दिल्ली विधानसभा चुनाव सिर पर और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष विहीन

Edited By ,Updated: 22 Aug, 2019 12:36 AM

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हाल ही में सम्पन्न लोकसभा चुनावों में यदि दिल्ली में ‘आप’ और ‘कांग्रेस’ में गठबंधन हो जाता तो दोनों को ही कुछ लाभ हो सकता था परंतु अंतिम समय तक वार्ता चलने के बावजूद दोनों दलों में गठबंधन नहीं हुआ और दोनों ही पाॢटयां शून्य पर सिमट गईं। बहरहाल अब...

हाल ही में सम्पन्न लोकसभा चुनावों में यदि दिल्ली में ‘आप’ और ‘कांग्रेस’ में गठबंधन हो जाता तो दोनों को ही कुछ लाभ हो सकता था परंतु अंतिम समय तक वार्ता चलने के बावजूद दोनों दलों में गठबंधन नहीं हुआ और दोनों ही पाॢटयां शून्य पर सिमट गईं। बहरहाल अब लोकसभा चुनावों में मुंह की खाने के बाद लगभग 6 महीनों के भीतर होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केजरीवाल सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं के लिए मैट्रो और बसों में यात्रा मुफ्त करने का दाव खेला है। 

मैट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा सुविधा का प्रस्ताव तो शायद फलीभूत न हो सके अलबत्ता महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा प्रस्ताव का कुछ लाभ ‘आम आदमी पार्टी’ को अवश्य मिल सकता है। दूसरी ओर सफलता के रथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं और ‘आप’ के खेमे में लगातार सेंध लगा रही है। इसी शृंखला में गत 17 अगस्त को ‘आम आदमी पार्टी’ को झटका देते हुए इसके महिला विंग की अध्यक्ष रिचा पांडे मिश्र तथा करावल नगर से ‘आप’ के विधायक रहे कपिल मिश्र ने भाजपा का दामन थाम लिया है। 

जहां सत्ता की होड़ में ‘आप’ और ‘भाजपा’ के बीच बराबर की दौड़ लगी हुई है वहीं कांग्रेस की हालत सबसे खराब है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित की मृत्यु के लगभग एक महीने बाद भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी खाली है। हालांकि इस पद के लिए नवजोत सिंह सिद्धू और शत्रुघ्न सिन्हा के नामों की चर्चा सुनाई दे रही है परंतु इनका दिल्ली में आधार कितना है, इसे लेकर संशय बना हुआ है। इस बारे फिलहाल कोई फैसला नहीं हो सका है और प्रदेश इकाई अध्यक्ष को लेकर अंधेरे में है।

दिल्ली कांग्रेस के एक नेता के अनुसार पार्टी को अभी भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए शीला दीक्षित जैसी ‘पब्लिक अपील’ रखने वाले नेता की तलाश है लेकिन पार्टी को उन जैसा कोई दूसरा नेता मिलना मुश्किल है लिहाजा इस संबंध में फिलहाल कुछ भी कहा नहीं जा सकता। राहुल गांधी के त्यागपत्र के बाद एक राष्ट्रीय अध्यक्ष के अभाव से तो कांग्रेस पहले ही ग्रस्त थी अब दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी खाली होने से इसकी चुनावी संभावनाओं पर असर पडऩा तय है।—विजय कुमार 

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