पंजाब, यू.पी., उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव बदलाव के पक्ष में फतवा

Edited By ,Updated: 11 Mar, 2017 11:20 PM

fatwa in favor of change in elections in punjab up uttarakhand goa and manipur

बेशक जनता से जुड़े कार्य तानाशाही और राजशाही में भी होते हैं परंतु इन....

बेशक जनता से जुड़े कार्य तानाशाही और राजशाही में भी होते हैं परंतु इन दोनों शासन प्रणालियों के अंजाम सुखद नहीं होते जैसा कि हम रूस, चीन, जर्मनी, पोलैंड, हंगरी, बुल्गारिया, बोस्निया-हर्जीगोवा आदि में देख चुके हैं। इसी कारण धीमी प्रक्रिया वाली शासन प्रणाली होने के बावजूद ‘लोकतंत्र’ को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली माना जाता है जिसमें आम लोग शांतिपूर्ण तरीके से अपने मताधिकार द्वारा सरकारों में बदलाव लाते हैं। 

लोकतंत्र में आमतौर पर सत्ता पाने के लिए विभिन्न पार्टियां जनता से वादे तो लम्बे-चौड़े कर देती हैं पर सत्ता में आकर उन्हें पूरा नहीं करतीं। इसीलिए हम लिखते रहते हैं कि अमरीका, सऊदी अरब, जर्मनी, इटली सहित 89 देशों की भांति हमारे देश में भी सरकारों का कार्यकाल पांच वर्ष की बजाय चार वर्ष ही होना चाहिए और सरकारें भी बदल-बदल कर ही आनी चाहिएं। 

ऐसा होने पर निष्क्रिय रहने वाली पार्टियों की सरकारों को जनता उनकी ‘निष्क्रियता’ की सजा दे सकती है। इसके साथ ही हम यह भी लिखते रहे हैं कि मुख्य राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस व कम्युनिस्टों का भी कमजोर होना देश के लिए हानिकारक है। विभिन्न दलों का कलह से दूर व एकजुट रहना भी उतना ही जरूरी है जैसे श्री वाजपेयी ने 23 छोटे-छोटे दल इकट्ठे करके एक मजबूत गठबंधन बना कर देश को सुशासन दिया था। बहरहाल, 2019 के लोकसभा चुनावों के सैमीफाइनल के रूप में देखे जा रहे पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने लगभग सभी उक्त राज्यों में ‘बदलाव’ के पक्ष में ही फतवा दिया है। 

पंजाब में पहली बार चुनाव लड़ रही ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) द्वारा तीनों मुख्य दलों शिअद, भाजपा के गठबंधन और कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने की आशा की जा रही थी। दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने के बाद ‘आप’ ने दिल्ली वासियों को मुफ्त पानी और आधे दाम पर बिजली देने और मोहल्ला क्लीनिकों आदि की स्थापना के रूप में अच्छा काम किया। 

पर ‘आप’ में मची कलह और अरविंद केजरीवाल से मतभेदों के चलते समाजसेवी अन्ना हजारे, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, सुपरकॉप किरण बेदी आदि के पार्टी से अलग होने और पंजाब से पार्टी के चार सांसदों में से 2 को निलंबित करने के अलावा दिल्ली सरकार में अनेक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार, घरेलू हिंसा और यौन शोषण व संदिग्ध लोगों से सम्पर्क तथा चंदा लेने आदि के आरोप लगने के कारण इसकी प्रतिष्ठï को आघात लगा। 

यहां सत्तारूढ़ शिअद-भाजपा गठबंधन ने बेशक अपने कार्यकाल में अच्छे कार्य भी किए परंतु उनके शासन के उत्तराद्र्ध में राज्य में भ्रष्टाचार, लाकानूनी, नशाखोरी आदि में वृद्धि हुई। सरकार की गलत नीतियों से यहां रियल एस्टेट व अन्य उद्योग-व्यवसाय को धक्का लगा, 65,000 से अधिक व्यापारियों, उद्योगपतियों ने अपने वैट के नम्बर लौटा दिए व अनेक उद्योग पंजाब से पलायन कर गए जिससे रुष्ट मतदाताओं ने नैगेटिव मतदान करके 10 साल बाद पुन: कांग्रेस को सत्ता सौंप दी। 

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चूंकि मायावती (बसपा) और फिर अखिलेश यादव (सपा) 5-5 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके थे, लिहाजा इस बार प्रदेश के मतदाताओं ने बदलाव के पक्ष में मतदान किया और 14 वर्ष बाद अंतत: भाजपा ने उत्तर प्रदेश की सत्ता वापस प्राप्त कर ली। उत्तर प्रदेश में पारिवारिक कलह और पार्टी में एकता और नेता जी (मुलायम सिंह यादव) के आशीर्वाद के अभाव के अलावा लाकानूनी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे अखिलेश यादव को महंगे पड़े। 

इसी प्रकार उत्तराखंड में भी कांग्रेस के हाथों से सत्ता खिसक गई। वहां के मतदाताओं ने भी बदलाव की खातिर भाजपा के पक्ष में फतवा दिया और वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस की सफलता सम्बन्धी की गई ज्योतिषियों की भविष्यवाणी गलत सिद्ध हो गई। उपरोक्त सफलता पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी खुशी मना रही है जो उचित है परंतु इस खुशी के जोश में होश रखना भी बहुत जरूरी है।

बेशक इन चुनावों में कांग्रेस को कुछ संजीवनी मिली है परंतु इन परिणामों में देश की दोनों बड़ी पार्टियों के नेताओं के लिए एक सबक भी छिपा है। अत: यह एक अवसर है भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए कि वे जनता की समस्याओं का समाधान करने और उनके अटके हुए काम करवाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने के साथ-साथ पार्टी के सभी वर्करों को साथ लेकर चलें और देश को शुचितापूर्ण शासन व स्वच्छ राजनीति की ओर आगे बढ़ाएं। —विजय कुमार 

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