Edited By ,Updated: 29 Dec, 2020 03:12 AM
एक ओर दुनिया में कुछ लोगों के पास अपार धन-दौलत है तो दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। अमीरी और गरीबी के इस चक्रव्यूह में फंसे इस संसार में ऐसे दानवीर भी हैं जिनका हृदय दूसरों के लिए धड़कता
एक ओर दुनिया में कुछ लोगों के पास अपार धन-दौलत है तो दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। अमीरी और गरीबी के इस चक्रव्यूह में फंसे इस संसार में ऐसे दानवीर भी हैं जिनका हृदय दूसरों के लिए धड़कता है और वे जरूरतमंदों की सहायता करने का हरसंभव प्रयास करते रहते हैं।
विश्व में ‘बिल गेट्स’ और ‘वॉरेन बफेट’ जैसे दानवीर मौजूद हैं जिन्होंने अपनी कमाई परोपकार के लिए दान कर दी है। भारत में भी रतन टाटा, शिव नाडर, मुकेश अम्बानी तथा अजीम प्रेमजी जैसे दानवीर भी हैं जो अपनी सम्पत्ति का कुछ हिस्सा परोपकार पर खर्च कर रहे हैं। इनसे हट कर कुछ गुमनाम दानवीर भी हैं जो अपनी सीमित कमाई से जरूरतमंदों की सहायता करने का अनूठा उदाहरण पेश कर रहे हैं। हांगकांग की ‘वूसूंग स्ट्रीट’ में एक खेल अकादमी तथा एन.जी.ओ. चलाने वाले ‘आहमेन खान’ इनमें से एक हैं।
‘वूसूंग स्ट्रीट’ में अनेक शानदार होटल और रेस्तरां हैं जहां अमीर लोग खाना खाने आते हैं लेकिन इसी स्ट्रीट के आसपास के इलाकों में बड़ी संख्या में सुविधाओं से वंचित लोग रहते हैं। अमीरों और गरीबों की इस सांझी बस्ती में ‘आहमेन खान’ के रखे हुए एक विशाल ‘स्ट्रीट रैफ्रीजरेटर’ पर लोगों की नजर बरबस ही ठहर जाती है जिस पर लिखा है, ‘‘गिव व्हाट यू कैन गिव, टेक व्हाट यू नीड टू टेक’’ (आप जो दे सकते हैं दे जाइए और जिस चीज की आपको जरूरत है ले जाइए)। ‘आहमेन खान’ के हाकी प्रशिक्षण केंद्र के बाहर रखा यह फ्रिज हर समय तरह-तरह की वस्तुओं इन्स्टैंट नूड्ल्स, बिस्कुट, भोजन सामग्री के डिब्बों और यहां तक कि जुराबों और तौलियों जैसी अन्य वस्तुओं से भरा रहता है।
इस ‘कम्युनिटी रैफ्रीजरेटर’ (सामुदायिक रैफ्रीजरेटर) की प्रेरणा ‘आहमेन खान’ को इसी विषय पर बनी एक फिल्म को देखकर मिली। उन्हें एक ‘कबाड़ केंद्र’ से यह रैफ्रीजरेटर मिल गया और उन्होंने इसकी साफ-सफाई करके तथा नीले रंग में रंग कर सामुदायिक रैफ्रीजरेटर का रूप दे दिया। ‘आहमेन खान’ का कहना है कि, ‘‘जब लोग अपने घर जाकर भरोसे के साथ खाने-पीने की वस्तुओं के लिए अपना फ्रिज खोलते हैं तो उनके अंदर एक अपनत्व की भावना होती है।’’‘‘मैं इस रैफ्रीजरेटर के माध्यम से जरूरतमंद लोगों को अपनत्व का वही एहसास करवाना चाहता हूं और वे इस रैफ्रीजरेटर से किसी भी समय अपनी जरूरत की कोई भी वस्तु ले जा सकते हैं।’’
‘आहमेन खान’ ने अपने इस प्रोजैक्ट को ‘ब्लू रैफ्रीजरेटर प्रोजैक्ट’ नाम दिया है। उनके इस अभियान से सम्पन्न दानी लोग इस कदर प्रभावित हुए हैं कि वे जरूरतमंदों के लिए बड़े सलीके से खाने-पीने और अन्य जरूरत की वस्तुएं पैक करके इस रैफ्रीजरेटर में रख जाते हैं। ‘आहमेन खान’ का कहना है,‘‘अच्छा काम करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि इसे बड़े पैमाने पर ही किया जाए। एक छोटे से काम से भी आप अपनी परोपकार की भावना व्यक्त कर सकते हैं।’’
इस अभियान के प्रति दानी लोगों की दिलचस्पी का आलम यह है कि अनेक लोगों ने तो नियमित रूप से इस रैफ्रीजरेटर में खाने-पीने की वस्तुओं के अलावा जरूरत की अन्य वस्तुएं रख जाने का एक नियम ही बना लिया है। भारत में भी ‘आहमेन खान’ जैसे गुमनाम दानवीर मौजूद हैं जो अपने जरूरतमंद भाई-बहनों की सहायता करके संतुष्टि महसूस करते हैं। ऐसा ही एक सामान्य वर्ग से संबंध रखने वाला परोपकारी है ‘झारखंड’ के ‘लातेहार’ का रहने वाला ‘भोला प्रसाद’।
वह स्वयं तंगहाली में रहते हुए भी जरूरतमंदों को सर्दी के मौसम में पुराने कपड़े उपलब्ध करवा रहा है तथा अपना सामान्य व्यवसाय करने के साथ-साथ घर-घर जाकर लोगों से पुराने कपड़े एकत्रित करके जरूरतमंद लोगों को बांट देता है। यह तो दूसरों की सहायता करने वाले दो परोपकारियों की कहानी है लेकिन ऐसे और लोग भी होंगे, हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम है। अत: इनसे प्रेरणा लेकर दूसरे साधन-सम्पन्न लोगों को आगे आना चाहिए ताकि उनके सद्प्रयासों से जरूरतमंद लोगों की कुछ जरूरतें पूरी हो सकें।
वैसे तो भारत सरकार द्वारा कार्पोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी (सी.एस.आर.) के तहत व्यापारिक घरानों को अपने मुनाफे का 2 प्रतिशत हिस्सा दान में देने का प्रावधान है, इसके अलावा आयकर कानून की धारा 80-जी के तहत भी दान करने पर आयकर से छूट मिलती है लेकिन इन प्रावधानों का फायदा लेने के लिए किए जाने वाले दान के अलावा भी लोगों को परोपकार और दान के लिए आगे आना चाहिए।—विजय कुमार