Edited By Pardeep,Updated: 20 Aug, 2018 01:34 AM
चीन की आक्रामक नीतियों तथा युद्धाभ्यास से लेकर अंतरिक्ष में भी अपनी सैन्य ताकत मजबूत करने के प्रयासों को उजागर करती एक रिपोर्ट हाल ही में अमेरिकी सैन्य मुख्यालय पैंटागन ने जारी की है। यह रिपोर्ट चीन की विस्तारवादी नीतियों तथा क्षेत्रीय मुद्दों पर...
चीन की आक्रामक नीतियों तथा युद्धाभ्यास से लेकर अंतरिक्ष में भी अपनी सैन्य ताकत मजबूत करने के प्रयासों को उजागर करती एक रिपोर्ट हाल ही में अमेरिकी सैन्य मुख्यालय पैंटागन ने जारी की है।
यह रिपोर्ट चीन की विस्तारवादी नीतियों तथा क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को दबाने के लिए उसकी निरंतर जारी आक्रामक रणनीति के बारे में इसके पड़ोसी देशों के लिए चेतावनी से कम नहीं है। इसके लिए रिपोर्ट में अन्य घटनाओं के साथ चीन-भारत के बीच डोकलाम विवाद का भी प्रमुखता से जिक्र किया गया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जबकि कुछ ही दिनों में चीनी रक्षा मंत्री भारत के दौरे पर आ रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार चीन खुला युद्ध छेड़ कर क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में नहीं डालना चाहता क्योंकि इसी पर उसका आर्थिक विकास निर्भर करता है। फिर भी वह अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने और अपने रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए युद्ध से बचते हुए वह आक्रामक तेवर दिखाने का कोई मौका अपने हाथों से जाने नहीं दे रहा है। यह बात दक्षिण और पूर्व चीन सागर के विवादित क्षेत्रों में उसके हस्तक्षेप तथा सिक्किम के निकट डोकलाम में 73 दिनों तक भारत के विरुद्ध सैनिकों की तैनाती से स्पष्ट हो जाती है।
रिपोर्ट में चीन द्वारा तेजी से किए जा रहे सैन्य आधुनिकीकरण का भी उल्लेख है जिसमें बताया गया है कि वह लंबी दूरी की सटीक मार करने वाली मिसाइलों, परमाणु बमवर्षक विमानों व पनडुब्बियों से लेकर सूचना, साइबर तथा अंतरिक्ष तक में अपनी सैन्य ताकत को मजबूत करने में जुट चुका है। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की सेना ने हाल में अपने बमवर्षक विमानों के युद्धाभ्यास का विस्तार किया है जो अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ हमलों के लिए सम्भावित प्रशिक्षण हो सकता है।
पैंटागन का अनुमान है कि चीन का रक्षा खर्च 2017 में 190 बिलियन डॉलर से अधिक था और आर्थिक विकास में अनुमानित मंदी के बावजूद चीन का आधिकारिक रक्षा बजट 2028 तक 240 अरब डॉलर से अधिक हो जाएगा और चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम भी तेजी से प्रगति कर रहा है। पी.एल.ए. ने अपनी अंतरिक्ष सैन्य ताकत को भी मजबूत करना जारी रखा है। इसके जवाब में इसी महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2020 तक अमेरिकी ‘स्पेस फोर्स’ तैयार करने की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है। उनका तर्क है कि चीन जैसे अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी युद्ध की स्थिति में अमेरिकी अंतरिक्ष क्षमताओं पर हमला करने के लिए तेजी से तैयारी करते नजर आ रहे हैं।
यह रिपोर्ट तब आई है जबकि व्यापार युद्ध का रूप ले सकने वाले आपसी आयात शुल्क संघर्ष को हल करने की उम्मीद जगाते हुए चीन तथा अमेरिका व्यापार वार्ता आयोजित करने की योजना बना रहे हैं। गौरतलब है कि भारत तथा अमेरिका भी अगले महीने विभिन्न मुद्दों पर आमने-सामने बैठ कर बातचीत करने वाले हैं। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 6 सितम्बर को नई दिल्ली में अपने अमेरिकी समकक्षों जिम मैटिस और माइक पोम्पेओ के साथ संयुक्त वार्ता में हिस्सा लेंगी। अमेरिका, निश्चित रूप में भारत को अपने पक्ष में रखना चाहता है परंतु भारत फिलहाल खुद को तटस्थ रखने का ही प्रयास कर रहा है।
अमेरिका के साथ सैन्य संबंधों को मजबूत बनाने के प्रयासों के बीच नई दिल्ली रूस से एयर डिफैंस मिसाइल सिस्टम के लिए 39,000 करोड़ रुपए के सौदे को भी आगे बढ़ा रहा है। इसी तरह चीन के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत उसके साथ बातचीत जारी रखे हुए है। अमेरिकी रिपोर्ट चीन के आक्रामक तेवरों पर जो रोशनी डाल रही है उसके मद्देनजर हमें भी सचेत रहना होगा कि चीन के बढ़ते कदम तथा हस्तक्षेप की नीति हमारे अस्तित्व अथवा हितों के लिए किसी तरह का संकट न पैदा कर दे और अपनी सैनिक तैयारी को वह हमारे विरुद्ध ही इस्तेमाल न कर दे।
हालांकि हमारी सेना ने 136 राफेल विमानों की जरूरत जाहिर की है परंतु हमें फिलहाल 36 विमान ही मिलने वाले हैं और इसमें भी 2 वर्ष लगेंगे जबकि इस समय हमारे पास जो विमान हैं वे भी पुराने पड़ चुके हैं, लिहाजा आकाश में तो हम असुरक्षित हैं ही, जमीनी युद्ध में भी चीन के वर्चस्व का सामना करने की सामथ्र्य हममें नहीं है। ऐसे में केवल देशभक्ति और सेना के जवानों की समर्पण भावना से ही युद्ध नहीं जीता जा सकता। अत: पहला पग राजनीतिक तौर पर सतर्कता तथा मित्र देशों से सैन्य गठबंधन होना चाहिए।