अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चीन के हाथों भारत की एक और कूटनयिक असफलता

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2016 01:39 AM

diplomat to china and india on the international stage of a failure

पिछले महीने चीन ने दोबारा संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना और पठानकोट आतंकी हमले के मास्टर माइंड मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने की भारत की कोशिश को नाकाम कर दिया था।

पिछले महीने चीन ने दोबारा संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना और पठानकोट आतंकी हमले के मास्टर माइंड मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने की भारत की कोशिश को नाकाम कर दिया था। 

 
गौरतलब है कि गत मास यू.एन. कमेटी में अजहर मसूद को बैन करने पर फैसला होना था। अमरीका और फ्रांस सहित समिति में शामिल 15 में से 14 देश उस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में थे, सिर्फ चीन ने मसूद को बचाने के लिए इसके विरोध में अपने गुप्त वीटो के अधिकार का इस्तेमाल किया था और बाद में इस पर सफाई देते हुए कहा था कि उसे मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित करने संबंधी पर्याप्त सबूत नहीं मिले। 
 
संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ल्यू जियेई का कहना था कि ‘‘मसूद अजहर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित किए जाने की शर्तों के अंतर्गत नहीं आता है। किसी भी लिस्टिंग के लिए यह जरूरी है कि वह शर्तें पूरी करता हो और यह सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी है कि किसी प्रस्ताव को स्वीकृत किए जाने के लिए शर्तें पूरी की गई हों।’’ 
 
इस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि ‘‘प्रतिबंध समिति ने इस मामले में और आतंकवाद से निपटने को लेकर सीमित दृष्टिकोण से काम किया है तथा यह आतंकवाद से निपटने में पक्षपाती रवैया अपना रही है।’’
 
इसके जवाब में पेइचिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि ‘‘हमने तथ्यों और नियमों के आधार पर यह कदम उठाया क्योंकि हम हमेशा आतंकी संगठनों और उनके सरगनाओं पर प्रतिबंध के मामले में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव क्रमांक 1267 के अंतर्गत ही तथ्यों और संबंधित नियमों के अधीन ही निर्णय लेते हैं।’’ 
 
अब 14 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा पर खतरे’ को लेकर खुली बहस में मसूद अजहर पर प्रतिबंध के विरुद्ध वीटो के इस्तेमाल पर भड़कते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य को कभी भी नहीं बताया गया कि क्यों और किस कारण आतंकवादियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया? 
संयुक्त राष्ट्र की अप्रासंगिक प्रक्रियाओं के बखिये उधेड़ते हुए सैयद अकबरुद्दीन ने अलकायदा और तालिबान से जुड़ी प्रतिबंध समितियों के कामकाज को लेकर अपनाई जाने वाली गोपनीयता की कड़ी आलोचना की। 
 
अकबरुद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र समिति से पूछा कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को नहीं बताया गया कि क्यों और किस कारण से आतंकियों को प्रतिबंधितों की सूची में नहीं डाला गया? उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र समिति का काम भरोसा पैदा करना है, न कि गुप्त वीटो के इशारों पर नाचना। 
 
अकबरुद्दीन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के काम करने का तरीका सर्वसम्मति और पहचान गुप्त न रखने के सिद्धांतों पर आधारित है, परन्तु यह आतंकवाद से लडऩे में चयनात्मक दृष्टिकोण अपना रहा है। 
 
बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब चीन ने एशिया में अपने सबसे करीबी साथी पाकिस्तान की मदद के लिए पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन और उसके सरगना पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया हो।
 
यहां उल्लेखनीय है कि 15 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों में चीन भी शामिल है और उसे वीटो का अधिकार प्राप्त है। गत वर्ष जुलाई में भी चीन ने पाकिस्तान की ओर से जकीउर्रहमान लखवी को रिहा किए जाने के निर्णय के विरुद्ध भारत के प्रस्ताव का विरोध किया था।
 
अब भारत ने भले ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा मसूद अजहर को प्रतिबंध सूची में डलवाने में अपनी असफलता पर नाराजगी जता ली है परन्तु कूटनयिक स्तर पर यह भारत की एक और बड़ी असफलता है। एक ओर तो भारत चीन के साथ अपने लटकते आ रहे मसले सुलझाने, उसके साथ व्यापार संबंध बढ़ाने आदि के प्रयास कर रहा है परन्तु भारत से जुड़े अत्यंत संवेदनशील मुद्दों पर इसका साथ न देकर चीन ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि उसके नेताओं के मुंह पर चाहे जो भी हो उनके दिल में कुछ और ही है। 
 

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