की सहयोगी शिव सेना ने इसके नेताओं पर सत्ता के नशे में चूर होने का आरोप लगाया है वहीं हाल ही में की गई पैट्रोल मूल्य वृद्धि पर इसके सहयोगी दल पी.एम.के. (पट्टाली मकल काची) ने भी सरकार पर जनविरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगा दिया है। मोदी सरकार का एक और सहयोगी शिअद भी अब इसे आंखें दिखाने लग गया है। 
 
सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी नीत भाजपा सरकार की कमजोरियां बताकर अरुण शौरी, प्रह्लाद मोदी,  राम  जेठमलानी और पी.एम.के.  ने सही अर्थों में सच्चे शुभचिंतकों की भूमिका ही निभाई है। अब यह श्री नरेंद्र मोदी पर है कि वे इन आवाजों को किस भावना से लेते हैं और इन्हें सुनते भी हैं या नहीं!
 

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