Edited By Pardeep,Updated: 08 Jun, 2018 02:56 AM
देश के विभाजन से पूर्व हम लाहौर में रहते थे, जिसे कुश्ती प्रेमी ‘पंजाब में कुश्तियों की राजधानी’ कहा करते थे। अक्सर लोग बड़ी संख्या में वहां होने वाली कुश्तियां देखने जाते थे। लाहौर में रावी नदी की ओर विशाल ‘मिंटो पार्क’ स्थित था जहां उस जमाने में...
देश के विभाजन से पूर्व हम लाहौर में रहते थे, जिसे कुश्ती प्रेमी ‘पंजाब में कुश्तियों की राजधानी’ कहा करते थे। अक्सर लोग बड़ी संख्या में वहां होने वाली कुश्तियां देखने जाते थे।
लाहौर में रावी नदी की ओर विशाल ‘मिंटो पार्क’ स्थित था जहां उस जमाने में कुश्तियां आयोजित हुआ करती थीं। मैंने वहां 1945 में आयोजित फिरोजदीन उर्फ ‘गूंगा पहलवान’ की कुश्ती देखी थी, जिसमें भारी भीड़ थी और ‘गूंगा पहलवान’ ने अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवान को भारी पराजय दी थी। समय बीतने के साथ-साथ देश में पहलवानी की कला लुप्त होती जा रही है। स्वतंत्रता से पूर्व के दौर में जहां देश में अखाड़ों की भरमार थी वहीं अब ये गिनी-चुनी संख्या में और कुछ ही स्थानों पर रह गए हैं।
ऐसे में हिमाचल में तहसील नूरपुर जिला कांगड़ा में ‘गंगथ’ स्थित ‘श्री सिद्ध बाबा क्यालु जी महाराज दंगल गंगथ’ कमेटी के सदस्यों ने मुझे 3,4 और 5 जून को आयोजित किए जाने वाले 3 दिवसीय श्री क्यालु जी महाराज के राज्य स्तरीय विशाल दंगल अर्थात ‘छिंज मेले’ के समापन समारोह में 5 जून को भाग लेने के लिए निमंत्रित किया। इस मेले में पहले दिन लड़कियों के कुश्ती मुकाबले हुए जिनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा की लड़कियों ने हिस्सा लिया तथा दूसरे और तीसरे दिन पुरुषों के मुकाबले हुए।
क्षेत्र के लोगों में ग्राम देवता के रूप में प्रसिद्ध श्री बाबा क्यालु जी महाराज का मंदिर जिला कांगड़ा तहसील नूरपुर के मुख्यालय से 10 कि.मी. दूर पीतल के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध ‘गंगथ’ कस्बे के बस अड्डों पर बना हुआ है। 5 जून को मैं पठानकोट व जसूर के रास्ते ‘गंगथ’ पहुंचा तो वहां दूर-दराज से कुश्तियां देखने पहुंचे कुश्ती प्रेमियों की कारों, स्कूटरों, मोटरसाइकिलों आदि की लंबी कतारों और कुश्ती प्रेमियों की भीड़ देखकर दंग रह गया। हिमाचल के छोटे-से कस्बे मेंवाहनों की इतनी भरमार इस क्षेत्र में आई खुशहाली की कहानी कह रही थी।
भीड़ इतनी अधिक थी कि कहीं से भी आगे जाने का रास्ता न मिलने के कारण आयोजक मुझे गलियों में से ले जा कर कुश्ती आयोजन स्थल पर पहुंचे परंतु इससे पूर्व मुझे एक शिव मंदिर में ले जाया गया जहां स्थित सफेद शिव पिंडी अपने आप में अनूठी है तथा ऐसा माना जाता है कि विश्व भर में इतनी बड़ी सफेद प्राकृतिक शिव पिंडी कहीं भी नहीं है। मंदिर में नतमस्तक होने के बाद मुझे विशाल अखाड़े में ले जाया गया जहां रोशनी आदि का सुंदर प्रबंध था और आई भीड़ के लिए पकौड़ों और जलेबियों आदि के लंगर जगह-जगह पर लगे हुए थे।
वर्षों से आयोजित हो रहे इस ईनामी दंगल में विजेताओं को बड़ी संख्या में पुरस्कार दिए जाते हैं जिसमें इस बार प्रथम पुरस्कार एक ट्रैक्टर, 1 मारुति कार, 8 मोटरसाइकिल, 101 पीतल की वलटोहियां, पीतल की 700 गागरें, एल.ई.डी. व लाखों रुपयों के नकद पुरस्कार शामिल हैं। इस महादंगल में एक से बढ़कर एक पहलवानों ने भाग लिया जिनमें जार्जिया और ईरान के पहलवान, विश्व विजेता पहलवान अहमद मिर्जा, अली शेखाफतो, फरजाद तेहरमानी के साथ नेपाल के देव थापा, भारत के जस्सा पट्टी, हरिकेश खली भी शामिल थे। महादंगल में एक से बढ़कर एक कुश्ती हुई मगर सबसे रोचक और रोमांचक कुश्ती नाटे कद वाले देव थापा नेपाली पहलवान की रही जिसने बढिय़ा प्रदर्शन करते हुए लगातार 4 पहलवानों को बुरी तरह हराया।
अंत में ट्रैक्टर के लिए ईनामी कुश्ती में जस्सा पट्टी ने हरिकेश खली को पटखनी देकर ट्रैक्टर जीत लिया जबकि विश्व चैम्पियन ईरान के अहमद मिर्जा तथा हितेश काला की कुश्ती बराबरी पर रही। इस मौके पर कर्ण सिंह पठानिया उर्फ माल्टू ने 1 लाख 50 हजार रुपए का योगदान प्रबंधक समिति को दिया तथा विजेताओं को कुल 80 लाख रुपए के पुरस्कार आयोजकों की ओर से बांटे गए। इस समारोह में इतनी बड़ी संख्या में देश-विदेश से पहुंचे पहलवानों और उनकी कुश्तियां देखने हजारों की संख्या में प्रतिदिन लोग जमा होते रहे।
लोगों के उत्साह का यह हाल था कि वे आसपास के मकानों की छतों तक पर चढ़ कर दोपहर से रात तक चलने वाली कुश्तियां देखते रहे व अपनी जगह सुरक्षित करने के लिए सुबह सवेरे ही छतों पर आ कर बैठ जाते थे। स्पष्ट है कि देश में कुश्तियों का दौर समाप्त नहीं हुआ है और इस कला को बढ़ावा दिया जाए तो यह विश्व में भारत का नाम रोशन करने व युवाओं में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।—विजय कुमार