तालिबान पर ‘कोरोना’ का असर

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2020 10:17 AM

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कई बार कोई पुरानी, जटिल राजनीतिक समस्या सुलझाने के लिए सरकारें एक अनुचित समाधान  खोज लेती हैं और उसे लागू करने के लिए सहमत ही नहीं, कटिबद्ध भी हो जाती हैं। अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता में वापस लाना अमरीकी सरकार का एक ऐसा ही समाधान है । अमेरिकी...

कई बार कोई पुरानी, जटिल राजनीतिक समस्या सुलझाने के लिए सरकारें एक अनुचित समाधान  खोज लेती हैं और उसे लागू करने के लिए सहमत ही नहीं, कटिबद्ध भी हो जाती हैं। अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता में वापस लाना अमरीकी सरकार का एक ऐसा ही समाधान है । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूत जल्माय खलीलजाद, जिन्होंने ‘समझौते’ को बचानेे के लिए तालिबान को व्यापक रियायतें दीं। खलीलजाद इस्लामाबाद की यात्रा के बाद कतर की राजधानी दोहा गए, जहां से तालिबान का राजनीतिक संचालन होता है। उनका अगला पड़ाव काबुल है, जिसकी निर्वाचित सरकार को तालिबान के साथ सभी वार्ताओं से अलग रखा गया था। अब जबकि तालिबान काबुल में कम से कम आंशिक शक्ति पाने के निकट हैं, जिहादी आंदोलन में आंतरिक लड़ाई के संकेत मिल रहे हैं और प्रतिद्वंद्वी गुटों में अपनी विशाल वित्तीय व सैन्य संपत्ति के नियंत्रण के लिए लड़ाई शुरू है। कोरोना वायरस से अफगान तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हैबतुल्ला अखुनजादा  की मृत्यु और कई अन्य वरिष्ठ व्यक्तियों के ‘कोरोना’ से पीड़ित होने की खबरें आ रही हैं, ऐसे में आतंकवादी समूह के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के बेटे ने इस पर नियंत्रण कर लिया है पर अब अफगान सरकार ङ्क्षचतित है कि मुश्किल से प्राप्त शांति प्रक्रिया को तालिबान के भीतर का शक्ति संघर्ष नुक्सान पहुंचा सकता है।

ट्रम्प के प्रतिनिधि के रूप में कैदियों की अदलाबदली पर केंद्रित खलीलजाद की बैठकें प्रगति पर हैं, जिस पर तालिबान के साथ द्विपक्षीय रूप से सहमति हुई थी और इसके अंतर्गत काबुल लगभग 5,000 बंदियों के बदले 5,000 तालिबान कैदियों को रिहा करेगा। एक बार यह काम पूरा हो जाने पर, काबुल और तालिबान के बीच बातचीत शुरू होने वाली है। अफगान मीडिया के अनुसार ऐसा जुलाई तक हो सकता है परंतु मुल्ला हैबतुल्ला अखुनजादा की संभावित मौत के मद्देनजर नई मुश्किलें पैदा हो रही हैं। जब से पाकिस्तान में एक मस्जिद पर बमवर्षा में उनके इमाम भाई की हत्या की गई है, अखुनजादा लगभग एक साल से सार्वजनिक रूप से कहीं दिखाई नहीं दिए हैं। तालिबान के करीबी कई सूत्रोंं के अनुसार, अखुनजादा की मौत कोरोना से हुई। इसीलिए काबुल में एक सूत्र का कहना है कि कई महीनों से, उनके नाम पर हर काम किया जा रहा है, हालांकि तालिबान ने सार्वजनिक रूप से इन्कार कर किया है कि अखुनजादा मर चुका है। अखुनजादा के डिप्टी सिराजुद्दीन हक्कानी थे, जो ऑपरेशन के प्रमुख के रूप में तालिबान की प्रमुख निर्णायक शक्ति थे और अल-कायदा से जुड़े हक्कानी आतंकवादी नैटवर्क का नेतृत्व करते थे। कहा जाता है कि उनकी भी मौत हो गई है । हक्कानी सूत्रों के अनुसार मुल्ला उमर के महत्वाकांक्षी बेटे मुल्ला मोहम्मद याकूब यह रिक्त स्थान भर रहे हैं। तालिबान और अफगान सरकार के अनुसार याकूब ने संगठन के प्रमुख के साथ-साथ अफगानिस्तान से जुड़े मामलों के वित्तीय पोर्टफोलियो में भूमिका निभाई है। वह सैन्य अभियानों को भी नियंत्रित करता था, परंतु याकूब आतंकवादी समूह के भीतर लोकप्रिय नहीं है।

2015 में नेतृत्व के लिए अपना दावा हारने के बाद से, याकूब ने तालिबान के वित्त पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और उनके सलाहकारों ने अब अफीम, खनन, किराया वसूली, जबरन वसूली से वाॢषक राजस्व में लगभग 1.7 बिलियन डॉलर अर्जित किए हैं। खसखस के अलावा कृषि उत्पादों में अचल संपत्ति, निर्माण, दूरसंचार और व्यापार से भी वह पैसा बनाता रहा है। शांति वार्ता में याकूब का सहयोग सर्वोच्च नेतृत्व के लिए इस बात पर निर्भर करता है कि तालिबान के भीतर और बाहर से उसे कितना समर्थन मिलता है! अब तक तालिबान ने समझौते में अमेरिकी मांग की तुलना में वायदे ही किए हैं कि वे अल कायदा के साथ संबंधों में कटौती करेंगे। किन्तु याकूब ने न केवल दूसरे जेहादी ग्रुपों से अपने संबंध मजबूत किए हैं बल्कि अलकायदा को भी वित्तीय और सैनिक मदद का आश्वासन दिया है। इन परिस्थितियों में यदि ट्रम्प ने अफगानिस्तान से नवम्बर तक सेनाएं हटा लीं, जैसा कि वह अपने चुनावी वायदे के मद्देनजर करना चाहते हैं, तो वह देश को उससे भी बदतर स्थिति में छोड़ कर जाएंगे जब वह आए थे! खासकर भारत के लिए यह एक नया सिरदर्द होगा।

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