‘आर्थिक मंदी’ के प्रश्र पर वित्त मंत्री के पति ने ‘सरकार को घेरा’

Edited By ,Updated: 16 Oct, 2019 12:25 AM

finance minister s husband  encircles government  on  economic slowdown

इस समय सरकार देश की विकास दर में 6 साल की सबसे बड़ी गिरावट से जूझ रही है जिसे देखते हुए विरोधी दलों के अलावा स्वयं सत्तारूढ़ भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रह्मïण्यम स्वामी और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी मोदी सरकार की आॢथक नीतियों की...

इस समय सरकार देश की विकास दर में 6 साल की सबसे बड़ी गिरावट से जूझ रही है जिसे देखते हुए विरोधी दलों के अलावा स्वयं सत्तारूढ़ भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना कर चुके हैं। और अब केंद्रीय भाजपा सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति ‘डा. परकला प्रभाकर’ ने भी एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित लेख में मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था की खराब हालत  को सुधारने के लिए मोदी सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिएं। 

‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ से डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त ‘डा. परकला प्रभाकर’ प्रखर वक्ता, प्रशिक्षित अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ तथा आॢथक एवं सामाजिक मामलों के प्रसिद्ध टिप्पणीकार हैं। वह जुलाई 2014 से 2018 तक आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार में संचार सलाहकार रहे। वह सन 2000 के दशक में भाजपा की आंध्र प्रदेश इकाई के प्रवक्ता भी बने थे। बाद में वह अभिनेता चिरंजीवी की ‘प्रजा राज्यम पार्टी’ में चले गए जिसका 2011 में कांग्रेस में विलय हो गया था। 

डा. परकला प्रभाकर ने अपने लेख में लिखा है कि : ‘‘देश की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती को लेकर हर ओर घबराहट का वातावरण है। हालांकि सरकार इसे अस्वीकार कर रही है परन्तु प्रत्येक क्षेत्र में स्थिति अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो चुकी है। भाजपा सरकार आंखें बंद कर मंदी की समस्या से छुटकारा पाना चाहती है और इसे यह समझ नहीं आ रहा  कि आखिर इस सुस्ती की वजह क्या है। 

‘‘सरकार ‘भारतीय जनसंघ’ के दिनों से ही नेहरू के समाजवाद को नकारती आई है। इसकी आर्थिक विचारधारा, राजनीतिक कारणों से सिर्फ नेहरूवादी मॉडल की आलोचना तक सीमित रही परन्तु यह उसका विकल्प देने में विफल रही। इसके अलावा भाजपा स्वयं जिस पूंजीवाद से मुक्त बाजार ढांचे की वकालत करती है, इसने कभी उसका परीक्षण किया ही नहीं। ‘‘गांधीवादी समाजवाद के साथ भाजपा का तालमेल नहीं चल पाया। आर्थिक नीति में पार्टी ने मुख्य रूप से ‘नेति-नेति’ (यह नहीं, यह नहीं) को अपनाया और यह नहीं बताया कि उसकी नीति क्या है। ‘‘वाजपेयी सरकार के समय पार्टी द्वारा चलाया गया अभियान ‘इंडिया शाइनिंग’ मतदाताओं को लुभा न पाने के कारण विफल हो गया क्योंकि मतदाताओं को लगा ही नहीं कि पार्टी का कोई अलग आर्थिक  ढांचा है और इसी कारण 2004 के आम चुनाव में विकास और अर्थव्यवस्था की जो भूमिका पार्टी ने बनाई उसने पार्टी को पराजय का मुंह दिखाया। 

‘‘चूंकि पार्टी का वर्तमान नेतृत्व यह बात अच्छी तरह जानता है इसलिए इसने 2019 के आम चुनावों में ‘चुनावी दाव’ खेलने के लिए अपनी सरकार के आॢथक प्रदर्शन की बात करने की बजाय बड़ी होशियारी से राष्ट्रवाद और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ा। ‘‘भारतीय निजी उपभोग में गिरावट आई है और यह 18 महीनों के निम्रतम स्तर 3.1 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जी.डी.पी. ग्रोथ 6 वर्ष के निम्रतम स्तर 5 प्रतिशत पर पहुंच गई है जबकि बेरोजगारी की दर 45 वर्षों के उच्च स्तर तक जा पहुंची है। 

‘‘देश की खराब अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए वर्तमान मोदी सरकार को जरूरी कदम उठाने चाहिएं परन्तु उसके पास इस संकट से निपटने का कोई रोडमैप नहीं है। लिहाजा इसे पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव और डा. मनमोहन सिंह की आॢथक नीतियों से सीखना तथा राव और मनमोहन सिंह द्वारा अपनाए गए आॢथक मॉडल को अपनाना चाहिए। ‘‘यदि अभी भी मोदी सरकार नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की नीतियों को अपना ले तो देश की अर्थव्यवस्था सुधर सकती है। नरसिम्हाराव की सरकार को भाजपा आर्थिक मोर्चे पर आदर्श के रूप में पेश कर सकती है जैसा कि उसने राजनीतिक मोर्चे पर सरदार पटेल के लिए किया है।’’ 

भाजपा के वरिष्ठ सदस्य श्री सुब्रह्मïण्यम स्वामी तथा श्री रघुराम राजन से भी बढ़ कर स्वयं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करना और इसे नरसिम्हाराव का आदर्श अपनाने की सलाह देने से स्वाभाविक ही मन में प्रश्र कौंधता है कि आखिर उन्हें ऐसी बातें कहने के लिए विवश क्यों होना पड़ा?—विजय कुमार   
  

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