भारत सुपर पावर बन सकता है, बशर्ते...

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Dec, 2017 02:45 AM

india can be a super power provided

अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद बराक ओबामा की पहली भारत यात्रा समाप्त हो गई है। इस दौरान नई दिल्ली में एच.टी. समिट में उन्होंने कई मुद्दों पर अपने विचार रखे। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण शायद उनका यह आकलन था कि ‘‘भारत-अमेरिका एक...

अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद बराक ओबामा की पहली भारत यात्रा समाप्त हो गई है। इस दौरान नई दिल्ली में एच.टी. समिट में उन्होंने कई मुद्दों पर अपने विचार रखे। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण शायद उनका यह आकलन था कि ‘‘भारत-अमेरिका एक साथ काम करें तो ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसे हल न किया जा सके।’’ 

दोनों देशों के बीच सहयोग को लम्बा वक्त हो चुका है। इसकी शुरूआत राष्ट्रपति किं्लटन के कार्यकाल के दौरान हुई थी जिसके चलते भारत-अमेरिका में लगातार नजदीकियां बढ़ी हैं। ओबामा ने उन घटनाओं की याद ताजा की जब दोनों देशों ने मिल कर कठिन स्थितियों का सामना किया था जैसे कि वैश्विक मंदी से निपटना (तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ) तथा पैरिस जलवायु समझौता (प्रधानमंत्री मोदी के साथ)। इस सबके बीच एक अहम तथ्य यह है कि इस वक्त ये दोनों लोकतंत्र एक साथ खड़े रहे हैं तब शासन तंत्र के रूप में लोकतंत्र पर ही खतरा मंडराने लगा है और इन परिस्थितियों में दोनों ने मिल कर अनेक वैश्विक समस्याओं को हल करने में सफलता पाई। 

महत्वपूर्ण है कि विश्व मंच पर शक्तियों के पुनर्केंद्रण के बीच भारत एक बार फिर विश्व राजनीति के केंद्र में आ चुका है। शीत युद्ध के दौरान तथा उसके बाद के दौर में अमेरिका तथा रूस ही दो विश्व शक्तियां थीं परंतु चीन के आर्थिक विकास तथा शी जिनपिंग की नई आक्रामक विदेश नीति के चलते वह तेजी से विश्व शक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहा है। ऐसे में भारत अन्य सुपर पावर बन सकता है यदि यह अपनी भूमिका तथा नीतियों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाए। चीन ने अफ्रीकी नीतियों में गहरी पैठ बना ली है और भारत के भी अफ्रीकी देशों के साथ पुराने तथा अच्छे रिश्ते हैं। यूरोप में ब्रिग्जिट के बाद ब्रिटेन भी भारत को एक बड़े आॢथक सहयोगी के रूप में देख रहा है। यदि यूरोपियन यूनियन के नए देश चीन से आर्थिक सहायता ले रहे हैं तो फ्रांस, जर्मनी जैसे पुराने लोकतंत्र भारत को सम विचारों वाले लोकतंत्र के रूप में देखते हैं जिसके साथ वे व्यापार करना चाहेंगे। 

यदि चीन दक्षिण एशिया में कदम बढ़ाते हुए जापान, दक्षिण कोरिया के साथ नए संबंध बनाने का प्रयास कर रहा है तो भारत के इन दोनों के साथ पहले ही प्रगाढ़ संबंध हैं। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक वैश्विक सम्पर्क मार्ग बनाने की चीन की महत्वाकांक्षी तथा विशाल परियोजना ‘वन बैल्ट वन रोड’ बेशक विशाल विश्व आर्थिक मंच बनाने का प्रयास है परंतु दूसरी ओर भारत चाबहार बंदरगाह को पहले ही विकसित कर चुका है जो ईरान, अफगानिस्तान, रूस, अजरबाईजान तथा खाड़ी के अन्य देशों को जोड़ता है। भारत को इस बात का भी अतिरिक्त लाभ है कि मध्य-पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ इसके सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। तुर्की, ईरान, अजरबाईजान के साथ भारत का खानपान तथा सांस्कृतिक विचारधाराएं मेल खाती हैं तो बौद्ध तथा हिन्दू धर्म दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ इसके संबंध प्रगाढ़ करते हैं। 

कहा जा सकता है कि भारत एक बार फिर से उस ङ्क्षबदू पर है जहां वह 1947 में था जब एक दौर की समाप्ति हुई और लम्बे वक्त से दबा कर रखे गए राष्ट्र की आत्मा को अपनी आवाज हासिल हुई थी। जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, ‘‘यदि भारत सक्रिय रहता है, अपनी विदेश नीतियों की भूमिका को अधिक सक्रियता से आगे बढ़ाता है तो यह तीसरी दुनिया की आवाज ही न रहते हुए विश्व शक्ति की आवाज बन सकता है।’’ हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां हमारी आॢथक नीतियां, प्रशिक्षित मानव संसाधन, हमारी संस्कृति तथा विचारों की विविधता, असहमतियों के प्रति सहनशीलता, उभरते हुए राष्ट्रों के साथ  हमारे संबंध तथा परियोजनाएं विश्व इतिहास के स्वरूप को बदल सकती हैं। आखिर कौन-सा अन्य देश एक ओर इसराईल तो दूसरी ओर सऊदी अरब के साथ जुड़ सकता है अथवा एक ओर अमेरिका तो दूसरी ओर रूस तथा ईरान से संबंध रख सकता है। 

हमारा देश चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा अमेरिका के साथ संबंध गहरे तो कर ही रहा है, वह चीन के साथ भी अपने संबंधों को नया रूप देने का प्रयास जारी रखे हुए है। चाहे आतंकवाद से सामना हो या आॢथक विकास हो, भारत वैश्विक मंच के केंद्र पटल पर काबिज है। जैसे कि शेक्सपियर ने कहा था, ‘हर इंसान के जीवन में एक अवसर आता है जब वह उस मार्ग पर कदम बढ़ाता है जो उसे सफलता तक ले जाता है परंतु यदि वह अवसर का सही उपयोग करने में असमर्थ रहता है तो वह जीवन भर के लिए असफल रह जाता है।’

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