Edited By ,Updated: 07 Feb, 2019 04:11 AM
समय-समय पर राजनीतिज्ञों द्वारा अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए समाजसेवियों के इस्तेमाल पर सवाल उठाए जाते रहे हैं जिनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण से लेकर अन्ना हजारे तक शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 81 वर्षीय सामाजिक कार्यकत्र्ता अन्ना हजारे ने 1970 में...
समय-समय पर राजनीतिज्ञों द्वारा अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए समाजसेवियों के इस्तेमाल पर सवाल उठाए जाते रहे हैं जिनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण से लेकर अन्ना हजारे तक शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि 81 वर्षीय सामाजिक कार्यकत्र्ता अन्ना हजारे ने 1970 में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया और स्वामी विवेकानंद की पुस्तक ‘काल टू द यूथ फार नेशन’ पढऩे के बाद उन्होंने अपना जीवन समाजसेवा को समॢपत कर दिया। भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने आंदोलन में आम आदमी को जोडऩे वाले अन्ना हजारे का मानना है कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ा है। ‘राजनीतिक पार्टियों’ की जगह यदि सही ‘व्यक्ति’ चुने जाते तो भ्रष्टाचार उतना नहीं बढ़ता तथा साम्प्रदायिकता, गुंडागर्दी और लूट जैसी तमाम बुराइयां भी नहीं पनपतीं।
‘सूचना के अधिकार’ के लिए कार्य करने वालों में अग्रणी अन्ना हजारे ने केन्द्र सरकार से कठोर दंड प्रावधानों वाला जनलोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए पहली बार 16 अगस्त, 2011 को नई दिल्ली में अनशन रखा जिसमें उनके साथ अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रसिद्ध वकील पिता-पुत्र शांति भूषण और प्रशांत भूषण आदि शामिल थे। अन्ना हजारे का कहना है कि लोकपाल की नियुक्ति होने पर काफी घोटाले रुकेंगे और प्रधानमंत्री भी इसके अधिकार क्षेत्र में आएंगे। इसी कड़ी में केन्द्र सरकार से नाराज अन्ना हजारे एक बार फिर 30 जनवरी से अपने गांव रालेगण सिद्धि में ‘जन आंदोलन सत्याग्रह’ के बैनर तले केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त लाने की मांग को लेकर बेमियादी अनशन पर बैठ गए।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मांग स्वीकार न होने पर वह भारत सरकार द्वारा दिया गया पद्म भूषण का सम्मान राष्ट्रपति को लौटा देंगे तथा यदि उन्हें कुछ होता है तो इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही जिम्मेदार होंगे। सरकार पर ‘जुमलेबाज’ की मोहर लगाते हुए अन्ना ने कहा कि नरेन्द्र मोदी सिर्फ आश्वासनबाज पी.एम. हैं व उनकी सरकार बार-बार बहानेबाजी करती है। अपने गांव रालेगण सिद्धि में 4 फरवरी को पत्रकारों से बातचीत करते हुए अन्ना हजारे ने कहा ‘‘भाजपा ने 2014 में सत्ता में आने के लिए मेरे जनलोकपाल आंदोलन का दुरुपयोग किया। ‘भाजपा’ और ‘आप’ दोनों ही लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक के लिए मेरे चलाए हुए आंदोलन की लहर पर सवार होकर सत्ता में आए परन्तु उन्होंने लोकपाल और लोकायुक्त नियुक्त न करके मुझसे छल किया है।’’
‘‘सत्तारूढ़ भाजपा के नेता इस मामले पर खामोश हो गए हैं। लगता है कि उन्हें लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति से एलर्जी हो गई है। मोदी सरकार संवैधानिक मान्यताओं का पालन नहीं कर रही तथा यह तानाशाही में बदलती जा रही है। मेरा केन्द्र और राज्य (महाराष्ट्र) दोनों ही सरकारों से विश्वास उठ गया है और इनके प्रति मेरे मन में कोई सम्मान नहीं रहा।’’ ‘‘नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार केवल देशवासियों को गुमराह कर रही है और देश को एकतंत्र (Autocracy) की ओर ले जा रही है। इसी प्रकार महाराष्ट्र की भाजपा नीत सरकार 4 वर्षों से झूठ बोलती आ रही है। यह झूठ कब तक चलेगा? सरकार ने देशवासियों को नीचा दिखाया है। ’’
‘‘केन्द्र सरकार कहती है कि इसने मेरी 90 प्रतिशत मांगें स्वीकार कर ली हैं। यह कैसा धोखा है? यदि इसने मेरी मांगें स्वीकार कर ली होतीं तो मुझे अनशन करने की क्या आवश्यकता थी?’’ ‘‘आने वाले चुनावों में यदि मोदी सरकार के बदले कांग्रेस सरकार भी आ जाए तो इससे कोई खास फर्क पडऩे वाला नहीं है। यदि भाजपा के नेतृत्व वाली (एन.डी.ए.) सरकार भ्रष्टाचार तथा लोकपाल को लागू न करने के मामले में ग्रैजुएट है तो इसके स्थान पर आने वाले दूसरों ने (कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार) इस मामले में डॉक्ट्रेट कर रखी है।’’ अपने पुराने साथी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘वह तो अब लोकपाल और लोकायुक्त को भूल ही गए होंगे क्योंकि कुर्सी पर बैठने के बाद हर कोई भूल जाता है, जिस तरह नरेन्द्र मोदी कुर्सी पर बैठने के बाद भूल गए हैं।’’
अब 5 फरवरी को अन्ना ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस तथा 2 केन्द्रीय मंत्रियों के साथ बैठक के बाद अनशन समाप्त करते हुए कहा है कि उन्होंने यह निर्णय उनके साथ संतोषजनक बातचीत के बाद किया है। अन्ना को दिया गया आश्वासन कितना सफल होता है यह तो भविष्य के गर्भ में है परन्तु जितनी जल्दी केन्द्र सरकार लोकपाल और लोकायुक्त कानून लाएगी, देश के हित में उतना ही अच्छा होगा।—विजय कुमार