कैशलैस अर्थव्यवस्था की ओर भारत का महत्वपूर्ण कदम ‘आधार’

Edited By ,Updated: 11 Jul, 2016 01:34 AM

cashless economy important step towards india s base

बेशक भारत की बायोमीट्रिक्स आधारित पहचान प्रणाली अर्थात ‘आधार’ की देश में ही आलोचना होती रही हो, कई विदेशी सरकारें एवं संगठन इसे अपनाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

बेशक भारत की बायोमीट्रिक्स आधारित पहचान प्रणाली अर्थात ‘आधार’ की देश में ही आलोचना होती रही हो, कई विदेशी सरकारें एवं संगठन इसे अपनाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। रूस, मोरक्को, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया इसमें रुचि ले रहे हैं जिसके अंतर्गत भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यू.आई.डी.ए.आई.) ने अब तक 1 अरब लोगों को नामांकित किया है।

 
सूचना प्रौद्योगिकी विभाग व विदेश मंत्रालय और वर्ष 2009 से 13 तक यू.आई.डी.ए.आई. के महानिदेशक के रूप में सेवा देेने वाले भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के चेयरमैन आर.एस. शर्मा ‘आधार माडल’ को विदेशों में बढ़ावा देने के प्रयास का हिस्सा हैं। विश्व बैंक भी इसमें मदद कर रहा है। विदेश मंत्रालय ने तो भारत के उपराष्ट्रपति श्री अंसारी की हाल में मोरक्को व ट्यूनीशिया की यात्रा के एजैंडे में इसे शामिल किया था। 
 
रूस में वित्तीय समावेशन पर यूरोपीय संघ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधियों संग एक संगोष्ठी में भाग लेकर लौटे श्री शर्मा के अनुसार मोरक्को वह करना चाहता है जो भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में किया है। 
 
शर्मा के अनुसार भारत की सिफारिश पर ही मोरक्को ने अपने प्रस्तावित राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एन.पी.आर.) में बायोमीट्रिक पहचान और प्रमाणीकरण के लिए प्रावधानों को शामिल किया है और वे अपनी रणनीति व दृष्टिकोण अब भारत की यू.आई.डी. परियोजना के अनुरूप बदल रहे हैं।
 
मोरक्को की अपनी पहचान प्रणाली में सुधार के प्रयास का विश्व बैंक भी समर्थन कर रहा है जो इस संबंध में भारत के साथ सहयोग पर चर्चा करने के लिए मोरक्को से एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भारत लाने वाला है। 
 
सामाजिक कल्याण की पहल को क्रियान्वित करने के लिए मोरक्को आधार कार्ड की शैली पर एक कार्यक्रम विकसित करना चाहता है। वह प्रत्येक नागरिक को एक विशिष्ट पहचान संख्या देने और अपनी पूरी आबादी को कवर करने के लिए एक एन.पी.आर. के विकास पर विचार कर रहा है। 
 
भारत में आधार कार्ड कार्यक्रम के अंतर्गत मई में 1 अरब लोगों का नामांकन पूरा किया गया जिसे लगभग साढ़े 5 वर्ष पूर्व देश में शुरू किया गया था। भारत सरकार ने लोगों को सबसिडी और अन्य सामाजिक कल्याण लाभ पहुंचाने के लिए आधार कार्ड को धुरी बना दिया है। सीधे लोगों के बैंक खातों में नकद हस्तांतरण से बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई है। यह भारत के कैशलैस अर्थव्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
 
सरकार का दावा है कि आधार कार्ड से जुड़े बैंक खातों में सीधे नकद हस्तांतरण के माध्यम से गैस सबसिडी में ही इसे प्रति वर्ष 15,000 करोड़ रुपए की बचत हो रही है।
 
हालांकि, ऐसी चिंताओं ने आधार जैसे सिस्टम अपने यहां लागू करने से अन्य सरकारों को विचलित नहीं किया है। भारत के आर.बी.आई. की तरह कार्य करने वाला  ‘बैंक ऑफ रशिया’ भी बॉयोमीट्रिक जानकारी के आधार पर एक पहचान परियोजना की योजना बना रहा है। 
 
शर्मा के अनुसार, ‘‘वे विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि भारत में 1 अरब लोगों को डिजिटल पहचान मिल गई है। वे हमसे पूछते हैं कि हमने यह कैसे किया है। मैंने कहा कि रूस की आबादी 14 करोड़ है तो उन्हें इसके लिए केवल 140 दिन लगेंगे क्योंकि हमने इसे प्रतिदिन 10 लाख लोग की रफ्तार से किया है।’’
 
विश्व बैंक इसी तरह की परियोजनाएं अफ्रीका के मगरिब क्षेत्र में भी लागू करना चाहता है जिनमें अल्जीरिया तथा ट्यूनीशिया जैसे देश शामिल हैं। विश्व बैंक ने जनवरी में जारी अपनी वल्र्ड डिवैल्पमैंट रिपोर्ट-2016 में कहा था कि आधार कार्ड अन्य देशों द्वारा अपनाने लायक है। इसे प्रौद्योगिकी द्वारा आर्थिक परिवर्तन का एक उम्दा उदाहरण बताया जा रहा है।
 
कई बाधाओं को पार करके हम वर्तमान चरण तक पहुंचे हैं जिनमें न केवल तकनीकी बल्कि गैर-तकनीकी चुनौतियां भी शामिल थीं। भारत के आधार कार्यक्रम की महत्वपूर्ण उपलब्धि है किन्तु इसका विरोध करने वालों की भी कमी नहीं।
 
फिलहाल यह कार्यक्रम अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है लेकिन इसके सम्पूर्ण रूप ग्रहण करने पर न केवल सीमा पार से होने वाले अवैध आव्रजन को रोका जा सकेगा बल्कि पहले से आकर बसे हुए ऐसे लोगों को भी चिन्हित किया जा सकेगा।
 

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