Edited By ,Updated: 15 Dec, 2015 12:01 AM
चीन और अमरीका के बाद भारतीय सेना विश्व की तीसरी सर्वाधिक विशाल सेना मानी जाती है जिसने युद्ध के मैदान में अपनी वीरता के झंडे गाड़े हैं परंतु समय के साथ-साथ इसमें अनेक त्रुटियां आ गई हैं।
चीन और अमरीका के बाद भारतीय सेना विश्व की तीसरी सर्वाधिक विशाल सेना मानी जाती है जिसने युद्ध के मैदान में अपनी वीरता के झंडे गाड़े हैं परंतु समय के साथ-साथ इसमें अनेक त्रुटियां आ गई हैं।
सेना के जवान और अधिकारी न सिर्फ अनेक मनोवैज्ञानिक एवं अन्य समस्याओं का शिकार हो रहे हैं बल्कि उनमें आत्महत्याओं का सिलसिला भी लगातार जारी है। वर्ष 2003 से अब तक प्रतिवर्ष सशस्त्र सेनाओं के औसतन 100 से अधिक सदस्य आत्महत्या कर रहे हैं। इनमें थल, जल और नभ तीनों सेनाओं के सदस्य शामिल हैं।
सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों में 2012 में 111, 2013 में 107, 2014 में 112 और 2015 में अभी तक 83 सैनिकों ने आत्महत्या की है। इस अवधि के दौरान ही सशस्त्र सेनाओं के सदस्यों ने अपने 8 साथियों की हत्या भी की।
प्रतिरक्षा राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने 11 दिसम्बर को लोकसभा में बताया कि इन घटनाओं के लिए मुख्यत: काम का जोखिम, पारिवारिक और आर्थिक समस्याएं, निजी परेशानी तथा तनाव आदि जिम्मेदार हैं।
राव इंद्रजीत सिंह का यह भी कहना था कि ‘‘सरकार ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को सलाहकार के रूप में प्रशिक्षित करने के अलावा सैनिकों के रहने और काम की स्थितियों में सुधार, बेहतर बुनियादी ढांचा कायम करने और सुविधाएं उपलब्ध करने, पारिवारिक आवास दिलवाने, अवकाश नीति नर्म बनाने, शिकायत निवारण की व्यवस्था करने और योगा आदि का प्रशिक्षण देने संबंधी पग उठाए हैं।’’
इस संबंध में 2 वरिष्ठ सेनाधिकारियों का कहना है कि ‘‘उक्त पगों से सैनिकों में आत्महत्या के रुझान में कोई कमी नहीं आई है। सैनिकों की सबसे बड़ी चिंता उनके परिवार के सदस्यों को उनकी गैरहाजिरी में दरपेश समस्याओं को लेकर होती है। बार-बार के तबादलों से उनका पारिवारिक जीवन प्रभावित होता है और अपने उच्चाधिकारियों के मुकाबले शीघ्र रिटायरमैंट आयु से उनमें असुरक्षा की भावना पैदा होती है।’’
‘‘मोबाइल फोनों की सहायता से हमारे जवानों को उनके परिवारों से नियमित अपडेट मिलते रहते हैं जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे के अलावा उनके मानसिक तनाव में वृद्धि होती है (जिसका परिणाम कई बार आत्महत्याओं के रूप में निकलता है)।’’
एक अध्ययन के अनुसार सैनिक अपनी पारिवारिक समस्याओं, जिनमें सम्पत्ति संबंधी विवादों से लेकर समाज विरोधी तत्वों द्वारा उनके परिजनों को परेशान करने और अन्य वित्तीय तथा दाम्पत्य संबंधी समस्याएं शामिल हैं, पर ध्यान न दे पाने के परिणामस्वरूप भारी मानसिक तनाव का सामना करते हैं।
इसके अलावा लम्बी ड्यूटी, पूरी नींद न ले पाने, डाक्टरी एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं के अभाव, कम वेतन, पदोन्नति में विलम्ब, अक्षम नेतृत्व और कभी-कभी अधिकारियों के हाथों परेशान किए जाने की घटनाओं से उनकी समस्याओं में और वृद्धि हो जाती है।
जम्मू-कश्मीर एवं उत्तर-पूर्व जैसे सुदूरवर्ती अशांत एवं दुर्गम क्षेत्रों में लगातार लम्बी अवधि की तैनाती और लम्बी अवधि तक छुट्टियां न मिलने के कारण परिवार से दूरी भी उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है जिससे कई बार वे ‘चरम’ पग उठाने को विवश हो जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि उक्त कारणों के अलावा अनेक अन्य कारणों से भी युवाओं का सुरक्षा सेवाओं से मोह भंग हो रहा है और वर्ष 2009 के बाद से 44,000 से अधिक लोग सुरक्षा बलों की नौकरी छोड़ चुके हैं। जानकारों का कहना है कि स्थिति उससे भी कहीं गंभीर है जितनी आंकड़ों में बताई गई है। यदि इस स्थिति में सुधार के लिए ठोस पग न उठाए गए तो सशस्त्र सेनाओं में आत्महत्याओं के रुझान में कमी आने की संभावना नहीं है। यह सिलसिला जारी रहने पर युवाओं का रुझान सुरक्षा बलों में सेवा की ओर से हटता चला जाएगा।