ऐसे अध्यापकों के हाथ में बच्चों का भविष्य कितना सुरक्षित

Edited By ,Updated: 18 May, 2015 11:45 PM

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हालांकि लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा व चिकित्सा, स्वच्छ पानी और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना सरकारों का दायित्व है परंतु आज हालत यह है

हालांकि लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा व चिकित्सा, स्वच्छ पानी और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना सरकारों का दायित्व है परंतु आज हालत यह है कि न सरकारी स्कूलों में स्तरीय शिक्षा उपलब्ध है और न ही सरकारी अस्पतालों में सस्ती और स्तरीय चिकित्सा। अक्सर सरकारी स्कूलों के अध्यापकों की ‘अयोग्यता’ के ऐसे-ऐसेे उदाहरण सामने आते रहते हैं कि व्यक्ति दांतों तले उंगली दबाने और बरबस उनकी बुद्धि पर तरस खाने के लिए विवश हो जाता है। 

5 सितम्बर, 2013 को पटना सिटी के एक सरकारी स्कूल की अध्यापिकाओं से जब ‘अध्यापक दिवस’ मनाने का कारण पूछा गया तो एक अध्यापिका ने उत्तर दिया कि यह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन पर मनाया जाता है। एक अन्य अध्यापिका ने बिहार के शिक्षा मंत्री का नाम नीतीश कुमार सिंह तथा दूसरी ने भारत के विदेश मंत्री का नाम अटल बिहारी वाजपेयी बताया। 
 
डुमरी (बिहार) के सरकारी स्कूल की अध्यापिका जिला मैजिस्ट्रेट के पास तबादले की अर्जी लेकर गई तो मैजिस्ट्रेट ने उसकी योग्यता परखने के लिए उससे कुछ सवाल पूछे। अध्यापिका ने बिहार के राज्यपाल का नाम स्मृति ईरानी तथा भारत के राष्टपति का नाम प्रतिभा पाटिल बताया। 
 
इसी प्रकार मुजफ्फरपुर में महिला शिल्प कला भवन के अंतर्गत चलाए जा रहे स्कूल में 18 मार्च, 2015 को जिला शिक्षा अधिकारी (डी.ई.ओ.) औचक निरीक्षण में यह जानकर चकित रह गए कि एक अध्यापक ‘भाग्य नारायण’ को तो अपना नाम भी सही लिखना नहीं आता था। 
 
जब डी.ई.ओ. ने अध्यापकों को एक दिन के आकस्मिक अवकाश के  लिए प्रार्थना पत्र लिखने को कहा तो उसमें भी अनेक अशुद्धियां पाई गईं।  एक अध्यापक ने तो ‘आकस्मिक’ शब्द के हिज्जे ही गलत लिखे थे।
 
और अब 15 मई को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में एक स्कूल में ‘रहबर-ए-तालीम’ योजना के अंतर्गत एक अध्यापक इमरान खान की नियुक्ति के विरुद्ध दायर याचिका की सुनवाई में सरकारी शिक्षा की बदहाली का एक और नमूना सामने आया। 
 
बोर्ड की परीक्षा में इमरान को उर्दू में 74, अंग्रेजी में 73 और गणित में 66 प्रतिशत प्राप्त अंकों पर शंका जताते हुए याचिकाकत्र्ता ने आरोप लगाया था कि इमरान को हायर सैकेंडरी शिक्षा बोर्ड दिल्ली और नागालैंड की ग्लोबल ओपन यूनिवसटी द्वारा जारी प्रमाण पत्र मान्यता प्राप्त नहीं है।
 
केस की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मुजफ्फर हुसैन ने इमरान को उर्दू में गाय पर निबंध लिखने को कहा लेकिन उसने 5 मिनट के बाद कोरी उत्तर पुस्तिका लौटा दी और कहा कि उसे बाहर जाकर निबंध लिखने की अनुमति दी जाए। यह अनुमति भी उसे दे दी गई पर इस बार भी वह असफल रहा।
 
फिर उसने कहा कि वह गणित में माहिर है अत: उससे गणित का प्रश्र पूछा जाए। अदालत ने उसे चौथी कक्षा का गणित का एक आसान सा सवाल हल करने को कहा परंतु वह उसे भी हल नहीं कर पाया। 
 
पिछली सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने उसे एक वाक्य का अंग्रेजी से उर्दू और उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए कहा था पर इमरान यह भी नहीं कर पाया था। तब अदालत ने उससे कहा था कि वह अध्यापक के रूप में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ले लेकिन उसने इंकार कर दिया था। 
 
अब न्यायालय ने इमरान का चयन करने वाली समिति का निर्णय रद्द करते हुए  राज्य सरकार को नई समिति गठित करने, गैर मान्यता प्राप्त शिक्षा केंद्रों द्वारा दी गई डिग्रियों की जांच करने, गलत पाए जाने पर डिग्रियां जब्त करने, संबंधित परीक्षा केंद्रों के मालिकों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू करने और ऐसे अध्यापकों को नौकरी से निकालने व इमरान खान के विरुद्ध पुलिस में केस दर्ज करवाने का आदेश भी दिया है।
 
न्यायालय के अनुसार, ‘‘ऐसे अध्यापक स्कूलों में पढ़ाएंगे तो शिक्षा की हालत का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अधिकारी यह बात सुनिश्चित बनाने के लिए जिम्मेदार हैं कि राज्य में शिक्षा का क्षेत्र प्रदूषित न हो।’’ 
 
अच्छी शिक्षा किसी भी देश के विकास के लिए पहली शर्त है लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली जिस तरह के अध्यापक तैयार कर रही है उसे देखते हुए तो ऐसा संभव नहीं लगता। इसके साथ ही भारत में कुकुरमुत्तों की भांति उग रही यूनिवर्सिटियों पर भी रोक लगाने की जरूरत है जो पैसे के लालच में अनाप-शनाप डिग्रियां ‘बेच’ रही हैं।  
 

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