Edited By Pardeep,Updated: 16 Nov, 2018 03:55 AM
1970 के दशक में देश में अचानक रेजगारी अर्थात छोटे सिक्कों की भारी कमी पैदा हो गई थी। इस कारण जहां दुकानदारों ने ग्राहकों को लौटाने वाली 25, 50 या 75 पैसों की रेजगारी के बदले में कागज पर लिखकर ‘पर्चियां’ देनी शुरू कर दी थीं वहीं अनेक स्थानों पर...
1970 के दशक में देश में अचानक रेजगारी अर्थात छोटे सिक्कों की भारी कमी पैदा हो गई थी। इस कारण जहां दुकानदारों ने ग्राहकों को लौटाने वाली 25, 50 या 75 पैसों की रेजगारी के बदले में कागज पर लिखकर ‘पर्चियां’ देनी शुरू कर दी थीं वहीं अनेक स्थानों पर छुट्टी पैसों के बदले में दुकानदारों और यहां तक कि बसों के कंडक्टरों आदि ने टॉफियां या डाक सामग्री लिफाफे, टिकट, पोस्ट कार्ड आदि देने शुरू कर दिए थे।
इसके विपरीत 2010 के दशक में देश में पैदा हुई छोटी कागजी मुद्रा यानी 1, 2, 5 व 10 रुपयों के नोटों की भारी कमी से निपटने के लिए सरकार द्वारा जारी 1, 2, 5 और 10 रुपयों के सिक्के आम लोगों, दुकानदारों, वैंडरों, मंदिर ट्रस्टों और बैंकों आदि के लिए परेशानी का कारण बन गए हैं। जहां इन सिक्कों को एक सीमा से अधिक जेब में रखना असुविधाजनक है वहीं बैंकों को भी इन्हें गिनने और संभालने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इसीलिए बैंक सिक्के स्वीकार करने से संकोच कर रहे हैं। उनकी दलील है कि मशीनों के अभाव में इन्हें गिनना एक बड़ा समय खपाऊ काम है जिसके लिए उन्हें बड़ी संख्या में कर्मचारी लगाने पड़ते हैं।
रांची के ‘पहाड़ी मंदिर’ के पास साढ़े 4 लाख रुपए मूल्य के सिक्के पड़े हैं। मंदिर के खजांची के अनुसार, ‘‘बैंक कह रहे हैं कि उनके पास इतने सिक्के रखने के लिए जगह ही नहीं है।’’ जयपुर के शनि मंदिर के एक पुजारी की भी कुछ ऐसी ही शिकायत है। उनके अनुसार, ‘‘बैंक सिक्के लेने से इंकार कर रहे हैं। पहले मैं हर महीने 7,000 रुपए के सिक्के जमा करवाता था। अब बैंकों के मना कर देने की वजह से मुझे इन्हें स्थानीय दुकानदारों को देना पड़ रहा है।’’
एक न्यूज पेपर ग्रुप को अपने पास जमा एजैंटों व वैंडरों से लिए 38 लाख रुपए के सिक्कों के चलते खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी के एक अधिकारी के अनुसार, ‘‘कमर्शियल व प्राइवेट बैंकों में हमारे अकाऊंट हैं परंतु अब तक हम 42 लाख रुपयों के सिक्कों में से 4 लाख रुपए मूल्य के सिक्के ही निकाल सके हैं तथा सिक्के स्वीकार करने के रिजर्व बैंक के निर्देशों के बावजूद बैंक इन्हें लेने से झिझक रहे हैं।’’ एक बैंक अधिकारी के अनुसार, ‘‘बैंकों द्वारा सिक्के स्वीकार नहीं करने का कारण यह है कि या तो उनके पास इन्हें गिनने वाली मशीनें नहीं हैं और यदि हैं भी तो वे खराब हैं। साथ ही सिक्कों को गिनने में बहुत अधिक समय लगता है। ऐसे में कर्मचारियों की कमी के चलते आमतौर पर बैंक सिक्के लेने में आनाकानी और इंकार कर देते हैं।’’
सिक्के चार मूल्यों के हैं परंतु हर मूल्य के सिक्के अलग-अलग आकार के होने के कारण भी असुविधा होती है। देश के अनेक राज्यों में काफी संख्या में छोटे बिजनैसमैन ग्राहकों से सिक्के नहीं ले रहे हैं क्योंकि बैंक इन्हें जमा करने से इंकार कर देते हैं। कुछ बैंक स्थान की कमी का हवाला देकर भी सिक्के नहीं ले रहे। कुछ बैंक खाताधारकों को भी इसके लिए किसी सीमा तक जिम्मेदार बताते हैं। भारतीय स्टेट बैंक कर्मचारी संघ के प्रैजीडैंट राजेश त्रिपाठी के अनुसार, ‘‘बैंक तो सिक्के ले लेते हैं पर ग्राहक बैंकों से सिक्के स्वीकार नहीं करते।’’
फैडरेशन ऑफ वैस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशन के चेयरमैन महेश सिंघानिया के अनुसार, ‘‘छोटे कस्बों में समस्या अधिक गम्भीर है। निजी तथा विदेशी बैंक सिक्के स्वीकार करने में अधिक पीछे हैं।’’ एक बैंक मैनेजर ने दोषारोपण करते हुए कहा कि ‘‘रिजर्व बैंक के करंसी चैस्ट सिक्कों से भर चुके हैं। इस कारण सिक्के बैंकों में ही रह जाते हैं। जितने सिक्के हम लेते हैं, नोट रखने के लिए जगह उतनी ही कम पड़ जाती है।’’ जहां 1, 2, 5 और 10 रुपयों के सिक्के आम लोगों के लिए असुविधा का कारण बने हुए हैं वहीं इन्हें खपाने में बैंकों के भी पसीने छूट रहे हैं और करोड़ों रुपयों से अधिक के सिक्के बैंकों की चैस्ट ब्रांचों में डम्प पड़े हैं। अत: सरकार लोगों की जरूरतों को ध्यान में रख कर अधिक संख्या में सिक्कों के स्थान पर छोटी राशि (1,2,5 और 10 रुपए) के नोट छापे ताकि आम जनता की कठिनाई दूर हो। ऐसा करना आम लोगों और बैंकों दोनों के लिए ही अच्छा होगा।—विजय कुमार