आर्थिक मंदी, बेरोजगारी दूर करने और लोगों की बैंकों में जमा रकम की बीमा राशि बढ़ाने की जरूरत

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2019 12:54 AM

economic downturn the need to increase the amount of deposits of people in banks

वर्ष 2014 में लोकसभा चुनावों के समय श्री नरेन्द्र मोदी ने युवाओं के लिए 1 करोड़ नौकरियां सृजित करने का वायदा किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ जिस कारण 3 करोड़ से अधिक बेरोजगार युवाओं के साथ बेरोजगारी आज देश के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। साथ ही देश...

वर्ष 2014 में लोकसभा चुनावों के समय श्री नरेन्द्र मोदी ने युवाओं के लिए 1 करोड़ नौकरियां सृजित करने का वायदा किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ जिस कारण 3 करोड़ से अधिक बेरोजगार युवाओं के साथ बेरोजगारी आज देश के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। साथ ही देश में बैंकों में जमा आम लोगों की रकम की सुरक्षा बारे भी प्रश्न उठने लगे हैं। वित्तीय वर्ष 2018 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत थी जबकि एक समाचारपत्र के अनुसार इस वर्ष देश में 20 अगस्त तक बेरोजगारी की दर 8.3 प्रतिशत हो गई है।
 
ऑटो उद्योग द्वारा 3.5 लाख से अधिक लोगों को नौकरी से निकाला जा चुका है जबकि इस सैक्टर में और लोगों की भी नौकरियां जाने की आशंका जताई जा रही है। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई ‘मासिक उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण’ की सितम्बर महीने की रिपोर्ट में भी भारतीय परिवारों ने देश में रोजगार की स्थिति पर गहरी निराशा जताई है।

सितम्बर, 2012 में इस सर्वेक्षण की शुरूआत करनेे के बाद से यह पहला मौका है जब इसमें शामिल लोगों की बहुसंख्या (52.5 प्रतिशत) के अनुसार देश में रोजगार की स्थिति अब तक के सबसे खराब स्तर पर पहुंच गई है जबकि 33.4 प्रतिशत लोगों का कहना है कि अगले वर्ष यह स्थिति और भी खराब हो जाएगी। अपनी स्वयं की आय के बारे में 26.7 प्रतिशत लोगों का कहना है कि इसमें कमी आई है तथा लगभग आधे (47.9 प्रतिशत) लोगों का कहना है कि देश की समग्र आर्थिक स्थिति पहले से भी खराब हो गई है जबकि 31.8 प्रतिशत लोगों को आशंका है कि अगले वर्ष यह और खराब हो जाएगी।

इस तमाम घटनाक्रम का परिणाम यह हुआ है कि देश में लगभग 30.1 प्रतिशत लोगों ने अपने जरूरी खर्चों में कटौती कर दी है जबकि और 26 प्रतिशत लोग समझते हैं कि भविष्य में उन्हें भी खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी। एक ओर आर्थिक मंदी और बेरोजगारी ने लोगों की चिंता बढ़ाई है तो दूसरी ओर देश के निजी बैंकों में आम लोगों द्वारा जमा करवाई हुई राशि के डूबने की आशंकाओं ने सिर उठाना शुरू कर दिया है।

महाराष्ट्र के ‘पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआप्रेटिव बैंक’ के 4355 करोड़ रुपए के घपले के बाद बैंकों में अपनी राशि जमा करवाने वाले आम जमा कर्ताओं को अपना पैसा डूबने का डर सताने लगा है।‘डिपॉजिट इंश्योरैंस एंड गारंटी कार्पोरेशन’ प्रत्येक जमाकत्र्ता को अधिकतम सिर्फ एक लाख रुपए का‘इंश्योरैंस कवर’ देता है जिसमें मूल रकम और बैंक का लाइसैंस रद्द होने की तारीख तक की ब्याज की रकम शामिल होती है अर्थात बैंक में यदि किसी जमाकर्ता की इससे अधिक राशि होगी तो वह गई। 

भारतीय बैंकों में बीमा के माध्यम से जमाकर्ताओं को दिए जाने वाले संरक्षण के अंतर्गत यह राशि विश्व में सबसे कम हैै। लिहाजा पहले भी 2-3 बार जमाकर्ताओं की राशि को सुरक्षित करने के लिए कोई ठोस कानून लाने और 1 लाख रुपए की सीमा में वृद्धि करने की मांग उठ चुकी है और अब फिर उठाई जा रही है।

इसके साथ ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए इस कानून में विशेष प्रावधान करने की मांग भी की जा रही है जो अपनी बचत का बड़ा हिस्सा फिक्स डिपाजिट में रखते हैं। 7 अक्तूबर को सामने आई भारतीय स्टेट बैंक की ‘रिसर्च रिपोर्ट’ में भी इस बात का उल्लेख करते हुए जमाकर्ताओं के लिए अधिकतम इंश्योरैंस कवर बढ़ाने का सुझाव दिया गया है।
 
लिहाजा जहां इस समय देश में रोजगार और आर्थिकता के मोर्चे पर चल रही निराशाजनक स्थिति को बदलने और मंदी तथा महंगाई की लहर को रोक कर रोजगार के नए अवसर सृजित करने की आवश्यकता है वहीं बैंकों के दिवालिया या ठप्प हो जाने की स्थिति में जमाकर्ताओं की राशि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जमा राशि पर इंश्योरैंस कवर को भी 100 प्रतिशत बढ़ाने की जरूरत हैै।     —विजय कुमार 

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