‘कोरोना’ :  सुरक्षा कवच व अन्य चिकित्सा सामग्री के निर्माण में तेजी लाई जाए

Edited By ,Updated: 08 Apr, 2020 01:41 AM

corona  accelerate the manufacture of safety armor and other medical supplies

देश के कुछ हिस्सों में ‘कोरोना’ तीसरी स्टेज में पहुंच गया है जिसे शेष देश में फैलने से रोकने के लिए मैडीकल स्टाफ को अधिक चुस्त करने और निजी सुरक्षा कवच PPE (Personal protective equipment), अन्य आवश्यक संसाधनों और दवाओं से लैस करने की तुरन्त आवश्यकता...

देश के कुछ हिस्सों में ‘कोरोना’ तीसरी स्टेज में पहुंच गया है जिसे शेष देश में फैलने से रोकने के लिए मैडीकल स्टाफ को अधिक चुस्त करने और निजी सुरक्षा कवच PPE (Personal protective equipment), अन्य आवश्यक संसाधनों और दवाओं से लैस करने की तुरन्त आवश्यकता है क्योंकि इनकी कमी से रोगियों, डाक्टरों तथा अन्य मैडीकल स्टाफ में संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है। 

तमाम सरकारी आश्वासनों के बावजूद कोरोना की चुनौती से निपटने में डाक्टरों तथा अन्य मैडीकल स्टाफ को अन्य वस्तुओं के अलावा निजी सुरक्षा कवच (डाक्टरों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक) भी मांग के हिसाब से उपलब्ध नहीं हो रही। ‘कोरोना’ के विरुद्ध लड़ाई में नोडल सैंटर बनाए गए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की ‘रैजीडैंट डाक्टर्स एसोसिएशन’ के अनुसार ‘कोरोना’ से लडऩे के लिए चिकित्सकों तथा अन्य मैडीकल स्टाफ के लिए लगभग 50,000 पी.पी.ई. किट्स, 50,000 एन-95 मास्क, 3 लाख ट्रिपल लेयर मास्क और लगभग 10,000 बोतल सैनेटाइजर (500 एम.एल.) की आवश्यकता है। विभिन्न अस्पतालों का मैडीकल स्टाफ घटिया पी.पी.ई. तथा एन-95 मास्क और सैनेटाइजरों जैसी बुनियादी चीजों की कमी की शिकायत भी कर रहा है। 

कोलकाता में एक प्रमुख डाक्टर ‘इंद्रनील खान’ को 29 मार्च को यह शिकायत करने पर हिरासत में ले लिया गया था कि :‘‘अस्पतालों को सप्लाई की जाने वाली सामग्री घटिया और जरूरत से कम है। ‘कोरोना’ का मुकाबला करना कोई खेल नहीं है...सरकारी अस्पताल संसाधनों से बिल्कुल लैस नहीं हैं जिस कारण डाक्टरों में ही नहीं बल्कि अन्य रोगियों में भी संक्रमण फैलने का खतरा है।’’ इसी प्रकार बेंगलूरू के एक अस्पताल के आई.सी.यू. में कार्यरत डा. रविन्द्र रैड्डïी के अनुसार, ‘‘डाक्टरों को रोगी के शरीर से निकले किसी भी प्रकार के तरल के स्पर्श में आने से बचने के लिए ‘कोरोना’ जैसे लक्षणों वाले और यहां तक कि ‘कोरोना’ के लक्षणों से रहित रोगियों का इलाज करने वाले चिकित्सकों को भी गागल्स, एन-95 मास्क, चेहरा ढंकने वाले ‘शील्ड’ और पी.पी.ई. गाऊनों की आवश्यकता होती है।’’

इस समय जबकि भारत में अपनी चिकित्सा सामग्री संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ अन्य जरूरतमंद देशों को कोरोना के उपचार में जरूरी दवाएं और उपकरण निर्यात करने को लेकर बहस छिड़ी हुई है, भारत में घरेलू जरूरत के लिए चिकित्सा सामग्री की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है। हालांकि देश में पी.पी.ई. तथा अन्य चिकित्सा सामग्री इतनी मात्रा में उपलब्ध नहीं है जिससे घरेलू मांग पूरी हो सके परन्तु जरूरतमंद देश इस उम्मीद से भारत की ओर ताक रहे हैं कि भारत सरकार इस महामारी के दौर में उनकी विभिन्न चिकित्सा उपकरणों आदि की आवश्यकता पूरी करेगी। यदि भारत को अपना अग्रणी औषधि उत्पादक और निर्यातक का दर्जा कायम रखना है तो प्रत्येक औषधि निर्माता को अपने घरेलू बाजार के लिए चिकित्सा सामग्री हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, टैस्टिंग किटों और पी.पी.ई. आदि के निर्माण में तेजी लाकर घरेलू खपत के लिए इसका कोटा निर्धारित करना और शेष सामग्री दूसरे देशों को भेजने में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। 

‘कोरोना’ के इलाज में कथित रूप से एक अन्य संभावनापूर्ण दवाई ‘इवेरमैक्टिन’ है जो आमतौर पर स्कैबीज तथा सूत्रकृमि (राऊंड वर्म) के इलाज में प्रयुक्त होती है। अत: अन्य ‘कम जरूरी’ दवाओं का उत्पादन अस्थायी रूप से बंद करके कोरोना के इलाज में प्रयुक्त संभावित दवाओं का उत्पादन तेज किया जाए। 

भारत में अमरीका के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडों के अनुसार काम करने वाली सर्वाधिक (1300 से अधिक) औषधि निर्माता इकाइयां हैं। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की बीमार पड़ी दवाई निर्माता इकाइयों ‘इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड’ तथा ‘हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड’ आदि को विभिन्न दवाओं और उनमें प्रयुक्त बुनियादी तत्वों का निर्माण तेज करनेे के लिए पुनर्जीवित किया जा सकता है जिसकी इस समय बहुत जरूरत है। भारत इस समय दवाओं के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले लगभग 60 प्रतिशत बुनियादी तत्व विदेशों से मंगवाता है। अत: इस आयात पर निर्भरता घटाने के लिए इनके घरेलू उत्पादन में भी तेजी लाने को एक नई प्रभावशाली नीति बनाने की जरूरत है तभी हम कम लागत पर जरूरी दवाओं का उत्पादन करके अपनी और शेष विश्व की आवश्यकता पूरी कर पाएंगे।—विजय कुमार

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