राम मंदिर विवाद समाधान बारे केन्द्र सरकार की पहल

Edited By ,Updated: 31 Jan, 2019 03:35 AM

center government initiatives about ram temple dispute resolution

माना जाता है कि 1528 में अयोध्या में एक ऐसी जगह पर मस्जिद बनाई गई जिसे हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान श्री राम का जन्म स्थान मानते हैं। यह मस्जिद मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबर के सम्मान में बनवाई थी जिस कारण इसे ‘बाबरी मस्जिद’ कहा जाने...

माना जाता है कि 1528 में अयोध्या में एक ऐसी जगह पर मस्जिद बनाई गई जिसे हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान श्री राम का जन्म स्थान मानते हैं। यह मस्जिद मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबर के सम्मान में बनवाई थी जिस कारण इसे ‘बाबरी मस्जिद’ कहा जाने लगा। 1853 में हिन्दुओं ने आरोप लगाया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। तब इस मुद्दे पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई और तभी से इस मामले को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में तनाव चला आ रहा है। 

वर्तमान में इस पर संसद में कानून लाने के लिए मोदी सरकार पर काफी दबाव है। 1993 में सरकार ने विवादित स्थल के निकट 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। इसमें लगभग 42 एकड़ भूमि रामजन्म भूमि न्यास की है तथा 1994 में इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालत का फैसला आने के बाद गैर-विवादित भूमि उसके मूल मालिकों को लौटाने पर अदालत विचार कर सकती है। फिर 2002 में जब गैर-विवादित भूमि पर पूजा आरम्भ हो गई तो असलम भूरे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद 2003 में पूरी 67 एकड़ भूमि पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया और कहा कि विवादित और गैर-विवादित भूमि को अलग करके नहीं देखा जा सकता। 

अदालत ने कहा कि अधिगृहीत भूमि को उसके मालिकों को वापस लौटाया जा सकता है परन्तु इसके लिए भूमि के मालिकों को अदालतों में अर्जी दायर करनी होगी। इसके बाद राम जन्म भूमि न्यास ने अपनी 42 एकड़ गैर-विवादित भूमि पर अपना मालिकाना हक प्राप्त करने के लिए सरकार से गुहार लगाई थी। इस समय जबकि राम मंदिर के निर्माण को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है, केन्द्र सरकार ने अब 29 जनवरी को अयोध्या में विवादास्पद रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट में विवादित स्थल के निकट अधिगृहीत 67 एकड़ गैर-विवादित भूमि को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति संबंधी एक याचिका दाखिल की है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अयोध्या में सिर्फ 0.313 एकड़ का प्लाट विवादित है जिस पर 6 दिसम्बर, 1992 को ढहाया गया विवादित ढांचा स्थित था। यह उस 2.77 एकड़ प्लाट का हिस्सा है जो विवादित नहीं है तथा इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर हिस्सों में बांटा था। 

अदालत से 2003 का 16 वर्ष पुराना यथास्थिति का आदेश हटाने का आग्रह करते हुए सरकार ने विवादित भूखंड छोड़ 67.390 एकड़ भूमि असली भूमि मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगी है। इसमें सबसे बड़ा 42 एकड़ का प्लाट राम जन्म भूमि न्यास का है। सरकार के इस कदम को बिना अध्यादेश लाए गैर-विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही राम मंदिर के निर्माण बारे अध्यादेश न लाने की बात कह चुके हैं। ऐसा करके सरकार हिन्दूवादी संगठनों को यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह मंदिर निर्माण के मुद्दे पर गंभीर है। सरकार के इस कदम से जहां मंदिर विवाद को लेकर उत्पन्न तनाव कम करने में सरकार को आसानी होगी वहीं वह इस मामले पर अध्यादेश लाने के दबाव से भी बच सकेगी। सरकार के गैर-विवादित भूमि वापस मांगने के बाद विहिप का रवैया भी ढीला पड़ा है और उसने इसे सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है। 

संविधान विशेषज्ञों के अनुसार सरकार गैर-विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण शुरू कर सकती है परन्तु यह अब सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करता है कि यह राम जन्म भूमि न्यास को भूमि हस्तांतरित करने संबंधी कितनी जल्दी और क्या निर्णय लेती है। इस बीच प्रयागराज में जारी संतों की धर्म संसद में कहा गया है कि मंदिर निर्माण के लिए 21 फरवरी की तारीख तय की गई है तथा संत समाज के लोग अगले महीने से अयोध्या के लिए कूच करेंगे। कोर्ट के रवैए पर नाराजगी जताते हुए कहा गया कि राम के देश में रामजन्म भूमि के मुकद्दमे को न्याय नहीं मिल रहा है।—विजय कुमार 

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