‘शहीद परिवार फंड में 15 लाख रुपए का योगदान’ श्रीमती आशा शर्मा द्वारा अपने ‘दिवंगत पति की प्रेरणा पर’

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2019 02:25 AM

contributing to shaheed family fund by asha sharma on inspiration late husband

‘पंजाब केसरी ग्रुप’ के संस्थापक पूज्य पिता अमर शहीद लाला जगत नारायण जी शुरू से ही यथासंभव पीड़ितों की सहायता करने और उनके घावों पर मरहम लगाने के अपने सिद्धांत पर अडिग रहे।इसी भावना से उन्होंने 1966 में बिहार के अकाल पीड़ितों के लिए पहली बार ‘बिहार...

‘पंजाब केसरी ग्रुप’ के संस्थापक पूज्य पिता अमर शहीद लाला जगत नारायण जी शुरू से ही यथासंभव पीड़ितों की सहायता करने और उनके घावों पर मरहम लगाने के अपने सिद्धांत पर अडिग रहे। इसी भावना से उन्होंने 1966 में बिहार के अकाल पीड़ितों के लिए पहली बार ‘बिहार रिलीफ फंड’ में 55,000 रुपए भेजे। तब से अब तक ‘पंजाब केसरी’ द्वारा 18 मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री रिलीफ फंड शुरू किए गए जिनके अंतर्गत 66,71,75,453 रुपए की राशि विभिन्न प्रधानमंत्रियों व राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेंट की जा चुकी है।

6 अक्तूबर, 1983 को आतंकवादियों द्वारा पंजाब में ढिलवां के निकट 6 निर्दोष लोगों और 19 नवम्बर को नौशहरा पन्नुआं के पास एक यात्री बस से उतार कर 4 निर्दोषों की हत्या से मर्माहंत ‘पंजाब केसरी परिवार’ ने आतंकवाद पीड़ित परिवारों की सहायता के लिए अपनी ओर से 5500 रुपए के योगदान के साथ ‘शहीद परिवार फंड’ शुरू किया था।

यह विधि की विडम्बना ही रही कि फंड शुरू करने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले बड़े भाई रमेश चंद्र जी इसके कुछ ही समय बाद 12 मई, 1984 को शहीद कर दिए गए। अब तक इस फंड के अंतर्गत 17.68 करोड़ की राशि पाठकों के सहयोग से एकत्रित की गई जिसमें से 14.27 करोड़ रुपए की राशि 9865 पीड़ित परिवारों को बांटी जा चुकी है। यहां उल्लेखनीय है कि ‘शहीद परिवार फंड’ में कुछ गुप्त दानियों ने भी सामने आए बिना अपना योगदान डाला। अनेक महानुभाव हमारे दफ्तर के गेट पर गेटमैन को ही अपनी सहयोग राशि पकड़ा कर चले गए।

इसी सिलसिले में गत दिवस मोहाली से एक बहन आशा शर्मा मेरे पास आईं और कहने लगीं कि ‘‘मैं आपके फंड में देने के लिए यह गहने लेकर आई हूं। आप इन्हें बेच कर उससे प्राप्त होने वाली राशि अपने फंड में मेरे पति ‘स्वर्गीय गुरभाग शर्मा जी’ की याद में योगदान स्वरूप डाल दें।’’ उस बहन की यह बात सुन कर मेरे आश्चर्य की सीमा न रही क्योंकि गहने तो प्रत्येक महिला को जान से भी बढ़ कर प्यारे होते हैं। उन्होंने बताया कि ‘‘मैं यह गहने दिवंगत शर्मा जी की प्रेरणा पर दे रही हूं।’’ फिर भी मैंने गहनों को लेने से इंकार कर दिया। उस समय तो वह चली गईं परंतु फिर अपने भाई श्री परीक्षित कुमार वासुदेवा को लेकर आ गईं तो मैंने उन्हें अपने स्टाफ के दो सदस्यों के साथ ज्यूलर के पास भेज दिया जहां इन्हें बेच कर मिले 15 लाख रुपए का चैक दो दिन बाद उन्होंने ‘शहीद परिवार फंड’ में डालने के लिए भिजवा दिया जो इस फंड में अब तक किसी व्यक्ति का अधिकतम योगदान है।

श्रीमती आशा शर्मा ने बताया कि उनके पति ‘स्व. गुरभाग शर्मा जी’ सत्य और ईमानदारी का सजीव उदाहरण थे। सही अर्थों में वह एक कर्मयोगी, त्यागमूर्ति और श्रेष्ठता के सागर थे और उनकी प्रभु भक्ति इतनी गहरी थी कि बैठे-बैठे किसी भी स्थान पर उनकी समाधि लग जाती थी। ‘‘अभी उन्होंने अपना करियर आरंभ भी नहीं किया था कि वह एक बार पिंजौर में एक फिल्म की शूटिंग देखने चले गए तो वहां इनसे बम्बई आकर फिल्मों में काम करने की पेशकश कर दी गई। जब इन्होंने यह बात अपनी दादी को बताई तो उन्होंने साफ मना कर दिया। इसके बाद उन्होंने अभिनेता बनने का विचार त्याग कर 18 वर्ष की आयु में एच.एम.टी. पिंजौर में एक इंजीनियर के रूप में अपना करियर शुरू किया और फिर 16 वर्ष मर्चैंट नेवी में नौकरी की।’’

‘‘इसके बाद वह कनाडा चले गए और मांट्रियाल में एक शिपिंग कम्पनी में नौकर हो गए। ‘श्री गुरभाग शर्मा’ के उच्च सात्विक जीवन ने मांट्रियाल में अनेक स्थानीय लोगों की जीवनशैली को प्रभावित किया। विदेश में 46 वर्ष रहने के बाद भी वह अपने उच्च भारतीय आदर्शों को नहीं भूले और मुझसे 28 वर्ष जुदा रहने के बाद भी बेदाग रहे।’’

श्रीमती शर्मा जो कुछ समय के लिए इन दिनों मांट्रियाल से भारत आई हुई हैं, ने आगे बताया, ‘‘उन्होंने मुझसे अपने जीवन के अंतिम दिनों में कहा था कि ‘जो कुछ तुम्हारे पास ‘फालतू’ है वह सब कुछ दान कर दो। हम उसे अपने पास रख कर क्या करेंगे।’ उनकी यही बात मुझे छू गई।’’ ‘‘उनके जाने के बाद मैंने किसी नेक काम के लिए अपने गहने दान करने का फैसला कर लिया और अब मैं यह गहने लेकर आपके पास आ गई हूं क्योंकि इनके सदुपयोग के लिए मुझे ‘शहीद परिवार फंड’ ही सबसे सही लगा। आप इन्हें बिकवा कर यह राशि ‘शहीद परिवार फंड’ में डाल दें।’’ ‘शहीद परिवार फंड’ में अपने पति की इच्छा के अनुरूप इतना बड़ा योगदान करके उन्होंने जनसेवा का जो अनोखा और विरल उदाहरण पेश किया है वह अतुलनीय है।—विजय कुमार 

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