श्रमिक अपनी गलतियों से ट्रेनों में मरे!

Edited By ,Updated: 08 Jun, 2020 12:59 PM

corona virus lockdown supreme court

कोरोना महामारी के बीच राष्ट्रीय लॉकडाऊन के दौरान फंसे प्रवासी कामगारों को घर पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार 1 मई से श्रमिक ट्रेनें चला रहा है। हाल ही में इन ट्रेनों में अनेक श्रमिकों की भूख से मौत के आरोप लगे हैं परंतु केन्द्र सरकार के अटार्नी जनरल...

कोरोना महामारी के बीच राष्ट्रीय लॉकडाऊन के दौरान फंसे प्रवासी कामगारों को घर पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार 1 मई से श्रमिक ट्रेनें चला रहा है। हाल ही में इन ट्रेनों में अनेक श्रमिकों की भूख से मौत के आरोप लगे हैं परंतु केन्द्र सरकार के अटार्नी जनरल तुषार मेहता ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि श्रमिक ट्रेनों में एक भी प्रवासी श्रमिक की मौत भोजन, पानी या दवा की कमी के कारण नहीं हुई। उनकी मृत्यु वास्तव में ‘पहले ही किसी बीमारी से पीड़ित होने’ के कारण हुई थी। बदले में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली तीन-न्यायाधीश पीठ प्रवासी श्रमिकों के संकट पर स्वयं संज्ञान के तहत सुनवाई कर रही थी। अंतिम आदेशों के लिए मामले को 9 जून तक सुरक्षित रख लिया है। 

श्रमिक स्पैशल ट्रेनों में होने वाली मौतों के बारे में खबरों पर जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया, ‘‘एक जांच में पाया गया है कि कोई भी मौत भोजन, पानी या दवा की कमी से नहीं हुई। जो लोग मारे गए उनमें पहले से कुछ बीमारियां थीं। रेलवे के पास इनका ब्यौरा है। जिन लोगों में बीमारी के लक्षण नजर आए उन्हें नजदीकी अस्पतालों में भेज दिया गया।’’वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने कहा कि खबरों से पता चलता है कि श्रमिक स्पैशल ट्रेनों में यात्रा करते समय कुल 80 व्यक्तियों ने अपनी जान गंवाई। हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक संख्या जारी नहीं की गई है। इसके अलावा मीडिया रिपोर्टस में यह भी कहा गया है कि लॉकडाऊन में कुल 644 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि,‘‘सरकार ने अभी तक स्वच्छता, भोजन और पानी की गुणवत्ता के ‘न्यूनतम मानकों’ का खुलासा नहीं किया है जिन्हें राहत शिविरों आदि में अनिवार्य किया गया था।’’ 

पहले तो तुषार मेहता ने मार्च में कहा था कि सड़कों पर कोई प्रवासी नहीं है और अब वह कह रहे हैं कि मौतें भोजन-पानी आदि की कमी से नहीं बल्कि उनके पहले से ही किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त होने के कारण हुई। इस बारे तो यही कहा जा सकता है कि सरकार यदि मदद नहीं कर सकती तो न करे लेकिन ऐसी बातें कह कर कम से कम उनको और दु:ख तो न पहुंचाए। समझने की बात यह है कि जब त्यौहारों के समय श्रमिक गांवों को लौटते हैं तब भी वे रेल से यात्रा करते हैं परन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह अपने गंतव्य तक पहुंचते हुए अपनी जान गंवा दें। निश्चय ही उनकी यात्रा के प्रबंधन में कुछ कमियां थीं, जिनके सुधार की आवश्यकता है।

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