भारत के सरकारी स्कूल न बिजली, न पानी, न अध्यापक और नदारद अन्य सुविधाएं

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2019 03:44 AM

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लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु इनमें विफल रहने के कारण ही सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने तथा सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने से...

लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु इनमें विफल रहने के कारण ही सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने तथा सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने से हर कोई संकोच करता है। राजस्थान में ‘जीयासर’ सरकारी विद्यालय में केवल एक अध्यापक है और उत्तराखंड के ‘नौगांव’ ब्लाक के ‘गढ़पट्टïी खाटल’ स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय 4 वर्षों से एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहा है। 

बिहार में कायमपुर के निकट ‘अखलासपुर’ स्कूल में 6 कक्षाओं में पढऩे वाले 300 छात्रों की कक्षाएं एक साथ एक ही बड़े हाल में लगाई जा रही हैं जबकि मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में स्टाफ की कमी के बावजूद अनेक स्कूल अध्यापकों को नवनिर्वाचित विधायकों के निजी स्टाफ में लगा दिया गया है। हरियाणा के मेवात में ‘मोहम्मद बास’ स्थित सरकारी मिडल स्कूल में 2 अध्यापकों के स्वीकृत पद हैं लेकिन इनमें से एक पद 2 वर्ष से खाली पड़ा है। स्कूल के सभी छात्रों की पढ़ाई का जिम्मा स्कूल के हैडमास्टर पर है जो स्कूल के अन्य कामों से फुर्सत मिलने पर बारी-बारी सभी कक्षाओं में पढ़ाते हैं। 

पंजाब के 6 सीमांत जिलों के कम से कम 55 स्कूलों में कोई अध्यापक नहीं है तथा सीमा पट्टïी के 150 प्राइमरी व मिडल स्कूलों में 1-1 अध्यापक ही है जबकि पूरे पंजाब के 1000 से अधिक स्कूलों में एक अध्यापक से ही गुजारा किया जा रहा है। अव्यवस्था के शिकार सरकारी स्कूलों में उत्तर प्रदेश के स्कूल भी शामिल हैं। यहां कुल 1,13,500 प्राइमरी स्कूलों में से 40 प्रतिशत स्कूलों में बिजली ही नहीं है और बच्चों को भारी उमस में समय बिताना पड़ता है। ‘इताऊंजा’ गांव का 1913 में स्थापित प्राइमरी स्कूल आज 106 वर्ष बाद भी बिजली के लिए तरस रहा है। स्कूल की पिं्रसीपल नीलिमा गुप्ता के अनुसार, ‘‘कोई हमारी फरियाद नहीं सुनता। गर्मी के मौसम में बड़ी परेशानी होती है और गर्मी से बचाव के लिए बच्चे अपने घरों से हाथ से झलने वाले पंखे लेकर आते हैं।’’ 

प्रतापगढ़, बांदा, झांसी, मेरठ, बुलंदशहर, हमीरपुर, बस्ती, बहराइच, वाराणसी और बाराबंकी जिलों के सरकारी स्कूलों की हालत तो सबसे खराब है। वहां न बिजली है और न अध्यापकों तथा छात्रों के बैठने की संतोषजनक सुविधा। इस भीषण गर्मी के मौसम में भी अनेक स्कूल पीने के पानी तक से वंचित हैं। राज्य की बुनियादी शिक्षामंत्री अनुपमा जायसवाल का कहना है कि उनकी सरकार प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन उपेक्षा के शिकार इन स्कूलों के अनेक अध्यापकों का कहना है कि वर्षों से वे उच्चाधिकारियों से अपने स्कूलों की दयनीय दशा सुधारने की गुहार करते आ रहे हैं परन्तु अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई। 

उत्तर प्रदेश ही नहीं लगभग समूचे देश में ही सरकारी स्कूल बुनियादी सुविधाओं और अध्यापकों की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं जबकि इन्हीं स्कूलों पर देश के बहुसंख्यक बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के लिए निर्भर हैं। यदि यही हालत जारी रहेगी तो फिर देश में शिक्षा का स्तर कैसे ऊंचा उठ सकता है! —विजय कुमारं 

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