मुशर्रफ को मौत की सजा देशद्रोह के आरोप में अदालत का फैसला

Edited By ,Updated: 18 Dec, 2019 03:44 AM

court verdict on musharraf s death penalty treason

अंतत: 17 दिसम्बर को देशद्रोह के आरोप में पाकिस्तान की विशेष अदालत ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुना दी। वह पहले ऐसे सैन्य शासक हैं जिन्हें पाकिस्तान के अब तक के इतिहास में मौत की सजा सुनाई गई है। उल्लेखनीय है कि भारत...

अंतत: 17 दिसम्बर को देशद्रोह के आरोप में पाकिस्तान की विशेष अदालत ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुना दी। वह पहले ऐसे सैन्य शासक हैं जिन्हें पाकिस्तान के अब तक के इतिहास में मौत की सजा सुनाई गई है। 

उल्लेखनीय है कि भारत के साथ वर्षों की शत्रुता और 3-3 युद्धों के बाद भी जब पाकिस्तान कुछ न पा सका तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 21 फरवरी, 1999 को श्री वाजपेयी को लाहौर आमंत्रित करके आपसी मैत्री एवं शांति के लिए लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। परन्तु परवेज मुशर्रफ ने, जो उस समय पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे, न तो श्री वाजपेयी को सलामी दी और न ही नवाज शरीफ द्वारा श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में दिए गए भोज में शामिल हुए।

यही नहीं, मई 1999 में कारगिल पर हमला करके 527 भारतीय सैनिकों को शहीद करवाने और पाकिस्तान के 700 सैनिकों को मरवाने के पीछे भी परवेज मुशर्रफ की गंदी सोच ही थी। बाद में उन्होंने नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर उन्हें जेल में डालने के बाद देश निकाला भी दे दिया और स्वयं पाकिस्तान का शासक बन बैठे। 20 जून, 2001 से 18 अगस्त, 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ 14 जुलाई, 2001 को श्री अटल बिहारी वाजपेयी से बातचीत के लिए भारत आए परन्तु बातचीत अधूरी छोड़ कर ही आगरा से वापस पाकिस्तान चले गए थे। 

2007 में हुई बेनजीर भुट्टो की हत्या में संलिप्तता, 3 नवम्बर, 2007 को देश में एमरजैंसी लागू कर संविधान निलंबित करने और चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी सहित 60 जजों को बर्खास्त करने और बाद में अपने विरुद्ध बढ़े असंतोष तथा सम्भावित गिरफ्तारी से बचने के लिए 18 अगस्त, 2008 को त्यागपत्र देकर पाकि स्तान से लंदन भाग गए। 2009 में उनके विरुद्ध दर्ज 60 जजों को बर्खास्त करने के केस के सिलसिले में 2011 में पाकिस्तान की एक अदालत ने उनके गिरफ्तारी वारंट जारी करने के बाद अदालत में पेश न होने पर उन्हें भगौड़ा भी घोषित कर दिया था। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर बेनजीर भुट्टो और लाल मस्जिद के धार्मिक गुरु की हत्या के मामले में भी भगौड़ा घोषित किया गया।

11 मई, 2013 को पाकिस्तान में हुए चुनावों में अपनी पार्टी ‘आल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ का नेतृत्व करने के लिए वह 4 वर्ष विदेश में रहने के बाद 24 मार्च, 2013 को पाकिस्तान लौट आए परन्तु चुनावों में हिस्सा लेकर दोबारा पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने की उनकी कोशिश उस समय नाकाम हो गई जब कराची, इस्लामाबाद, कसूर और चितराल से दाखिल किए हुए उनके चारों नामांकन पत्र चुनाव आयोग ने रद्द कर दिए। 

देश में 3 नवम्बर, 2007 को एमरजैंसी लगाने के जुर्म में उन पर दिसम्बर, 2013 में नवाज शरीफ सरकार की ओर से देशद्रोह का मुकद्दमा दर्ज किया गया और 31 मार्च, 2014 को अदालत ने उन्हें दोषी ठहरा दिया था। हालांकि अलग-अलग अपीलीय फोरम में मामला चलने के कारण परवेज मुशर्रफ का मामला टलता गया और वह पाकिस्तान की धीमी न्यायिक प्रक्रिया का लाभ उठाते हुए 18 मार्च, 2016 को दुबई चले गए। तब उन्होंने कहा था कि वह अपना इलाज करवाने दुबई जा रहे हैं और अपने विरुद्ध मुकद्दमों का सामना करने के लिए जल्दी ही लौटेंगे परन्तु वह पाकिस्तान नहीं लौटे और लगभग 4 वर्ष से दुबई में ही रह रहे थे। विशेष न्यायालय ने पाकिस्तान सरकार से 2016 में स्पष्टीकरण भी मांगा था कि न्यायालय से पूछे बिना अभियुक्त को विदेश जाने की अनुमति क्यों दी? 

मुशर्रफ के विरुद्ध देशद्रोह के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए पाकिस्तान की हाईकोर्ट और विशेष अदालत ने कई बार सम्मन जारी किए परन्तु वह हर बार बीमारी का बहाना बनाकर पाकिस्तान लौटने से इंकार करते रहे। बहरहाल 6 वर्ष तक चले मुकद्दमे के बाद न्यायाधीश वकार सेठ की अध्यक्षता वाली विशेष अदालत की 3 सदस्यीय पीठ ने अंतत: 17 दिसम्बर को बहुमत से देशद्रोह के मामले में मुशर्रफ को मौत की सजा सुना दी। अब उनके पास अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए 30 दिनों का समय है लेकिन इसके लिए उसे अदालत में पेश होना पड़ेगा। अदालत ने मुशर्रफ को नवाज शरीफ से विश्वासघात, कारगिल युद्ध में दोनों पक्षों के निरपराध सैनिकों को मरवाने,  आतंकवाद भड़काने, बेनजीर भुट्टो व अन्य लोगों की हत्याओं व जजों की बर्खास्तगी आदि की सही सजा दी है। ऐसे ही लोगों के कारण पाकिस्तान बर्बाद हुआ है और भारत के साथ संबंध बिगाडऩे के लिए भी ऐसे ही लोग जिम्मेदार हैं।—विजय कुमार

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