इमरान की आवाज, पाकिस्तानी सेना के शब्द, सोच किसकी?

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2019 03:33 AM

imran s voice the words of the pakistani army whose thinking

माना यह जाता था कि इमरान खान एक रंगीन मिजाज क्रिकेट खिलाड़ी हैं जो सेना के समर्थन से अपनी राजनीति चला रहे हैं और समय-समय पर विभिन्न आतंकवादी गिरोहों के समर्थन में खड़े होते रहे हैं। गत वर्ष 18 अगस्त को उनके प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने पर राजनीतिक...

माना यह जाता था कि इमरान खान एक रंगीन मिजाज क्रिकेट खिलाड़ी हैं जो सेना के समर्थन से अपनी राजनीति चला रहे हैं और समय-समय पर विभिन्न आतंकवादी गिरोहों के समर्थन में खड़े होते रहे हैं। गत वर्ष 18 अगस्त को उनके प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने पर राजनीतिक प्रेक्षकों का यही सोचना था कि वह पाकिस्तान सेना का नया चेहरा हैं, लिहाजा जुबान इमरान की होगी और उनके मुंह में शब्द सेना के होंगे। 

बहरहाल गत वर्ष 18 अगस्त को प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद इमरान का सबसे पहला दौरा सऊदी अरब का था जिससे लगता था कि शायद वह पिछले तानाशाहों की तरह ही कट्टïरवादी नीतियों पर चलेंगे। जहां तक भारत के साथ संबंध सुधारने की बात है इस संबंध में इमरान खान ने चंद पग उठाए। इसके अंतर्गत : 
गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहब और भारत के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक गलियारे के निर्माण पर सहमत होते हुए डेरा बाबा नानक (श्री करतारपुर साहिब) गलियारा खोलने की घोषणा करने के साथ ही 28 नवम्बर, 2018 को पाकिस्तान में इस गलियारे के निर्माण की नींव रखी गई। इसके बनने के बाद भारतीय बिना वीजा के इस पवित्र स्थान के दर्शन करने जा सकेंगे। 

पाकिस्तान जा पहुंचे भारतीय वायु सेना के विमान चालक विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को भारत सरकार की मांग पर 2 मार्च को रिहा करके  उन्हें भारत वापस भेजकर इमरान खान की सरकार ने एक और सकारात्मक संदेश दिया। इसके साथ ही भारत से संबंध सामान्य करने की दिशा में एक और पहल करते हुए 25 मार्च को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में लगभग 5000 वर्ष पुराने शारदा मंदिर को भी हिन्दू तीर्थ यात्रियों के लिए खोलने का प्रस्ताव किया है। 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले इमरान खान ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि, ‘‘अगर भाजपा दोबारा चुनाव जीतती है तो भारत के साथ शांति वार्ता को लेकर अच्छा होगा।’’ कहा गया है कि इमरान मोदी की जीत के लिए ईदगाह पर चादर चढ़ाने भी गए थे। 

इमरान खान ने इसके साथ ही यह भी कहा कि, ‘‘अगर कांग्रेस की सरकार आई तो शायद यह संभव नहीं होगा और अगर फिर मोदी सरकार आती है तो कश्मीर मुद्दे का हल निकल सकता है।’’ इमरान खान ने यह भी कहा है कि, ‘‘कश्मीर विवाद पर भारत के साथ शांति का स्थापित होना इस क्षेत्र के व्यापक हित में होगा। कश्मीर की समस्या को हमेशा के लिए उबलते नहीं रहने दिया जा सकता और दोनों परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बातचीत द्वारा ही अपने मतभेदों को सुलझा सकते हैं।’’ राजनीतिक क्षेत्रों में इमरान खान के उक्त नवीनतम बयान को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब पाकिस्तान की सरकार के नेता ने (चाहे वह तानाशाही सरकार हो या लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार) इस तरह कूटनीतिक बयानबाजी की हो। 

गौरतलब है कि एक ओर तो इमरान खान अपने बयानों में एक के बाद एक  सकारात्मक शब्दावली ही नहीं बल्कि विचार भी रख रहे हैं परंतु दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना ने आतंकवादियों को संरक्षण देना और उन्हें भारत भेजना बंद नहीं किया है। इसी तरह करतारपुर गलियारे संबंधी समिति में खालिस्तानी गोपाल सिंह को शामिल करना और शारदा मंदिर खोलना पाक अधिकृत कश्मीर के रास्ते अपने आतंकवादी गिरोहों की भारत में पहुंच आसान बनाने का संदेह पैदा करता है। यह बात भी ध्यान देने वाली है कि विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई के पीछे भी तीन देशों चीन, अमरीका और सऊदी अरब का दबाव था। भारत सरकार इस समय चूंकि ‘इलैक्शन मोड’ में है, लिहाजा वह इस पर कोई ठोस कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं दे सकती। नई सरकार के बनने के बाद ही भारत सरकार की इस संबंध में कोई ठोस प्रतिक्रिया आएगी। 

इस बीच भारत सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि क्या पाकिस्तान की इस नई नीति के पीछे चीन का हाथ है। चीन जो अपने देश में ‘पुन: प्रशिक्षण’ के नाम पर इस्लाम धर्म को खत्म करना चाहता है लेकिन पाक में अजहर मसूद जैसे आतंकी को यू.एन. कौंसिल के बैन से बचा रहा है ताकि वह पाक अधिकृत कश्मीर सहित वहां विभिन्न परियोजनाओं में 60 हजार बिलियन डालर के निवेश तथा वहां रह रहे अपने 60 हजार चीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। ऐसे में रूस सरकार जो अफगानिस्तान में मजबूत हो रही है, भी पाकिस्तान पर दबाव डाल रही है। ऐसे में क्या भारत को पाक के शांति प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए। क्या चीन केवल अपने सामरिक हित वाले क्षेत्र में ही शांति चाहता है अथवा पूरे पाकिस्तान में!          

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