Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 02:23 AM
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारत आज भी बहुत पीछे है। ओलिम्पिक खेलों की पदक तालिका में निचले पायदानों पर स्थान पाकर संतोष करने के अलावा हम कुछेक ओलिम्पिक पदकों से ही खुश हो जाते हैं। जहां पिछली ओलिम्पिक खेलों में हमारा प्रदर्शन निराशाजनक रहा...
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भारत आज भी बहुत पीछे है। ओलिम्पिक खेलों की पदक तालिका में निचले पायदानों पर स्थान पाकर संतोष करने के अलावा हम कुछेक ओलिम्पिक पदकों से ही खुश हो जाते हैं।
जहां पिछली ओलिम्पिक खेलों में हमारा प्रदर्शन निराशाजनक रहा वहीं खिलाडिय़ों को रहने और खाने तक की सही जगह नहीं मिली और अन्य अनेक अनियमितताएं हुईं। तब इस संबंध में मचे शोर के बाद कहा गया कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा परन्तु क्या ये दावे एक कागजी शेर मात्र सिद्ध नहीं हो रहे क्योंकि जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखाई देती है। खिलाडिय़ों को नई सुविधाएं उपलब्ध करवाने के बजाय उनसे वर्तमान उपलब्ध सुविधाएं छीनने से पहले भी ढंग से विचार तक नहीं किया जाता।
इसका ही उदाहरण है कि दिल्ली के ऐतिहासिक ध्यानचंद नैशनल स्टेडियम को खिलाडिय़ों की पहुंच से ही दूर कर दिया गया है। स्टेडियम की इमारत को गृह मंत्रालय को किराए पर देने के बाद से खिलाडिय़ों को इसके भीतरी हिस्सों में जाने की इजाजत नहीं है और इसके प्रवेश तथा निकासी द्वारों पर सख्त पहरा है। ऐसे में वे इसके बाहर बने प्रैक्टिस ग्राऊंड्स को ही इस्तेमाल कर सकते हैं। देश की राजधानी दिल्ली के केंद्र में स्थित इस स्टेडियम का महत्व हॉकी खिलाडिय़ों के लिए मक्का से कम नहीं है। देश के प्रथम गणतंत्र दिवस समारोह तथा 1951 में प्रथम एशियाई खेलों की मेजबानी करने वाला यह स्टेडियम अनेक इंटरनैशनल टूर्नामैंट आयोजित करता रहा है।
स्टेडियम में ही राष्ट्रीय हॉकी अकादमी स्थित है और सरकार की ‘कम एंड प्ले’ (आओ और खेलो) स्कीम के तहत हॉकी के अलावा, क्रिकेट, कबड्डी तथा लॉन टैनिस में रुचि रखने वाले युवाओं की जरूरतों को भी यह स्टेडियम पूरा कर रहा था। फिलहाल इन दिनों खेल मुकाबलों के स्थान पर यह ऐतिहासिक स्टेडियम एक अलग ही ‘मुकाबले’ का केंद्र बन कर रह गया है। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) ने इसे गृह मंत्रालय को 4 करोड़ रुपए वार्षिक किराए पर दे दिया ताकि वह स्टेडियम के रखरखाव के बढ़ते खर्च को पूरा कर सके। गृह मंत्रालय को किराए पर दिए जाने की वजह से स्टेडियम एक किले का रूप धारण कर चुका है जहां सुरक्षा के लिए भारी संख्या में पैरामिलिटरी जवान तैनात हैं और आम लोगों का प्रवेश भी वहां मुश्किल हो गया है।
स्टेडियम की मुख्य इमारत में गृह मंत्रालय के विभिन्न विभागों के दफ्तर स्थापित होने के साथ ही अकादमी के छात्रों के लिए यह ‘नो एंट्री जोन’ बन गया है। स्टेडियम के भीतरी हिस्सों में उपलब्ध सुविधाओं का खुल कर प्रयोग करने वाली महिला खिलाडिय़ों के पास अब कपड़े बदलने तक के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है। क्रिकेट मैदान के पास जिस कमरे में टूटा फर्नीचर रखा है कपड़े बदलने के लिए फिलहाल वे उसका इस्तेमाल कर रही हैं। कुछ महिला खिलाड़ी दरवाजे के बाहर खड़ी होकर पहरा देती हैं क्योंकि दरवाजे पर कुंडी तक नहीं है। हॉकी के प्रशिक्षण स्थल पर बने टॉयलेट्स को भी ताला जड़ दिया गया है। इसी प्रकार लड़कों के लिए भी शौच तक की सही व्यवस्था नहीं है और उन्हें पेड़ों के पीछे कपड़े बदलते देखा जा सकता है।
साई के अधिकारियों का कहना है कि तीन-चार महीने पूर्व गृह मंत्रालय ने नॉर्थ ब्लॉक से अपने दफ्तर स्टेडियम में शिफ्ट किए हैं। उनके अनुसार वे यहां किराएदार बन कर आए परंतु अब मकान मालिक बन बैठे हैं। ऐसे में महत्वपूर्ण खेल मुकाबलों के लिए तैयारी करने वाले खिलाडिय़ों का कीमती वक्त अवश्य खराब हो रहा है जिसकी पूर्ति किसी तरह से न हो सकेगी। अब जबकि टोक्यो जापान में 2020 में ओलिम्पिक खेल होने जा रहे हैं तो ऐसे में स्टेडियम का रख-रखाव और आधुनिकतम सुविधाओं की व्यवस्था करना क्या ‘साई’ का दायित्व नहीं होना चाहिए।