भारतीय सैनिकों पर हमला, चीन पर नकेल डालने के लिए चीनी सामान का सख्ती से बहिष्कार किया जाए

Edited By ,Updated: 18 Jun, 2020 02:14 AM

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भारत और चीन के बीच 1962 से अब तक जारी सीमा विवाद दोनों देशों के बीच दशकों से हो रही बातचीत के बावजूद हल नहीं हो पाया। इस दौरान हालांकि दोनों देशों की सेनाएं समय-समय पर आमने-सामने आती रही हैं परंतु पिछले 45 वर्षों में ऐसी स्थिति पैदा नहीं हुई थी जैसी...

भारत और चीन के बीच 1962 से अब तक जारी सीमा विवाद दोनों देशों के बीच दशकों से हो रही बातचीत के बावजूद हल नहीं हो पाया। इस दौरान हालांकि दोनों देशों की सेनाएं समय-समय पर आमने-सामने आती रही हैं परंतु पिछले 45 वर्षों में ऐसी स्थिति पैदा नहीं हुई थी जैसी अब साढ़े चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित और शून्य से भी कम तापमान वाली लद्दाख की ‘गलवान घाटी’ में तैनात भारत और चीनी सैनिकों के बीच पैदा हुई है। 

लगभग 2 महीनों से दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों में विभिन्न स्तरों पर जारी बातचीत के बीच 15 जून शाम को भारतीय इलाके पर कब्जा किए बैठे 800 से अधिक चीनी सैनिकों ने वापस लौटने की आड़ में भारतीय सैनिकों पर लोहे की छड़ों, कंटीले डंडों और पत्थरों आदि से अचानक हमला कर दिया। दोनों ओर से गोली चले बिना हुई हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद और लगभग 2 दर्जन घायल हो गए जिनमें से 4-5 जवानों की हालत गंभीर है जबकि 34 भारतीय जवान लापता बताए जाते हैं। भारत की जवाबी कार्रवाई में चीनी टुकड़ी के कमांडर सहित चीन के 43 सैनिकों के मारे या घायल होने का समाचार है। 

भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, ‘‘गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के निकट स्थित है। भारत वहां सामरिक निर्माण करना चाहता है और इसी बात को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद जारी है तथा चीन द्वारा सीमा पर एकतरफा तरीके से यथास्थिति बदलने का प्रयास करने के कारण दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक टकराव हुआ।’’ प्रेक्षकों के अनुसार, ‘‘चीन का नया आक्रामक रवैया इसलिए अधिक चिंताजनक है क्योंकि इसने समूचे ‘गलवान क्षेत्र’ को चीन का हिस्सा घोषित कर दिया है और यह घोषणा उसके विदेश मंत्रालय ने नहीं, चीनी पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने की है।’’ 

इस बीच हिमाचल के किन्नौर और लाहौल स्पीति, उत्तराखंड के चमोली और पिथौरागढ़, सिक्किम व अरुणाचल में भी सेना को पूर्णत: तैयार रहने के अलावा उत्तरी, पश्चिमी व पूर्वी भारत के हर एयरबेस को किसी भी आपात स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहने को कह दिया गया है और समुद्र में गश्त भी बढ़ा दी गई है।
सेना के अनुसार पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना और वायु सेना मजबूत स्थिति में हैं। वायु सेना ने अतीत की तुलना में अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली है और यह मात्र 30 मिनट में टैंक, तोपखाना व जवानों को लद्दाख पहुंचा सकती है। 

चीन के इन बदले हुए तेवरों के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि ‘‘चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी पर पकड़ ढीली होती जा रही है और भारत के साथ चीनी सेना की यह हिंसक झड़प जिनपिंग को मजबूत नेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिशों का ही एक हिस्सा है।’’ इस बीच जहां नेपाल ने सीमा पर अलर्ट घोषित कर दिया है वहीं पाकिस्तान ने भी सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं और भारत-चीन मसले में कूदते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दोनों देशों के बीच तनाव की वृद्धि के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा कर चीन को खुश करने की कोशिश की है। 

विशेषज्ञों के अनुसार बेशक यह भारत और चीन की आपसी समस्या है परंतु चीन की बढ़ती हिमाकत के दृष्टिगत भारत सरकार को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से चीन पर दबाव डलवाना चाहिए। इनका यह भी कहना है कि यदि चीन से सामान का आयात बंद करके घरेलू निर्माण को बढ़ावा दिया जाए तो न सिर्फ भारतीय उद्योग तरक्की करेंगे बल्कि यहां रोजगार के अवसर भी बढऩे से बेरोजगारी कुछ कम होगी और चीन पर आर्थिक दबाव पडऩे से वह अपनी हरकतों पर अंकुश लगाने को विवश होगा। 

उल्लेखनीय है कि वियतनाम, ताईवान, कम्बोडिया, फिलीपींस आदि देशों द्वारा उद्योगों को टैक्स में भारी छूट देने के कारण वहां उद्योगों ने न सिर्फ बेहद तरक्की की है बल्कि अनेक विदेशी कम्पनियां भी वहां अपने संयंत्र लगा रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार चीन के साथ युद्ध के परिणाम के बारे में तो कुछ भी कहना मुश्किल है परंतु यदि वियतनाम और कम्बोडिया आदि से सबक लेते हुए भारत और अन्य देश चीनी सामान का बहिष्कार कर दें और चीन के विरुद्ध कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दें, जैसी कि आशा की जा रही है, तो उसे भारी आर्थिक चोट पहुंचाई जा सकती है जिससे चीन के नेता अपना आक्रामक रवैया बदलने को विवश हो सकते हैं।—विजय कुमार 

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