महाराष्ट्र के स्कूलों में बच्चे पढ़ेंगे अब अश्लील सामग्री

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Feb, 2018 04:54 AM

children in maharashtras schools will now read pornography

पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार शिक्षा के क्षेत्र में लिए जाने वाले अपने निर्णयों से विवादों में आई हुई है। कुछ समय पूर्व 59.52 लाख रुपए खर्च करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन से सम्बन्धित पुस्तकें खरीदने का निर्णय...

पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार शिक्षा के क्षेत्र में लिए जाने वाले अपने निर्णयों से विवादों में आई हुई है। कुछ समय पूर्व 59.52 लाख रुपए खर्च करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन से सम्बन्धित पुस्तकें खरीदने का निर्णय करने के लिए राज्य के शिक्षा विभाग की आलोचना हो चुकी है। 

और अब महाराष्ट्र सरकार राज्य के मिडल स्कूलों के पुस्तकालयों के लिए ‘बाल नचिकेता’ पर आधारित पुस्तकें खरीद कर विपक्षी दलों के निशाने पर आ गई है जिसकी सामग्री बच्चों के लिए आपत्तिजनक है। ‘बाल नचिकेता’ पुस्तक को सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए खरीदा गया है। विपक्षी दलों के अनुसार इस पुस्तक में बच्चों के लिए अनुपयुक्त ‘कौमार्य भंग’, ‘शारीरिक सुख’, ‘यौनेच्छा’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। 

इस पुस्तक में दी गई पौराणिक (माईथोलोजिकल) कथाओं में इस तरह के वाक्य शामिल हैं,‘‘ऐसे सम्राटों और देवताओं के उदाहरण मौजूद हैं जिन्होंने विवाह किए बगैर शारीरिक सुख का उपभोग किया।’’ तथा ‘‘उन्होंने कोहरा छाई रात्रि में सम्बन्ध बनाए।’’ एक अन्य कहानी में ऋषि पराशर से वार्तालाप करते हुए मत्स्यगंधा कहती है,‘‘हे ऋषि अपना कौमार्य गंवा देने के बाद मुझे कौन स्वीकार करेगा?’’ इसी कहानी में इस प्रकार की पंक्तियां भी हैं जैसे,‘‘उसके शरीर की लय को देख कर ऋषि पराशर में यौनेच्छा जागृत हुई’’ तथा ‘‘उसने कामुकता के वशीभूत उसका हाथ थाम लिया।’’ 

पुस्तकों की खरीद सम्बन्धी यह विवाद यहीं पर समाप्त नहीं होता क्योंकि विपक्ष ने यह आरोप भी लगाया है कि बाजार में 20 रुपए में मिलने वाली यह पुस्तक सरकार ने 50 रुपए में खरीदी है। इस पुस्तक के प्रकाशक ‘भारतीय विचार साधना’ को ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के निकट समझा जाता है। जब बच्चे इन किताबों में कौमार्य भंग, शारीरिक सुख, यौनेच्छा, कामुकता आदि शब्द पढ़ेंगे तो वे मोबाइल पर इनके अर्थ तलाशेंगे और कहेंगे कि हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है और हमारे ऋषि-मुनि ऐसा करते रहे हैं तो हम भी ऐसा क्यों न करें।—विजय कुमार 

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