Edited By Pardeep,Updated: 09 Sep, 2018 03:06 AM
पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी को हमसे बिछड़े आज 36 वर्ष हो चुके हैं। नि:संदेह आज वह सशरीर हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं परंतु ‘पंजाब केसरी पत्र समूह’ पर उनका पूर्ण आशीर्वाद आज भी बना हुआ है। पूज्य पिता जी ने जहां अपने संपादकीय लेखों में देश की...
पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी को हमसे बिछड़े आज 36 वर्ष हो चुके हैं। नि:संदेह आज वह सशरीर हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं परंतु ‘पंजाब केसरी पत्र समूह’ पर उनका पूर्ण आशीर्वाद आज भी बना हुआ है।
पूज्य पिता जी ने जहां अपने संपादकीय लेखों में देश की समस्याओं, राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों पर अपने निर्भीक एवं सटीक विचार नि:संकोच व्यक्त किए वहीं अपनी विचारधारा से जुड़े हर मुद्दे पर दृढ़ स्टैंड लिया। लाला जी के जीवन के इसी पहलू को उजागर करता ‘पंजाब केसरी’ के 10 जुलाई, 1981 के अंक में प्रकाशित संपादकीय लेख यहां प्रस्तुत है।
‘शराब की विनाश लीला’
मैं हर रोज अपने भाषणों में भी और प्राय: इन कालमों में भी लिखता रहता हूं कि शराब की दासता से यह देश सदा के लिए मुक्त करना चाहिए। गत दिनों विषैली शराब पीने से जो मौतें हरियाणा में हुईं उस समय भी मैंने इस बात पर जोर दिया था कि देश में शराबबंदी तुरंत लागू की जानी चाहिए। अब जो खबरें दो दिनों से बंगलौर में जहरीली शराब पीकर मरने वालों की आ रही हैं वे तो बहुत ही हृदयविदारक हैं। इनके अनुसार बंगलौर में विषैली शराब से मृतकों की संख्या अब 240 हो गई है तथा100 व्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच लटक रहे हैं और उनके बचने की आशा कम है।
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने बताया कि मरने वालों में अधिकांश लोग मजदूर वर्ग से संबंधित हैं। डाक्टर बीमारों को बचाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं मगर इस विषैली शराब ने लोगों के गुर्दे-जिगर और दिल खराब कर दिए हैं। मैंने यह खबर विस्तार से इसलिए दर्ज की है ताकि पाठक और केंद्रीय तथा प्रादेशिक सरकारें यह जान सकें कि महात्मा गांधी ने जो यह बात कही थी कि यदि भारत का राज मेरे हाथ में आधे घंटे के लिए भी आ जाए तो मैं सबसे पहला काम भारत में शराब की तमाम दुकानों और फैक्टरियों को बगैर कोई मुआवजा दिए बंद कर देने का करूंगा, वह अकारण नहीं कही थी। उनकी दूरदर्शी आंखों ने यह देख लिया था कि शराब के परिणाम कितने भयंकर होते हैं। उन्होंने यह भी समझ लिया था कि उनके स्वर्गारोहण के पश्चात उनकी नामलेवा सरकारें देश में शराबबंदी लागू नहीं करेंगी और जो कुछ उन्होंने सोचा और समझा था, वही अंतत: सत्य सिद्ध हुआ।
स्वाधीनता के पश्चात तीन वर्ष के लिए जनता पार्टी की सरकार देश में स्थापित हुई। उस समय के प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देसाई ने तमाम संसार में जहां-जहां भी भारतीय दूतावास थे उन्हें यह हिदायत दे दी थी कि किसी भी सरकारी या गैर सरकारी समारोह में शराब न पिलाई जाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रदेश सरकारों से भी यह कहा था कि चार साल के अर्से में देश में पूरी तरह मद्यनिषेध लागू हो जाना चाहिए। मैं यह बात बार-बार लिखता रहा हूं कि भारत को शराब की लानत से बचना चाहिए। बंगलौर में जो सैंकड़ों जानें गई हैं उनका कारण एक ही है कि असली शराब की कीमत ज्यादा रखी गई है और गरीब लोगों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे असली शराब खरीद कर पी सकें। इसलिए नकली शराब का धंधा पूरे जोरों पर चल रहा है और लोग उसके शिकार हो रहे हैं।
जो लोग नकली शराब पीकर नहीं भी मरते उनके भी फेफड़े, जिगर और दिमाग आदि बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं और कुछ अर्सा जिंदा रहने के बाद उनका जीवन भी शराब की नजर हो जाता है। इसलिए केंद्रीय सरकार को चाहिए कि वह देश में पूरी तरह मद्यनिषेध लागू कर दे। मैं रह-रह कर यह बात अपने भाषणों में कहता रहता हूं कि शराब एक ऐसी लानत है जिसका इस्तेमाल केवल घर और परिवारों को ही तबाह नहीं करता बल्कि देश के देश शराब की विनाशलीला का शिकार हो जाते हैं। पाकिस्तान का उदाहरण हमारे सामने है। अगर पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए तो केवल इसलिए क्योंकि उसके सैनिक शराबी थे, जरनैल शराबी थे और स्वयं पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहया खां शराबी थे। काश! गांधी जी की नामलेवा सरकारें भारत में भी पूर्ण नशाबंदी लागू कर सकें। मुझे हैरानी है कि आज आर्य समाज, सनातन धर्म, राधा स्वामी, निरंकारी, नामधारी, जैन और सिख धर्म के अनुयायी सभी शराब पीने के विरुद्ध हैं फिर भी न जाने क्यों 80 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं।
शराब न पीना एक धार्मिक सिद्धांत है अत: सभी धार्मिक नेताओं का यह कत्र्तव्य है कि बढ़ते हुए मदिरापान को समाप्त करने की पूरी कोशिश करें क्योंकि प्रदेश सरकारों से शराबबंदी की हमें कोई आशा नहीं है वे तो शराब को आमदनी का एक बहुत बड़ा साधन मानती हैं, भले ही देशवासियों का चरित्र व जीवन उससे खतरे में पड़ जाए।—जगत नारायण
समय साक्षी है कि पूज्य लाला जी ने अपने उक्त संपादकीय में जो बातें लिखी हैं वह आज भी उतनी ही सार्थक हैं और शराब की वजह से नित्य परिवारों के परिवार उजड़ रहे हैं। आज उनके उक्त संपादकीय के साथ उन्हें स्मरण करते हुए हम पुन: संकल्प लेते हैं कि जिन आदर्शों पर वह अडिग रहे हम भी उन्हीं आदर्शों पर चलते हुए सत्य और निर्भीक, न्यायपूर्ण और निष्पक्ष पत्रकारिता के पथ से कभी भी विचलित न होंगे।—विजय कुमार