भाजपा से नाराज नेताओं की बढ़ रही संख्या

Edited By Pardeep,Updated: 25 Jul, 2018 02:05 AM

increasing number of angry politicians from bjp

हालांकि भाजपा आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है और भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों का देश के 19 राज्यों पर शासन है परंतु इसके बावजूद यह एक विडम्बना ही है कि भाजपा में सब ठीक नहीं चल रहा। इसके तथा इसके साथी दलों के नेताओं के बगावती सुर रह-रह कर सुनाई...

हालांकि भाजपा आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है और भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों का देश के 19 राज्यों पर शासन है परंतु इसके बावजूद यह एक विडम्बना ही है कि भाजपा में सब ठीक नहीं चल रहा। इसके तथा इसके साथी दलों के नेताओं के बगावती सुर रह-रह कर सुनाई देते रहते हैं तथा उनकी नाराजगी भी लगातार बढ़ रही है। हाशिए पर डाले गए भाजपा नेता अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा तथा विहिप नेता प्रवीण तोगडिय़ा आदि तो अपनी नाराजगी जताते ही रहते हैं। अब मात्र 15 दिनों में ही पार्टी के 3 नेताओं की नाराजगी सामने आई है जबकि एक सहयोगी दल शिवसेना के साथ खटास बढऩे के समाचार हैं। 

सबसे पहले हरियाणा में 6 साल से भाजपा से जुड़े हुए मास्टर हरि सिंह ने 11 जुलाई को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। मास्टर हरि सिंह लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और हरियाणा की भाजपा सरकार की आलोचना करते आ रहे थे। उन्होंने कहा कि वह एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और इस प्रकार के हालात में उनका हृदय सत्तारूढ़ दल में बने रहने की उन्हें अनुमति नहीं देता। उन्होंने कहा, ‘‘किसानों को सिंचाई के लिए दिए जाने वाले पानी में 17 प्रतिशत कमी आ गई है और सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका उन्होंने सत्ता में आने से पहले वायदा किया था।’’  

मास्टर हरि सिंह ने कहा, ‘‘सबका साथ सबका विकास का नारा भी फेल हो गया है। भाजपा नेता कहते हैं कि अगले संसदीय चुनावों में नरेंद्र मोदी ही एकमात्र विकल्प हैं परंतु वास्तविकता यह है कि इस बार लोग नरेंद्र मोदी को हराने के लिए मतदान करेंगे।’’ उनके बाद पूर्व भाजपा सांसद तथा वरिष्ठ भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण अडवानी के घनिष्ठ सहयोगी तथा दो बार राज्यसभा सांसद रहे चंदन मित्रा ने गत 17 जुलाई को भाजपा से त्यागपत्र देकर 20 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। श्री मित्रा पिछले कुछ समय से भाजपा की आलोचना करते आ रहे थे और उन्होंने मई में कैराना उपचुनाव में भाजपा की पराजय को इसके लिए बहुत बड़ा आघात करार दिया था। 

श्री मित्रा के भाजपा छोडऩे के पांच ही दिन बाद निकट भविष्य में भाजपा छोडऩे का स्पष्टï संकेत देते हुए 22 जुलाई को जम्मू-कश्मीर के पूर्व भाजपा मंत्री लाल सिंह ने ‘डोगरा स्वाभिमान संगठन’ के नाम से एक नए ‘अराजनीतिक’ संगठन के गठन की घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा कि इस संगठन का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर में दशकों से भेदभाव और सौतेले व्यवहार के शिकार डोगरा समुदाय के सम्मान को बहाल करने के लिए संघर्ष को तेज करना है। उन्होंने कहा कि कश्मीर के राजनीतिज्ञों तथा सरकारों द्वारा जम्मू और इसके लोगों की हमेशा उपेक्षा की जाती रही है लेकिन अब समय बदल गया है तथा डोगरा समुदाय भेदभाव बर्दाश्त नहीं करेगा। हालांकि श्री लाल सिंह जोकि कठुआ जिले के बसोहली से सांसद हैं, ने बार-बार कहा कि संगठन एक अराजनीतिक समूह है परंतु इस नए संगठन के लिए घोषित एजैंडा राजनीतिक है। 

जहां भाजपा के अपने लोगों द्वारा पार्टी नेतृत्व के प्रति नाराजगी जताई जा रही है वहीं भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी ‘शिवसेना’ के साथ भी उसका ‘36’ का आंकड़ा’ बना हुआ है। इसका नवीनतम प्रमाण उस समय मिला जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा महाराष्ट्र में 2019 के चुनाव अकेले लडऩे की तैयारी करने के आह्वान के बाद उद्धव ठाकरे ने भी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव अकेले लडऩे की घोषणा कर दी है और कहा है कि वह आम लोगों के सपनों के लिए लड़ रहे हैं, प्रधानमंत्री के सपनों के लिए नहीं।

किसी भी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पार्टी के प्रति नाराजगी भरे उद्गार व्यक्त करना और पार्टी छोडऩा या पार्टी में रहते हुए भी अलग संगठन बनाने की घोषणा करना और दो दशक से अधिक समय से साथ चलते आ रहे सहयोगी द्वारा सम्बन्ध तोडऩे की घोषणा करना इस बात का स्पष्टï संकेत है कि कहीं न कहीं तो कुछ गड़बड़ अवश्य है। अत: भाजपा नेतृत्व को इस घटनाक्रम पर मंथन करने की आवश्यकता है और ऐसा न करना आने वाले चुनावों को देखते हुए इसके लिए नुक्सानदेह सिद्ध हो सकता है!—विजय कुमार   

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