सतारा, सिरसा और कैथल के सबक

Edited By ,Updated: 18 Jul, 2015 03:22 AM

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जनता हर बार चुनावों में इस आशा से भाग लेती है कि उनके वोट से उन्हें इस बार तो पिछली सरकार से बेहतर काम करने वाली सरकार जरूर मिलेगी।

जनता हर बार चुनावों में इस आशा से भाग लेती है कि उनके वोट से उन्हें इस बार तो पिछली सरकार से बेहतर काम करने वाली सरकार जरूर मिलेगी। यह कुछ ऐसा ही है जैसे वोट एक ‘जादू की छड़ी’ है, जिसे डालते ही उसे तमाम तकलीफों से मुक्ति मिल जाएगी, पर ऐसा होता नहीं है।

सरकार को चुनने में ही नहीं बल्कि अपनी जिम्मेदारी को समझने और अपने लिए काम करने में ही वास्तविक आजादी निहित है। कुछ ऐसी ही जिम्मेदारी का अहसास करते हुए महाराष्ट और हरियाणा के कुछ नागरिकों ने अपनी जिम्मेदारी निभाने के कुछ बेहतरीन उदाहरण पेश किए हैं। 
 
पहला उदाहरण सूखे के शिकार महाराष्ट के सतारा जिले का है जहां के एक किसान ज्योति राम ने भारत सरकार द्वारा नदियों को जोडऩे की योजना से प्रेरित होकर अपने गांव धावादशी में 150 कुओं को एक-दूसरे से जोडऩे के अभियान में प्रशंसनीय सफलता प्राप्त की है। 
 
वर्षों से भारत सरकार द्वारा नदियों को जोडऩे की योजनाओं के बारे में सुनते आ रहे ज्योति राम ने सोचा कि सरकार तो इस दिशा में कुछ कर नहीं रही तो क्यों न मैं कोशिश करूं और अपने गांव के सब कुओं को आपस में जोड़ एक सांझा टैंक बना दिया जाए, जिससे सब पानी ले सकें। 
 
2010 में शुरू किए ज्योति राम के इस अभियान में सतारा के एक दंत चिकित्सक अविनाश पोल भी जुड़ गए। दोनों ने गांव वासियों को इस योजना से जोड़ा और अंतत: 7 लाख रुपए की लागत तथा 11000 फुट लम्बी पाइपलाइन बिछा कर गांव के कुएं जोडऩे में सफलता प्राप्त कर ली। अब गर्मी के मौसम में भी जब अधिकांश कुओं में पानी घट जाता है या वे सूख जाते हैं तब भी इस गांव वालों को पानी की कमी नहीं होती।
 
हरियाणा के सिरसा जिले के 11 गांवों के लोग जल्दी सिरसा पहुंचने के लिए वर्र्षों से घग्गर नदी पर पुल की जरूरत महसूस करते आ रहे थे परन्तु 30 वर्षों से किए जा रहे उनके इस अनुरोध पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। गांववासियों का कहना है कि ‘‘राजनीतिज्ञ और अफसरशाह तो हमें तीन दशक से बेवकूफ बनाते आ रहे हैं।’’ 
 
 मजबूरन इन गांवों के लोगों ने इक_े होकर स्वयं ही आपसी सहयोग से 1 करोड़ रुपया जमा करके सिरसा को अलीका और पनिहारी गांवों से जोडऩे वाला 14 फुट चौड़ा और 250 फुट लम्बा पुल बनाने का फैसला कर लिया जो अब तैयार हो चुका है। 
 
इस पुल के बन जाने से अलीका व सिरसा की दूरी 30 कि.मी. घट जाएगी तथा इलाके के किसान अपनी उगाई हुई सब्जियां और दूसरे उत्पाद जल्दी सिरसा मंडी तथा पंजाब के बाजारों में पहुंचा सकेंगे।
 
ऐसा ही एक उदाहरण हरियाणा में कैथल जिला के ‘पबनावा जस महिन्द्र’ गांव के निवासियों ने पेश किया है। भारत-पाक युद्ध में 2 सितम्बर, 1965 को वीरगति प्राप्त करने वाले इस गांव के कैप्टन जस महिन्द्र सिंह की याद में सरकार ने यहां रेलवे हाल्ट बनाने की घोषणा की थी जिसे बाद में अपग्रेड करके सी ग्रेड रेलवे स्टेशन का दर्जा दे दिया गया था।
 
गांव वासी बहुत समय से यहां बेहतर सुविधाओं की मांग करते आ रहे थे पर अधिकारियों ने मजबूरी जताई तो गांव वालों ने लाला हरी राम की अध्यक्षता में ‘जन विकास समिति’ बना कर अपने दम पर 10.5 लाख रुपए जमा करके स्टेशन का नवीकरण करवाया, जो अब 90 प्रतिशत पूरा हो चुका है। अब कैथल का जिला प्रशासन इस उपलब्धि के लिए गांव कीपंचायत और समिति के सदस्यों को सम्मानित करने का कार्यक्रम बना रहा है। 
 
जिस प्रकार बिहार में एक अकेले दशरथ मांझी ने पहाड़ काट कर अपने इलाके के लोगों के लिए अपने दम पर सड़क बनाने का कारनामा अंजाम दिया था, उसी प्रकार उक्त गांवों के निवासियों ने भी अपने दम पर कुओं को जोड़ कर, पुल बना कर और रेलवे स्टेशन का नवीकरण करके सरकार के मुंह पर जैसे एक चपत लगाई है। 
 
उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया है कि ‘नागरिक हिम्मत करें तो देश में क्या नहीं हो सकता।’ सरकार के पास ‘जादू की छड़ी’ भले ही न हो परन्तु आम जनता की ‘मेहनत और लगन की छड़ी’ बहुत कुछ कर सकती है। शायद कोई सरकार भी इनसे सबक ले!
 

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