Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jun, 2018 03:20 AM
हालांकि हमारे नेतागण लोगों को सादगी से रहने और फिजूलखर्ची न करने का उपदेश देते थकते नहीं हैं परंतु क्रियात्मक रूप से उन्हीं के मंत्री आदि उनके निर्देशों की परवाह नहीं करते और अपने निजी आराम तथा सुविधाओं के लिए सरकार का पैसा पानी की तरह बहा देते...
हालांकि हमारे नेतागण लोगों को सादगी से रहने और फिजूलखर्ची न करने का उपदेश देते थकते नहीं हैं परंतु क्रियात्मक रूप से उन्हीं के मंत्री आदि उनके निर्देशों की परवाह नहीं करते और अपने निजी आराम तथा सुविधाओं के लिए सरकार का पैसा पानी की तरह बहा देते हैं।
एक आर.टी.आई. से पूछे गए सवालों के जवाब के अनुसार केंद्रीय सरकार के 23 मंत्रियों ने सरकार के पहले 2 वर्षों में ही अपने दफ्तरों की साज-सज्जा पर 3.5 करोड़ रुपए की भारी राशि खर्च कर डाली है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भले ही अपने मंत्रियों को सरकारी बंगलों की सजावट आदि पर फिजूलखर्ची न करने के निर्देश दिए हैं परंतु मंत्रियों पर उनके आदेशों का कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने अपने सरकारी बंगलों की साज-सज्जा पर (टाइल्स से लेकर सोफे तथा प्रसिद्ध देशी-विदेशी ब्रांड के सामान पर) करोड़ों रुपए खर्च कर दिए।
एक ओर हमारे नेताओं द्वारा इस प्रकार सार्वजनिक कोष का अपव्यय किया जा रहा है तो दूसरी ओर उक्त नेताओं के विपरीत कुछ ऐसे नेता भी हैं जो सार्वजनिक धन के अपव्यय और फिजूलखर्ची को कदापि उचित नहीं समझते तथा हमेशा यही कोशिश करते हैं कि जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का सदुपयोग ही हो। इसके दो उदाहरण हाल ही में सामने आए हैं :
पहला उदाहरण वरिष्ठï भाजपा नेता एवं पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा वर्तमान में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री बलरामजी दास टंडन का है जिन्होंने 1 जनवरी, 2016 से की गई अपने वेतन में अढ़ाई गुणा वृद्धि व इसकी बकाया राशि 62.40 लाख रुपए लेने से इन्कार करके अनुकरणीय मिसाल पेश की है। सातवें वेतन आयोग के बाद केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों का वेतन कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारियों से कम होने के कारण उनके वेतन में वृद्धि की गई थी तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस बारे मार्च, 2018 में गजट नोटीफिकेशन जारी किया था।
श्री टंडन ने छत्तीसगढ़ के महालेखाकार को पत्र लिख कर बढ़ाए गए 3.5 लाख रुपए मासिक वेतन के स्थान पर पुराना वेतन 1 लाख 10 हजार रुपए ही लेने की इच्छा जताई है जिसे महालेखाकार ने स्वीकार कर लिया है। श्री टंडन ने अपने पत्र में लिखा है कि, ‘‘अभी जितना मिल रहा है वह मेरे लिए काफी है।’’ वेतन वृद्धि और बकाए न लेने के फैसले के अलावा भी श्री टंडन शुरू से ही सामाजिक सरोकार के कामों में भारी दिलचस्पी लेते रहे हैं तथा वह प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख रुपए आर्थिक सहायता विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं को देते हैं।
दूसरा उदाहरण कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी का है जिन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद राज्य की चरमराई अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए नए मंत्रियों के लिए नई कारें आदि खरीदने के सभी प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने का आदेश दे दिया है। इतना ही नहीं श्री कुमारस्वामी ने अपने मंत्रियों को अपने कार्यालयों और सरकारी आवासों में सरकारी खर्च पर वास्तु संबंधी नियमों के अनुसार नवीकरण पर फालतू खर्च न करने के अलावा अधिकारियों को यथासंभव अन्य अनावश्यक खर्चों में कटौती करने को कहा है।
सार्वजनिक कोष पर बोझ घटाने के लिए श्री कुमारस्वामी ने अपनी विमान यात्राओं के लिए निजी विमान सेवाओं की बजाय राष्ट्रीय विमान सेवा ‘एयर इंडिया’ का ही इस्तेमाल करने का फैसला किया है। आज जबकि देश में सार्वजनिक कोष की एक लूट सी मची हुई है, श्री टंडन द्वारा बढ़ा हुआ वेतन न लेने का फैसला तथा श्री कुमारस्वामी द्वारा अपने मंत्रिमंडलीय साथियों को फिजूलखर्ची से रोकने के आदेश देश के अन्य राज्यों के राज्यपालों, सांसदों, विधायकों तथा प्रशासनिक अधिकारियों आदि के लिए एक सबक के समान हैं जिनका देश के हित में अन्यों को भी अनुसरण करना चाहिए।—विजय कुमार