‘कोरोना टीके को लेकर विवाद’

Edited By ,Updated: 25 Dec, 2020 03:39 AM

controversy over corona vaccine

सारी दुनिया में पिछले लगभग एक वर्ष से ‘कोरोना महामारी’ के कारण मचे कोहराम के बीच पिछले कुछ समय से कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध हो जाने के राहत देने वाले समाचार आ रहे हैं। अमरीका, यू.के., संयुक्त अरब अमीरात तथा कुछ अन्य देशों में

सारी दुनिया में पिछले लगभग एक वर्ष से ‘कोरोना महामारी’ के कारण मचे कोहराम के बीच पिछले कुछ समय से कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध हो जाने के राहत देने वाले समाचार आ रहे हैं। अमरीका, यू.के., संयुक्त अरब अमीरात तथा कुछ अन्य देशों में अग्रणी दवाई निर्माता कम्पनी ‘फाइजर’ का ही टीका लगाया जा रहा है जिसे सबसे बढिय़ा माना जा रहा हैै। सऊदी अरब आदि देश पहले चीन और रूस निर्मित टीके लगा रहे थे परंतु अब उन्होंने भी ‘फाइजर’ के टीके लगाना शुरू कर दिया है। 

अमरीका ने इसकी 10 लाख और खुराकों का आर्डर दे दिया है ताकि 30 लाख लोगों को टीके लगाए जा सकें। इसके अलावा ‘मॉडर्ना’ तथा ‘एस्ट्राजैनिका’ कम्पनियों के टीके भी लगाए जाएंगे। सारी दुनिया ‘फाइजर’ के टीके को अधिमान दे रही है, परंतु भारत का कहना है कि ‘फाइजर’ के टीके का एशियाई समुदाय के लोगों पर परीक्षण नहीं किया गया है। 

यह तर्क भी सामने आया है कि विदेशी वैक्सीन के आने से भारतीय औषधि निर्माता घाटे की स्थिति में रहेंगे इसलिए भारत सरकार कुछ दुविधा में थी। अब यह कहा जा रहा है कि ‘फाइजर’ के साथ-साथ ‘एस्ट्राजैनिका’ तथा रूसी ‘स्पूतनिक’ का टीका भी मंगवाया जाएगा परंतु अधिक इस्तेमाल भारत निर्मित टीके का होगा। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इसका आर्डर दिया गया है या नहीं और यदि नहीं दिया गया है तो आर्डर देने पर इसके आने में निश्चित रूप से 3-4 महीने का समय लगेगा जिससे निश्चय ही वैक्सीनेशन का काम प्रभावित होगा। 

अभी तक 3 कम्पनियों ने देश के औषधि नियामक ‘सैंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन’ (सी.डी.एस.सी.ओ.) के पास अपने टीके के इस्तेमाल की अनुमति देने के लिए आवेदन किया है। इनमें से ‘सीरम इंस्टीच्यूट’ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित औषधि निर्माता कम्पनी ‘एस्ट्राजैनिका’ के साथ मिल कर वैक्सीन तैयार करेगी जबकि आवेदन करने वाली तीसरी कम्पनी ‘भारत बायोटैक’ है जो देश में 25 स्थानों पर 26,000 लोगों पर टीके के तीसरे चरण का ट्रायल कर रही है। ‘कोवैक्सीन’ नामक यह टीका ‘भारत बायोटैक’ ने ‘इंडियन काऊंसिल आफ मैडीकल रिसर्च’ के साथ मिल कर तैयार किया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत सरकार ने टीके के आने पर इसके वितरण की योजना तैयार कर ली है। 

इसके अलावा जो दूसरा परेशान करने वाला तथ्य सामने आया है वह है कोरोना टीका लगवाने को लेकर धार्मिक लोगों का हस्तक्षेप। हालांकि आधिकारिक तौर पर कुछ भी बताया नहीं गया है कि इस टीके के निर्माण में किन तत्वों का इस्तेमाल किया गया है परंतु कुछ इस्लामिक देशों में इसके ‘हराम’ और ‘हलाल’ होने को लेकर बहस छिड़ गई है तथा इसके बहिष्कार की बात कही जा रही है। इसी प्रकार ‘अखिल भारत हिन्दू महासभा’ के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी महाराज ने कहा है कि सरकार को इसके निर्माण में प्रयुक्त तत्वों की सूची जारी करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अमरीका में गाय के रक्त से निर्मित कोविड-19 के टीके का भारत में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।  उन्होंने इसे हिन्दू धर्म को नष्ट करने का एक षड्यंत्र करार दिया है। 

इस समय जबकि कोरोना से इतनी बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं और सारी दुनिया की सरकारें मौतों को रोकने के लिए सबको टीका उपलब्ध करवाने को प्रयत्नशील हैं, ऐसा आचरण कदापि उचित नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग कार्यक्षेत्र होता है और उसे दूसरों के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अतीत में भी रोगों और उनके इलाज को लेकर इस तरह के विवाद रुढि़वादी लोगों द्वारा खड़े किए जाते रहे हैं। जब पोलियो का टीका आया था तब भी दुनिया के अनेक भागों में ऐसी स्थिति पैदा हो गई थी। आज भी पाकिस्तान में बड़ी संख्या में बच्चों को पोलियो का टीका लगाने की इजाजत रुढि़वादी तत्व नहीं दे रहे। 

अत: सस्ती लोकप्रियता के लिए किसी भी वस्तु के विषय में अपनी भ्रांतिपूर्ण धारणाएं बना लेना गलत है। सब कुछ जांच-परख के बाद ही इस तरह की कोई बात कहनी चाहिए। यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि अपने बचाव के लिए टीका लगवाना हमारी इच्छा पर निर्भर करता है, अत: इसके बहिष्कार का आह्वान करने का वैसे भी कोई औचित्य नहीं बनता। अत: हमारा ध्यान वैज्ञानिक तथ्यों पर केंद्रित होना चाहिए न कि बिना किसी वैज्ञानिक आधार के तर्कहीन बातों द्वारा लोगों को गुमराह किया जाए। यह विशुद्ध रूप से विज्ञान का मामला है।

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