Edited By ,Updated: 08 Jul, 2019 03:01 AM
भारतीय दंड संहिता, 1973 का पांचवां अध्याय गिरफ्तारी के मामले से निपटता है। मुख्य अनुच्छेद की धारा 41 उन स्थितियों का उल्लेख करती है जिनमें पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है। इसमें लिखा है, ‘‘कोई पुलिस अधिकारी मैजिस्ट्रेट के आदेश तथा वारंट के बिना...
भारतीय दंड संहिता, 1973 का पांचवां अध्याय गिरफ्तारी के मामले से निपटता है। मुख्य अनुच्छेद की धारा 41 उन स्थितियों का उल्लेख करती है जिनमें पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है। इसमें लिखा है, ‘‘कोई पुलिस अधिकारी मैजिस्ट्रेट के आदेश तथा वारंट के बिना किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है...।’’
किन लोगों को इसके तहत गिरफ्तार किया जा सकता है, इसके बारे में धारा का एक हिस्सा कहता है, ‘‘...जो व्यक्ति पुलिस अफसर के काम में बाधा डालता है।’’ इसके अलावा सरकारी कर्मचारी को धमकाने वाले को धारा 189 के अंतर्गत दो साल तक जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। धारा 186 भी है जो सरकारी कर्मचारी के काम में जानबूझ कर बाधा पैदा करने को अपराध करार देती है। इसके लिए न्यूनतम 3 महीने की जेल हो सकती है।
अपनी ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने वाली धाराओं में से ये कुछेक हैं। तो क्यों गत 10 दिनों के दौरान कम से कम ऐसी 6 घटनाएं सामने आई हैं जिनमें भीड़ या किसी व्यक्ति ने अफसरों को गम्भीर चोट पहुंचाई, फिर भी दोषियों को दंडित करने के लिए उचित कार्रवाई नहीं की गई। एक मामला भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय का है जिसने इंदौर में एक जर्जर मकान को गिराने की कार्रवाई पूरी करने आए अधिकारी को बैट से पीट दिया।
स्वयं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस तरह के व्यवहार की भत्र्सना और खुल कर उसकी आलोचना करने तथा वीडियो रूपी अपराध का पक्का सबूत होने के बावजूद आकाश को गिरफ्तार करने के बाद रिहा कर दिया गया। हिरासत से छूटने पर समर्थकों ने उसे हार-मालाएं पहनाईं और हर्ष फायरिंग करते हुए घर ले जाया गया। हालांकि, घायल अफसर की हालत अथवा उसके द्वारा लिए गए एक्शन के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इसी तरह 5 दिन पहले एक महिला वन अधिकारी सी.अनीता द्वारा गांव वालों को वन क्षेत्र में खेती करने से रोकने पर पर एम.एल.ए. के भाई सहित टी.आर.एस. कार्यकत्र्ताओं ने हमला कर दिया। एम.एल.ए. के भाई ने त्यागपत्र दे दिया और दो पुलिस अफसरों को सस्पैंड किया गया परंतु हमला करने वाली 30 लोगों की भीड़ में से किसी को मामले में आरोपित नहीं किया गया था। कुछ ही दिन बाद तेलंगाना में दो वन अफसरों पर हमला हुआ और मध्य प्रदेश में भी जल माफिया से लड़ रहे एक पुलिस अफसर पर लोगों ने हमला बोल दिया।
ऐसे कितने ही उदाहरण हैं जहां सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने या ऐसा करने वालों पर नाममात्र अथवा कोई कार्रवाई नहीं की गई है। यही चलन रहा तो भला कौन-सा अफसर कानून लागू करवाने के लिए आगे आएगा और कौन गैर-कानूनी गतिविधियों के आगे खड़ा होने की हिम्मत करेगा। फिलहाल वन अधिकारी सी.अनीता खुद पर हमला करने वाली भीड़ के विरुद्ध कार्रवाई करने पर जोर दे रही हैं इसलिए पुलिस ने 26 लोगों को गिरफ्तार किया है परंतु सवाल यही है कि क्या कानून इस मामले को तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचा सकेगा अथवा देर-सवेर यह भी ठंडे बस्ते में समा जाएगा।