‘आंदोलनकारी किसानों के साथ केंद्रीय नेताओं की’ ‘बातचीत रही एक बार फिर बेनतीजा’

Edited By ,Updated: 14 Nov, 2020 03:41 AM

central leaders interact with agitating farmers once again

इस समय देश अनेक गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। एक ओर जहां कोरोना महामारी के कारण आर्थिक मंदी और बेरोजगारी बढ़ रही है तो दूसरी ओर राजनीतिक हत्याओं और विभिन्न आंदोलनों से ...

इस समय देश अनेक गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। एक ओर जहां कोरोना महामारी के कारण आर्थिक मंदी और बेरोजगारी बढ़ रही है तो दूसरी ओर राजनीतिक हत्याओं और विभिन्न आंदोलनों से देश का वातावरण बिगडऩे के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को आघात लग रहा है।

राजस्थान के कई जिलों में पिछले 11 दिनों से जारी ‘गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति’ द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन राज्य की अशोक गहलोत सरकार द्वारा सभी 6 मांगें स्वीकार कर लिए जाने के बाद समाप्त हो गया और आंदोलनकारी 12 नवम्बर को दिल्ली-मुम्बई रूट पर रेल पटरी से हट गए। जहां ‘गुर्जर आंदोलन’ समाप्त होने से केंद्र और राजस्थान सरकारों को कुछ राहत मिली है वहीं केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरुद्ध शुरू हुआ ‘किसान आंदोलन’ पंजाब में 51 दिनों के बाद भी जारी है जिस कारण अभी तक लगभग 50,000 करोड़ रुपए का नुक्सान हो चुका है। 

इस आंदोलन के दौरान किसानों द्वारा रेल पटरियां रोकने से उद्योग-व्यवसाय को करोड़ों रुपए का घाटा पडऩे के अलावा देश के कुछ भागों में अनिवार्य वस्तुओं की कमी हो गई है तथा त्यौहारों के सीजन में डेयरी उत्पाद, ड्राईफ्रूट और त्यौहारों का अन्य सामान अत्यन्त महंगा हो गया है। मालगाडिय़ां बंद रहने से ट्रक वालों ने माल भाड़ेे में भारी वृद्धि कर दी है और जालंधर से मुम्बई तक का माल भाड़ा 42,000 रुपए से बढ़ाकर 67,000 रुपए कर दिया है। रेलवे को भी माल भाड़े के रूप में 1200 करोड़ रुपए से अधिक के राजस्व का नुक्सान हो चुका है जबकि यात्री रेलगाडिय़ां बंद होने से होने वाला नुक्सान इसके अलावा है। 

एक प्रमुख उद्योगपति के अनुसार इस आंदोलन से पंजाब के ऊनी कपड़ा उद्योग, हौजरी उद्योग, आटो पाटर््स, कैटल फीड, स्पोर्ट्स व अन्य उद्योगों पर अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ा है। निर्यात करने के लिए सामान से भरे हजारों कंटेनर शुष्क बंदरगाहों पर खड़े हैं। सामान समय पर न पहुंचने के कारण विदेशी ग्राहकों ने अपने आर्डर रद्द करने शुरू कर दिए हैं तथा पिछले कुछ समय के दौरान ही पंजाब में कारोबार को 20,000 करोड़ रुपए का घाटा पड़ चुका है। दूसरे राज्यों से कोयला न आने से जहां थर्मल प्लांटों द्वारा बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है वहीं राज्य में खादों की भी कमी हो जाने से कृषि संकट पैदा हो गया है। जो यूरिया खाद पहले 265 रुपए प्रति बोरी मिलती थी वह अब 325 रुपए से 350 रुपए प्रति बोरी तक बिक रही है। 

उल्लेखनीय है कि समस्या सुलझाने के प्रति उदासीनता बरतती आ रही केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने 14 अक्तूबर को पंजाब के किसान नेताओं की बैठक बुलाई थी परंतु उसमें कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पहुंचे ही नहीं जिस कारण किसान नेता क्रोध में आकर बैठक से चले गए थे। अब दोबारा 13 नवम्बर को केंद्र सरकार के निमंत्रण पर राज्य की 30 किसान जत्थेबंदियों के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल व वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोम प्रकाश के साथ दिल्ली में बैठक की। लगभग 7 घंटे चली बैठक में किसानों ने अपनी मांगों की लम्बी सूची रखी जिसमें विवादास्पद केंद्रीय कानून रद्द करने के अलावा पराली जलाने आदि विभिन्न मामलों में किसानों पर बने केस रद्द करने और जेल की सजा समाप्त करने की मांग की गई।

बिजली के बिलों में संशोधन समाप्त करने तथा राज्य में मालगाडिय़ों की तत्काल बहाली की मांग रखी। बैठक के बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा,‘‘हमने किसानों को आश्वस्त किया है कि नए कृषि कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) तथा मंडी (ए.पी.एम.सी.) प्रभावित नहीं होगी तथा पंजाब में दोनों जारी रहेंगी।’’ 

परंतु बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला और किसान नेताओं ने अपनी अगली कार्रवाई तय करने के लिए 18 नवम्बर को चंडीगढ़ में बैठक बुला ली है। इसी बैठक में पंजाब में रेलगाडिय़ां चलाने बारे निर्णय होगा। फिलहाल किसान 26-27 नवम्बर को दिल्ली में सरकार के किसी सुधार के एजैंडे के विरुद्ध प्रदर्शन करने के अपने फैसले पर कायम हैं। ‘क्रांतिकारी किसान यूनियन’ के राजेंद्र सिंह दीपसिंहवाला के अनुसार,‘‘हजारों ट्रैक्टरों के साथ किसान 26-27 नवम्बर को दिल्ली के घेराव के लिए कूच करेंगे।’’आंदोलन का इस प्रकार लटकते जाना स्वयं किसानों और देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है अत: जितनी जल्दी इसे सुलझाया जा सके उतना ही अच्छा होगा।—विजय कुमार

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