जारी है-एक पार्टी से दूसरी पार्टी में ‘जाने-आने’ का सिलसिला

Edited By ,Updated: 13 Oct, 2021 03:01 AM

continuing  the process of  going  from one party to another

ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें विभिन्न नेता अपनी मूल पार्टी को छोड़ कर दूसरी पाॢटयों में गए परंतु वहां उपेक्षित होने पर वापस मूल पार्टी में लौट आए। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से दलबदली करके बड़ी संख्या में नेता भाजपा में शामिल...

ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें विभिन्न नेता अपनी मूल पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टियों में गए परंतु वहां उपेक्षित होने पर वापस मूल पार्टी में लौट आए। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से दलबदली करके बड़ी संख्या में नेता भाजपा में शामिल हुए। इनमें से 13 विधायकों को भाजपा ने टिकट दिया परंतु उनमें 4 ही जीत पाए और उसके बाद भाजपा से वापस तृणमूल कांग्रेस में दलबदलुओं की वापसी का सिलसिला शुरू हो गया। पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ दलबदली का यह सिलसिला अन्य पार्टियों में भी जारी है जो मात्र 14 दिनों के निम्र उदाहरणों से स्पष्ट है :

* 29 सितम्बर को गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के पूर्व विधायक ‘लइजिन्हो फलेरियो’ 10 साथियों सहित तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।
* 1 अक्तूबर को पश्चिम बंगाल में रायगंज से भाजपा विधायक कृष्ण कल्याणी ने पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने रायगंज से भाजपा सांसद देवाश्री चौधरी पर अपने विरुद्ध साजिश रचने का आरोप लगाया। इससे कुछ ही दिन पूर्व कलियागंज से भाजपा विधायक ‘सोमन रे’ पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए।
* 1 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ग्यासदीन अनुरागी ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। उन्होंने कहा कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी में उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही थी। इससे पूर्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी के पोते ललितेश त्रिपाठी भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। 

* 5 अक्तूबर को केरल के वायनाड में राहुल के करीबी और जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष पी.वी. बालाचंद्रन ने पार्टी छोड़ दी। बालाचंद्रन ने पार्टी के साथ अपने 52 साल के लम्बे संबंध खत्म करते हुए कहा कि कांग्रेस देश में भाजपा के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में विफल रही है। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदाय इससे दूर जा रहे हैं। लोग उस पार्टी के साथ खड़े नहीं होंगे जिसने अपनी दिशा खो दी है।
इससे पहले हाल ही में पार्टी के एक अन्य पूर्व विधायक के.सी. रोसाकुट्टी, केरल प्रदेश कांग्रेस के सचिव सी.एस. विश्वनाथन तथा जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव अनिल कुमार पार्टी छोड़ चुके हैं।
* 6 अक्तूबर को त्रिपुरा से भाजपा के विधायक आशीष दास ने कोलकाता के कालीघाट मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद पार्टी से त्यागपत्र देने की घोषणा कर दी। 

* 10 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर में नैशनल कांफ्रैंस को तब बड़ा झटका लगा जब इसके 2 प्रमुख नेताओं देवेन्द्र राणा तथा सुरजीत सिंह सलाथिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया तथा 11 अक्तूबर को भाजपा में शामिल हो गए। उल्लेखनीय है कि देवेन्द्र राणा केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह के छोटे भाई हैं तथा 2011 से ही नैशनल कांफ्रैंस के प्रांतीय अध्यक्ष थे। कुछ ही समय के अंतराल में नैशनल कांफ्रैंस के 30 से अधिक सदस्य पार्टी को अलविदा कह चुके हैं।
* 11 अक्तूबर को ही उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी को झटका लगा, जब प्रदेश में भाजपा सरकार के परिवहन मंत्री यशपाल आर्य अपने बेटे संजीव आर्य के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। 
ये दोनों 2017 के चुनावों से ठीक पहले भाजपा में चले गए थे। इस अवसर पर यशपाल आर्य ने कहा, ‘‘यह मेरे लिए एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि मैं अपने परिवार में लौट आया हूं। यह मेरी घर वापसी है। मेरे लिए इससे बढ़ कर खुशी का दिन कोई हो नहीं सकता।’’ 

* 11 अक्तूबर को ही मध्यप्रदेश के रैगांव विधानसभा क्षेत्र के वरिष्ठ बसपा नेता राम निवास चौधरी अपने समर्थकों के साथ बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। 
वास्तव में मूल पार्टी में उपेक्षा होने के कारण ही कोई व्यक्ति उसे छोड़ कर दूसरी पार्टी में जाता है परंतु दूसरी पार्टी में जाने से उसकी वैचारिक प्रतिबद्धता और विश्वसनीयता पर प्रश्रचिन्ह लग जाता है।
यही नहीं, दूसरी पार्टी के साथ पहले से जुड़े लोग उसकी उसी प्रकार जगह नहीं बनने देते जिस प्रकार यात्रियों से भरी बस में सवार होने वाले व्यक्ति के लिए पहले से सीट पर जमा बैठा कोई व्यक्ति अपनी सीट नहीं छोड़ता। 

लिहाजा दूसरी पार्टी में उपेक्षित महसूस करने पर व्यक्ति वापस अपनी मूल पार्टी में जब लौटता है तो उसे पहले वाला सम्मान प्राप्त नहीं होता और उसके करियर पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। इसलिए व्यक्ति ने जिस पार्टी में रह कर अपना स्थान बनाया है उसे छोड़ कर जाने की बजाय उसी पार्टी में रह कर संघर्ष करना चाहिए। इसी प्रकार पार्टी के नेताओं का भी फर्ज है कि वे सुनिश्चित करें कि कर्मठ वर्करों की अनदेखी न हो, उनकी आवाज सुनी जाए और उन्हें उनका बनता अधिकार दिया जाए ताकि दलबदली की नौबत न आए।—विजय कुमार 

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