सबका ‘हार्दिक आभार’

Edited By ,Updated: 21 Jul, 2015 01:42 AM

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स्वदेश जी के साथ बिताए 54 वर्षों में उन्होंने मुझे कभी भी अपनी ओर से यह अनुभूति नहीं होने दी जिससे यह लगे कि वह अपने परिवार तथा समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों से कभी विमुख हुई हों।

स्वदेश जी के साथ बिताए 54 वर्षों में उन्होंने मुझे कभी भी अपनी ओर से यह अनुभूति नहीं होने दी जिससे यह लगे कि वह अपने परिवार तथा समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों से कभी विमुख हुई हों। 

साढ़े 6 वर्ष पूर्व अचानक बीमार हो जाने के कारण स्वदेश जी को कुछ दिन जालंधर के प्राइवेट अस्पताल में रखने के बाद उपचार के लिए हम 15 दिसम्बर 2008 को उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल ले गए।
 
2011 में ‘स्टैम सैल थैरेपी’ के लिए जर्मनी ले जाने के बावजूद उनके स्वास्थ्य में सुधार न हुआ और वह साढ़े छ: वर्षों से लगातार ‘कोमा’ में थीं। फिर भी हमारे मन में एक आशा अवश्य थी कि अनेक बार रोगी ‘कोमा’ से बाहर निकल आते हैं।
 
मैं अक्सर हर  सप्ताह स्वदेश जी को देखने दिल्ली जाया करता था। मंगलवार 7 जुलाई को भी दिल्ली के लिए मेरी शाम की सीट बुक थी परंतु सुबह 8.00 बजे उनका जीवनदीप बुझ गया और हमसे उनका आधी सदी से अधिक का साथ हमेशा के लिए छूट गया। 
 
स्वदेश जी के देहावसान का समाचार तेजी से सभी जगह फैल गया। उनका पाॢथव शरीर जालंधर पहुंचने से पूर्व ही संवेदना संदेशों का तांता लग गया और भारी संख्या में लोग ‘पंजाब केसरी निवास’ पहुंचने लगे।
 
उसी दिन स्वदेश जी के अंतिम संस्कार में भारी संख्या में सभी धर्मों के लोगों, माताओं, बहनों और बुजुर्गों ने भाग लिया और रस्म चौथा के अवसर पर भी बड़ी संख्या में हमारे शुभचिंतक और हितैषी उपस्थित हुए। 
 
स्वदेश जी विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित मैडीकल कैम्पों, बच्चों में शिक्षा प्रसार एवं पुस्तकें बंटवाने, जरूरतमंदों के लिए आयोजित राशन वितरण समारोहों आदि में भाग लेती थीं। 
 
वह जरूरतमंद लोगों की सहायता के अलावा निर्धन परिवारों की कन्याओं के विवाह करवाने में भी रुचि लेती थीं। उन्हें प्रकृति से प्यार था और वह लोगों को पौधे लगाने के लिए भी प्रेरित करती रहती थीं। 
 
संवेदना व्यक्त करने आने वाले सज्जनों ने हमें स्वदेश जी के चित्र दिए व चित्रों के एलबम आदि भी दिखाए जिनसे हमें न सिर्फ उनके सामाजिक सरोकारों बल्कि अनेक ऐसी संस्थाओं से जुड़े होने का भी पता चला जिनसे हम अनभिज्ञ थे। 
 
वह अपनी हर बात तर्क के साथ कहतीं और श्रोताओं द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तत्पर रहतीं। वास्तव में वह एक सच्चे गुरु की भांति थीं जिन्होंने अनेक परिचित लोगों को कुछ न कुछ करने की प्रेरणा दी। 
 
एक सनातन धर्मी परिवार से आर्य समाजी परिवार में आकर पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी और माता शांति देवी जी के आशीर्वाद से स्वदेश जी ने दोनों की ही अच्छी बातों को ग्रहण किया और अपने बच्चों के अलावा परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्यों को भी इसी योग्य बनाया। 
 
19 जुलाई को स्वदेश जी की रस्म किरया तक हमारे परिवार से संवेदना व्यक्त करने के लिए भारी संख्या में सभी धर्मों से संबंध रखने वाले शुभचिंतक, पाठक, संत समाज के सदस्य, राजनीतिज्ञ, कलाकार, व्यापारी व अधिकारी तथा मित्र एवं संबंधी आते रहे। इनमें स्वदेश जी के प्रशंसक और ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्होंने कभी न कभी उनसे प्रेरणा ली थी। 
 
इससे पूर्व 17 जुलाई को जब चिरंजीव अविनाश और अमित उनके अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार गए तो पता चलने पर वहां भी ‘पंजाब केसरी समूह’ से जुड़े लोग और प्रशंसक उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंच गए। 
 
आज जबकि स्वदेश जी हमारे बीच नहीं हैं, आप सबकी सहानुभूति, शुभकामनाओं और आशीर्वाद ने हमें फिर से अपने काम पर अग्रसर होने की शक्ति प्रदान की है। दुख की इस बेला में हमारा साथ देने के लिए हम आप सबका हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। 

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