वैज्ञानिकों के प्रति सरकार की बेरुखी

Edited By ,Updated: 22 Jul, 2019 12:19 AM

government s oppression towards scientists

चंद्रयान-2 को अब सोमवार, 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे लांच किया जा रहा है जो चांद के अब तक अछूते रहे दक्षिण ध्रुवीय इलाके की पड़ताल करेगा। चांद का यह वह इलाका है जहां इससे पहले किसी अन्य देश ने अपना यान उतारने का प्रयास नहीं किया। चंद्रयान-1 के 11...

चंद्रयान-2 को अब सोमवार, 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे लांच किया जा रहा है जो चांद के अब तक अछूते रहे दक्षिण ध्रुवीय इलाके की पड़ताल करेगा। चांद का यह वह इलाका है जहां इससे पहले किसी अन्य देश ने अपना यान उतारने का प्रयास नहीं किया। चंद्रयान-1 के 11 वर्ष बाद भेजा जा रहा पूर्णत: स्वदेश निर्मित चंद्रयान-2 चांद पर उतरने के बाद कई रिकॉर्ड अपने नाम करेगा। वास्तव में 50 से अधिक सैटेलाइट लांच करने वाले इसरो ने इस मिशन को कई अर्थों में अनूठा बना दिया है।

पहली बार इसरो के किसी अभियान का नेतृत्व दो महिलाएं कर रही हैं। इसरो की प्रोजैक्ट डायरैक्टर मुथैया वनिता इलैक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियर हैं और रितु करिधाल मिशन डायरैक्टर हैं। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस (आई.आई.एस.) बेंगलूर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री धारी रितु को ‘रॉकेट वुमन’ के नाम से भी जाना जाता है। इनके अलावा इस मिशन पर काम कर रहे वैज्ञानिकों में 30 प्रतिशत महिलाएं हैं। 

एक ओर जहां इसरो वैज्ञानिक चंद्रयान-2 को लांच करने की तैयारियों में जुटे हैं क्योंकि इसका प्रक्षेपण जुलाई या सितम्बर में ही हो सकता है, वहीं दूसरी ओर 12 जून 2019 के एक आदेश में केन्द्र सरकार ने कहा कि 1 जुलाई 2019 से ‘प्रोमोशनल ग्रांट’ बंद की जा रही है। इस आदेश के बाद ‘डी’, ‘ई’, ‘एफ’ तथा ‘जी’ ग्रेड वैज्ञानिकों को ‘प्रोत्साहन राशि’ (स्टीमुलस अमाऊंट) नहीं मिलेगी। इसरो में 16 हजार वैज्ञानिक तथा इंजीनियर हैं और इस आदेश के बाद 85 से 90 प्रतिशत कर्मचारियों के वेतन में 8 से 10 हजार रुपए की कटौती हो जाएगी। 1996 में वैज्ञानिकों को इसरो में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ‘प्रोमोशनल ग्रांट’ शुरू की गई थी ताकि वे अन्यत्र कहीं रोजगार के लिए इसे न छोड़ें। इसके स्थान पर केवल ‘परफॉर्मैंस रिलेटेड इंसैंटिव स्कीम’ (पी.आर.आई.एस.) लागू की गई है। केन्द्र सरकार ने यह सब छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया है। 

विकट स्थिति का सामना मुम्बई स्थित टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामैंटल रिसर्च (टी.आई.एफ.आर.) को भी करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत एटोमिक एनर्जी डिपार्टमैंट द्वारा चलाए जा रहे इस संस्थान के वैज्ञानिकों तथा विद्वानों को पूरा वेतन नहीं मिल रहा है। फरवरी में उन्हें  आधा वेतन मिला और वह भी देर से। इसकी एक शाखा होमी भाभा सैंटर के सदस्यों का भी कहना है कि देरी तथा किस्तों में अदायगी की वजह से संरक्षण कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। विश्व भर में देश को गौरवान्वित करने वाले 70 वर्ष पुराने इस प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान के प्रति यदि हमारे वित्त मंत्रालय का ऐसा रुख है तो सरकार भला किस तरह देश में ‘वैज्ञानिक सोच’ को प्रोत्साहित कर सकती है। 

इसरो में वैज्ञानिक का शुरूआती वेतन 56,400 रुपए प्रतिमाह है जबकि सांसदों के वेतन में 50 प्रतिशत की बढ़ौतरी ही नहीं की गई बल्कि 2018 के बजट के अनुसार प्रत्येक 5 वर्ष में सांसदों के वेतन पर स्वत: पुनॢवचार की नीति भी लागू कर दी गई है। केन्द्र सरकार प्रत्येक सांसद पर प्रतिमास 2.7 लाख रुपए खर्च करती है और उन्हें नि:शुल्क परिवहन, आवास, इलाज आदि सुविधाएं भी मिलती हैं। कइयों को यह तुलना अनुचित भी लग सकती है परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न वहीं का वहीं है कि अपने वैज्ञानिकों को भला हम किस तरह प्रोत्साहित कर रहे हैं?

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