भारत के अस्पताल जहां चतुर्थ श्रेणी कर्मी करते हैं ‘रोगियों का इलाज’

Edited By Pardeep,Updated: 11 Aug, 2018 03:38 AM

hospital of india where the fourth class workers  treatment of patients

लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु ये दोनों ही इसमें विफल रही हैं और इसीलिए सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने तथा सरकारी स्कूलों में अपने...

लोगों को सस्ती और स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु ये दोनों ही इसमें विफल रही हैं और इसीलिए सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने तथा सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने से हर कोई संकोच करता है। स्टाफ और बुनियादी ढांचे की कमी के शिकार सरकारी अस्पतालों की बदहाली का अनुमान इसी से लग सकता है कि अनेक सरकारी अस्पतालों में मरहम पट्टी करने वाले तक नहीं हैं तथा उनका काम अप्रशिक्षित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही कर रहे हैं। 

इसमें आप्रेशन थिएटर का काम तक शामिल है तथा अक्षम स्टाफ द्वारा रोगियों का इलाज और मरहम पट्टी करने से अनेक अप्रिय घटनाएं भी होती रहती हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में सराय गोपी स्थित सरकारी अस्पताल को एक ही व्यक्ति चला रहा है। वही डाक्टर और वार्ड ब्वाय दोनों की जिम्मेदारी निभा रहा है। गांव वालों का कहना है कि उन्होंने वहां कभी भी डाक्टर को नहीं देखा। लखनऊ के लोहिया अस्पताल में मरीजों को ड्रिप लगाने, बी.पी. चैक करने, इंजैक्शन लगाने आदि के काम चतुर्थ श्रेणी कर्मी ही कर रहे हैं। स्टाफ नर्सों का काम भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से करवाया जा रहा है। 

ये पाइप लगाने, दवाइयां देने और ई.सी.जी. चैक करने जैसे काम भी करते हैं। उत्तर प्रदेश के अनेक सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज करवाने के लिए पहुंचने वाले रोगियों का कहना है कि अस्पताल में डाक्टर नहीं हैं और उन्हें फार्मासिस्ट, वार्ड ब्वाय और यहां तक कि स्वीपरों तक से दवाई लेनी पड़ती है।19 अगस्त, 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजी शिकायत में ‘जय हो’ नामक एक एन.जी.ओ. ने आरोप लगाया था कि ग्रेटर नोएडा के बसंतपुर प्राइमरी हैल्थ सैंटर में डाक्टरों की अनुपस्थिति की वजह से वहां आने वाले रोगियों का इलाज या तो वार्ड ब्वाय या फार्मासिस्ट द्वारा ही किया जा रहा है। 

10 जून को लखनऊ की किंग जार्ज मैडीकल यूनिवर्सिटी के ट्रोमा सैंटर में उपचाराधीन बच्चों को वार्ड में ले जाते समय वार्ड ब्वाय ने एक ही आक्सीजन सिलैंडर से सभी बच्चों की नली जोड़ दी जिससे एक बच्चे की मृत्यु हो गई। मृतक बच्चे की मां का आरोप है कि मना करने पर वार्ड ब्वाय ने उसे डांट दिया। 20 जुलाई को बलरामपुर के अस्पताल में वार्ड ब्वाय द्वारा गलत तरीके से इंजैक्शन लगा देने के 10 मिनट के भीतर ही 10 रोगियों की जान पर बन आई जिनमें से एक मरीज को तो आई.सी.यू. में भर्ती करना पड़ा। इंजैक्शन लगने के कुछ देर बाद ही मरीज बिस्तर पर पड़े तड़पने लगे और उन्हें उल्टियां होने लगीं। 

24 जुलाई को एक वीडियो में श्रीनगर के एकमात्र हड्डियों और जोड़ों के अस्पताल में एक स्वीपर को एक रोगी की टांग पर पट्टी करते हुए दिखाया गया जिसकी टांग का पिछले 2 वर्षों में तीसरी बार आप्रेशन किया गया था। पूछताछ पर रोगी ने कहा कि उक्त स्वीपर ने कई बार उसकी पट्टी बदली है। इसी अस्पताल के एक अन्य वीडियो में एक स्वीपर अस्पताल के एक वार्ड में सफाई करता हुआ दिखाई दे रहा है जबकि एक अन्य वीडियो में वही स्वीपर एपै्रन तथा टोपी पहने एक रोगी का इलाज करता नजर आ रहा है। 09 अगस्त को फगवाड़ा के सिविल अस्पताल में एक महिला रोगी की टांग का प्लस्तर काटने में लापरवाही का मामला सामने आया। रोगी महिला के परिजनों के अनुसार प्लस्तर खुलवाने के लिए जब वे अस्पताल में गए तो उन्हें आप्रेशन थिएटर में भेज दिया गया जहां दर्जा चार कर्मचारी ओम प्रकाश यादव ने बड़ी लापरवाही से उसका प्लस्तर काटा। इससे उक्त महिला की टांग पर कई जगह कट पड़ गए जिससे उसे काफी तकलीफ हुई। 

करोड़ों रुपयों की लागत से निर्मित सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ, दवाओं और बुनियादी ढांचे की कमी निश्चय ही एक ज्वलंत समस्या है जिसका समाधान यथाशीघ्र ढूंढा जाना चाहिए। नहीं तो इसी प्रकार अस्पतालों में अप्रिय घटनाएं होती रहेंगी। जब सफाई करने वाले और फाइलों को इधर से उधर लाने-ले जाने वाले कर्मचारी ही रोगियों का इलाज करने लगेंगे तो फिर क्या भरोसा कि उनसे इलाज करवाने वाले मरीज जिंदा घर लौट भी पाएंगे या नहीं।—विजय कुमार 

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