अगली बार बिहार में किस की सरकार

Edited By ,Updated: 14 Jul, 2015 01:21 AM

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वर्तमान बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवम्बर को समाप्त हो जाएगा, अत: नई विधानसभा के गठन हेतु चुनावी जोड़-तोड़ और राजनीतिक गतिविधियां अभी से तेज हो चुकी हैं।

वर्तमान बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवम्बर को समाप्त हो जाएगा, अत: नई विधानसभा के गठन हेतु चुनावी जोड़-तोड़ और राजनीतिक गतिविधियां अभी से तेज हो चुकी हैं।

इससे पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जद (यू), राजद, कांग्रेस और एन.सी.पी. महागठबंधन को झटका देते हुए राज्य विधान परिषद के चुनावों में भाजपा नीत राजग ने भारी जीत दर्ज की।
 
 सांसद-अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा को इस सफलता पर न इतराने की नसीहत देते हुए कहा है कि ‘‘यह सफलता किसी के पक्ष में नहीं है। विधान परिषद चुनावों में आम जनता की भागीदारी नहीं होती इसलिए इन परिणामों को अधिक महत्व देने की आवश्यकता नहीं है।’’ 
 
अब तक भाजपा में मुख्यमंत्री की दौड़ में सुशील मोदी आगे बताए जाते थे परंतु अब पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.पी. ठाकुर, रामविलास पासवान, नंद किशोर यादव और उपेंद्र कुशवाहा के नाम भी चर्चा में आ गए हैं। 
 
शत्रुघ्र सिन्हा ने मुख्यमंत्री के लिए लोजपा नेता रामविलास पासवान के नाम पर भी सोचने की सलाह दे कर पार्टी नेतृत्व को दुविधा में डाल दिया है। सिन्हा का कहना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए पासवान बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं क्योंकि उनके नाम पर सहयोगी दलों में विवाद नहीं है। 
 
दूसरी ओर राजग में अपनी स्थिति से अप्रसन्न जन अधिकार पार्टी के  पप्पू यादव ने मुख्यमंत्री के लिए ङ्क्षहदुस्तानी अवाम मोर्चा (सैकुलर) के संयोजक व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का नाम आगे बढ़ा दिया है।
 
अपनी उपेक्षा से नाराज जीतन राम मांझी ने भी यह कह कर भाजपा के लिए चिंता पैदा कर दी है कि यदि सम्मानजनक सीटें प्राप्त करने की उनकी आशा पूरी नहीं हुई तो वह दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर सकते हैं। इस प्रकार राज्य की राजनीति में नए समीकरण भी उभरने लगे हैं।
 
विधान परिषद चुनावों में महागठबंधन को अपेक्षित सफलता न मिलने पर भाजपा विरोधी खेमे में निराशा भले हो परंतु लालू ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि ‘‘भाजपा के नेता मेंढक की तरह उछल रहे हैं। कमल जिस कीचड़ से निकला है उसे उसी में डाल देंगे।’’
 
कुछ समय पूर्व तक बिहार की राजधानी पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीरों वाले पोस्टर ही दिखाई दे रहे थे, अब नरेंद्र मोदी के चित्रों वाले भाजपा के पोस्टर भी नजर आने लगे हैं। भाजपा का कहना है कि जद (यू) द्वारा धमकियां देने के कारण वे पटना में अपने तीन होॄडग ही लगा पाए हैं।
 
दिल्ली में किरण बेदी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने का दाव उलटा पडऩे के दृष्टिगत इस बार बिहार में भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है और यह चुनाव भी वह नरेंद्र मोदी के विकास के एजैंडे पर ही लड़ेगी।
 
यही कारण है कि चुनाव पोस्टरों पर सिर्फ नरेंद्र मोदी के चित्रों से ही काम चलाया जा रहा है। इससे स्पष्टï है कि यह चुनाव भी मुख्य रूप से नीतीश कुमार बनाम नरेंद्र मोदी के आधार पर ही लड़ा जाएगा। उधर भाजपा को कड़ी चुनौती देने के लिए जद (यू) ने लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने वाले प्रशांत किशोर की सेवाएं इस बार अपनी चुनाव रणनीति निर्धारित करने के लिए ले ली हैं।
 
इस चुनाव में नीतीश और नरेंद्र मोदी में से कोई भी आसान स्थिति में नहीं है तथा दोनों को ही पूरा जोर लगाना होगा क्योंकि दोनों की ही प्रतिष्ठा दाव पर है और जहां तक कांग्रेस का सम्बन्ध है, राÞल गांधी की  ‘सक्रियता’ और जद (यू) से जुडऩे के बावजूद यह हाशिए पर है। 
 
राज्य में चुनाव प्रचार के लिए ऑटो रिक्शाओं के पीछे पोस्टर लगाने के लिए ऑटो रिक्शा हासिल करने को लेकर भी मुकाबलेबाजी जारी है। सभी दलों में प्रचार के लिए ऑटो हथियाने की होड़-सी लग गई है। 
 
ऑॅटो रिक्शाओं पर अभी से सभी ने अपने लोक-लुभावन नारों के पोस्टर लगाने शुरू कर दिए हैं। वहीं ऑटो रिक्शा चालक संघ ने दोनों ही मुख्य दलों पर उनका बनता किराया नहीं देने का आरोप लगाया है। 
 
कुल मिलाकर बिहार के चुनावों ने अभी से दिलचस्प रूप धारण करना शुरू कर दिया है और ऐसा लगता है कि सत्ता के दोनों ही प्रमुख दावेदारों ने इन चुनावों को जीतना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्र मान लिया है, हालांकि अभी चुनावी उठा-पटक कई रूप बदलेगी।
 

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