Edited By Pardeep,Updated: 22 Jul, 2018 02:40 AM
अमेरिकी लेखक माइकल वैंचुरा ने लिखा था कि ‘‘अपने शत्रु को सावधानी से चुनो क्योंकि आप उनके जैसे ही दिखने लगेंगे। जिस पल आप अपने शत्रु के तौर-तरीके अपनाते हैं, उनकी जीत हो जाती है।’’ कुछ ऐसा ही 20 जुलाई को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान...
अमेरिकी लेखक माइकल वैंचुरा ने लिखा था कि ‘‘अपने शत्रु को सावधानी से चुनो क्योंकि आप उनके जैसे ही दिखने लगेंगे। जिस पल आप अपने शत्रु के तौर-तरीके अपनाते हैं, उनकी जीत हो जाती है।’’ कुछ ऐसा ही 20 जुलाई को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हुआ। लम्बे समय के बाद सभी दलों को अपने विचार सामने रखने का मौका मिला। गुजरात तथा कर्नाटक चुनावों के पश्चात राहुल गांधी खुल कर बोले और नरेंद्र मोदी की ‘हग डिप्लोमेसी’ (गले लगाने की कूटनीति) से प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ कर उन्होंने संसद में प्रधानमंत्री को गले लगा लिया।
शायद उसी समय संसद में जारी नाटक ने महत्वपूर्ण मोड़ लिया क्योंकि मोदी की रणनीति उन्हीं पर आजमाने से जीत नहीं मिलेगी। कांग्रेस को अब यह समझना होगा कि उसे मोदी से अलग एक कहानी गढऩी होगी, कुछ ऐसी जो 2014 के चुनावों से भी जुदा हो। सरकार द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पर बहस को स्वीकार करना अनेकों के लिए हैरान करने वाला कदम रहा पर उसका नतीजा क्या होगा इस पर किसी को शंका नहीं थी। सभी को यकीन था कि सरकार के पास सदन में पर्याप्त संख्याबल है और वह सरलता से यह चुनौती पार कर लेगी। सबका ध्यान तो इसी बात पर था कि 2019 के आम चुनावों के लिए विपक्ष में ऊर्जा भरने के लिए राहुल गांधी इस अवसर का उपयोग किस तरह से करेंगे। सबका ध्यान महागठबंधन पर भी था कि वे एकजुट रह पाएंगे या बिखर जाएंगे?
पहली बार ऐसा हुआ कि लोकसभा में राहुल गांधी का भाषण परिपक्व तथा उनके अपने कैडर के लिए प्रेरक रहा। उन्होंने हर मुद्दा उठाया राफेल सुरक्षा सौदा सहित तमाम मुद्दे उठाए। उनका भाषण कुछ भाजपा सांसदों को विचलित कर रहा था और पहली बार किसी विदेशी सरकार से उसी समय स्पष्टïीकरण मांगा गया जैसा कि राफेल सुरक्षा सौदे के मामले में सरकार ने किया। तो आखिर संसद में चली इस शतरंज की बाजी से देश को क्या मिला? जिन लोगों ने अविश्वास प्रस्ताव का साथ दिया उन्होंने पाया कि बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस अपने कैडर को प्रेरित करने में कामयाब रही है और जो इसके खिलाफ थे वे प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राहुल गांधी के उड़ाए जा रहे उपहास पर हंस रहे थे और एन.डी.ए. सरकार का साथ पाकर काफी संतुष्ट लग रहे थे।
लम्बे और कटाक्षपूर्ण भाषण के दम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के विभिन्न दलों को परोक्ष रूप से भाजपा के साथ चुनाव से पूर्व या चुनाव के बाद जुडऩे का निमंत्रण भी दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने याद दिलाया कि कांग्रेस ने आई.के. गुजराल, चरण सिंह, देवेगौड़ा तथा अन्य अनेक नेताओं से कैसा व्यवहार किया था। भाजपा द्वारा 2014 के बाद उड़ीसा में अपनी काफी जगह बना लेने और नवीन पटनायक के 2 दशक पुराने शासन को चुनौती देने वाली बड़ी शक्ति के रूप में उभरने के कारण शुक्रवार को हुए जबरदस्त नाटक का सर्वाधिक परेशानकुन पहलू था बीजद द्वारा संसद से अनुपस्थित रहना। भाजपा की सबसे पुरानी गठबंधन सहयोगी शिवसेना जो पिछले कुछ समय से भाजपा के विरुद्ध काफी मुखर होकर बोल रही है, का सदन से वाकआऊट कर जाना एक और आश्चर्यजनक घटना थी।
हालांकि सरकार को सदन में अपनी वर्तमान क्षमता से भी अधिक वोट प्राप्त हुए जबकि विपक्षी दल 150 सदस्यीय विपक्षी बैंच में से केवल 126 वोट ही प्राप्त कर सके, सरकार 325 सांसदों का समर्थन प्राप्त करने में सफल हुई जो संकेत है कि बड़ी संख्या में अन्नाद्रमुक के सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट डाला तथा जयललिता की अचानक मृत्यु के बाद पार्टी में फूट के बावजूद यह 2019 के चुनावों में भाजपा के साथ मिल कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। प्रधानमंत्री न सिर्फ अपने मौजूदा साथियों को खुश रखने में सफल रहे बल्कि अपने भाषण में केवल कांग्रेस और इसके नेता राहुल गांधी को ही निशाना बना कर उन्होंने नए लोगों को भी अपने साथ आ मिलने के लिए आमंत्रित करके विपक्ष की एकता पर भी गंभीर प्रश्रचिन्ह खड़ा कर दिया है।
संसद ने अपना बहुमूल्य समय गंवाया जिसे यह बड़े आराम से विचार-विमर्श करने या अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों को पास करने में इस्तेमाल कर सकती थी। कम से कम कांग्रेस को अनिवार्य रूप में यह महत्वपूर्ण सबक सीखना चाहिए कि उसे ठोस तथ्यों और आंकड़ों पर आधारित नई शुरूआत करने की आवश्यकता है और उनके लिए यशवंत सिन्हा की यह उक्ति उपयोगी सिद्ध हो सकती है कि, ‘‘मुद्दा, मोदी नहीं मुद्दा अनेक मुद्दे हैं।’’