‘बाबरी मस्जिद विवाद’ ‘28 वर्ष बाद हुआ पटाक्षेप’ ‘सभी आरोपी बरी’

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2020 02:34 AM

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प्राचीन काल में हमारा देश ‘सोने की चिडिय़ा’ कहलाता था जहां हर ओर खुशहाली का बोलबाला था परंतु हमारी आपसी फूट के कारण हमारा वह गौरवपूर्ण स्थान कायम न रहा। पहले हम मुगलों के गुलाम रहे जिन्होंने हमें 600 वर्षों तक लूटा और उनकी अधीनता स्वीकार कर हमारे चं

प्राचीन काल में हमारा देश ‘सोने की चिडिय़ा’ कहलाता था जहां हर ओर खुशहाली का बोलबाला था परंतु हमारी आपसी फूट के कारण हमारा वह गौरवपूर्ण स्थान कायम न रहा। पहले हम मुगलों के गुलाम रहे जिन्होंने हमें 600 वर्षों तक लूटा और उनकी अधीनता स्वीकार कर हमारे चंद राजाओं ने अपने स्वार्थों की खातिर उन्हें अपनी रियासतें तथा अन्य असबाब देने के साथ-साथ उनसे अपनी बेटियां तक भी ब्याह दीं। 

फिर अंग्रेजों ने आकर 200 वर्षों तक हमारा शोषण किया। हमारे लोगों ने अपने स्वार्थों की खातिर उनका भी साथ दिया और समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के उत्पीडऩ का ऐसा दौर चला कि बड़ी संख्या में हिंदू समाज के कमजोर वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले लोगों ने इस्लाम तथा ईसाई धर्म अपना लिए। स्वतंत्रता मिलने तक देश 600 रियासतों में बंट गया था जिनका सरदार पटेल ने अथक प्रयासों से भारत में विलय करवाने में सफलता प्राप्त की। हालांकि मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, तांत्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई आदि ने उनसे लोहा लिया परंतु उनके विरुद्ध लडऩे वाले ये गिने-चुने ही थे। 

अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद मुगल शासकों की ही एक देन थी। माना जाता है कि 1528 में अयोध्या में एक ऐसी जगह यह मस्जिद बनाई गई जिसे हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान श्री राम का जन्म स्थान मानते हैं। यह मस्जिद मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबर के सम्मान में बनवाई थी जिस कारण इसे ‘बाबरी मस्जिद’ कहा जाने लगा। 1853 में हिन्दुओं ने आरोप लगाया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। तब इस मुद्दे पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहली ङ्क्षहसा हुई और तभी से इस मामले को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में तनाव चला आ रहा था। 

6 दिसम्बर, 1992 को कारसेवकों की एक भीड़ ने उक्त मस्जिद को ढहा कर वहां एक अस्थायी मंदिर बना दिया था जिसे लेकर देश भर में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ गया, ङ्क्षहसा हुई और बड़ी संख्या में लोग इसकी बलि चढ़ गए। बाबरी मस्जिद गिरने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 2 दिन बाद मस्जिद ढहाने की घटना और उसके पीछे कथित षड्यंत्र की जांच के लिए जस्टिस एम.एस. लिब्राहन की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। जांच आयोग ने 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट पेश की लेकिन अदालत में इस मामले में फैसला आने में इतना लम्बा समय लग गया कि उससे पहले ही सुप्रीमकोर्ट ने अयोध्या में उसी स्थान पर मंदिर बनाने का फैसला भी दे दिया और मंदिर निर्माण की प्रक्रिया भी कुछ ही समय में शुरू हो गई। 

इस बीच अंतत: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के सभी आरोपियों को सी.बी.आई. की विशेष अदालत द्वारा 30 सितम्बर को बरी करने के बाद 28 वर्ष पुराने इस ज्वलंत मुद्दे का पटाक्षेप करते हुए लखनऊ में सी.बी.आई. की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) के जज न्यायमूर्ति सुरेंद्र कुमार यादव ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। इस केस में कुल 49 आरोपियों में से बाल ठाकरे, आचार्य गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया और विजय राजे सिंधिया सहित 17 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है। 

फैसला सुनाए जाने के समय अदालत में उपस्थित 26 ‘आरोपियों’ में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय, प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, विहिप नेता विनय कटियार, सांसद साक्षी महाराज, साध्वी उमा भारती तथा साध्वी ऋतम्भरा आदि मुख्य हैं। लाल कृष्ण अडवानी तथा मुरली मनोहर जोशी सहित 6 ‘आरोपी’ वीडियो कांफ्रैंसिंग के जरिए अदालत की कार्रवाई में शामिल हुए। इससे पहले सी.बी.आई. ने 351 गवाह और 600 से अधिक दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए। इस केस के मामले में सी.बी.आई. तथा आरोपियों के वकीलों ने लगभग 800 पन्नों की लिखित बहस दाखिल की। 

सभी 32 आरोपियों के बयान 31 अगस्त तक दर्ज कर लिए गए थे।  इन पर जानबूझ कर राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाने, एक पूजा स्थल को तोडऩे, धार्मिक भावनाएं भड़काने, अवैध रूप से इकट्ठे होने आदि के आरोप लगाए गए थे। यहां उल्लेखनीय है कि 30 सितम्बर को फैसला सुनाए जाने के पूर्व बाबरी मस्जिद के पूर्व पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा था कि ‘‘सरकार को अब इस मुकद्दमे को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि अधिकांश आरोपी बुजुर्ग हो चुके हैं और उनमें से कई तो जीवित ही नहीं हैं।’’ ‘‘चूंकि सुप्रीमकोर्ट से निर्णय आने के बाद मंदिर-मस्जिद विवाद समाप्त हो चुका है, अत: आरोपियों को बरी करके अब मुकद्दमा समाप्त कर देना चाहिए।’’ 

यह भी एक संयोग ही है कि 30 सितम्बर को विशेष सी.बी.आई. अदालत के जज श्री सुरेंद्र कुमार यादव ने अपना फैसला सुनाते हुए लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी सहित सभी 32 आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि सी.बी.आई. सबूत जुटाने में विफल रही है। न्यायमूर्ति यादव ने कहा, ‘‘अचानक हुई यह घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। नेताओं के भाषणों के आडियो और वीडियो साफ नहीं हैं। ढांचा अराजक तत्वों ने गिराया और गुम्बद पर जो लोग चढ़े वे सभी असामाजिक तत्व थे। नेताओं ने भीड़ को रोकने की कोशिश की। आरोपियों के विरुद्ध मजबूत साक्ष्य भी नहीं हैं।’’ 

उल्लेखनीय है कि श्री सुरेंद्र कुमार यादव 30 सितम्बर, 2019 को जिला जज लखनऊ के पद से सेवानिवृत्त हुए थे परंतु सुप्रीमकोर्ट ने इन्हें इस केस का फैसला सुनाने तक सेवा विस्तार दे दिया था। राम मंदिर भूमि विवाद पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भी अदालत के फैसलेे के बाद इससे जुड़े संवेदनशील मुद्दे का शांतिपूर्ण ढंग से पटाक्षेप हो गया है इससे देश में शांति आएगी, सद्भाव बढ़ेगा और देश तरक्की करेगा।—विजय कुमार 

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