डोकलाम में सैन्य गतिरोध के बाद भारत-चीन वार्ता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Nov, 2017 02:27 AM

india china talks after military standoff in dokalam

भारत और चीन ने सिक्किम सैक्टर के डोकलाम और लद्दाख में कुछ समय पूर्व हुए सैन्य गतिरोध के बाद 17 नवम्बर को सीमा के सभी सैक्टरों में स्थिति की समीक्षा की और इस बात पर सहमति जताई कि बेहतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए दोनों देशों के बीच शांति बनाए रखना...

भारत और चीन ने सिक्किम सैक्टर के डोकलाम और लद्दाख में कुछ समय पूर्व हुए सैन्य गतिरोध के बाद 17 नवम्बर को सीमा के सभी सैक्टरों में स्थिति की समीक्षा की और इस बात पर सहमति जताई कि बेहतर द्विपक्षीय संबंधों के लिए दोनों देशों के बीच शांति बनाए रखना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि सिक्किम सैक्टर के डोकलाम में 72 दिनों तक चले गतिरोध के बाद दोनों देशों के बीच यह पहली ऐसी वार्ता थी। 

पेइचिंग स्थित भारतीय दूतावास द्वारा 17 नवम्बर को जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि दोनों पक्षों ने भारत-चीन सीमा मामलों पर सलाह तथा समन्वय तंत्र (वर्किंग मकैनिज्म फार कंसल्टेशन एंड कोआर्डिनेशन अर्थात डब्ल्यू.एम.सी.सी.) की पेइचिंग में हुई दसवीं बैठक में सीमा पर स्थिति की समीक्षा की गई जो रचनात्मक रही और इसमें आगे की राह पर चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने परस्पर विश्वास बढ़ाने के उपायों तथा दोनों सेनाओं के बीच विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने पर भी चर्चा की तथा इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सीमांत इलाकों में अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के सतत विस्तार की पूर्व शर्त है जिसके लिए दोनों पक्षों ने विश्वास बहाली उपायों एवं दोनों देशों के सैन्य संपर्कों को मजबूत करने को लेकर विचारों का आदान-प्रदान किया। 

इस बातचीत में भारतीय पक्ष का नेतृत्व विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) प्रणय वर्मा तथा चीन का नेतृत्व एशियाई मामलों के विभाग के महानिदेशक श्याओ कुआन ने किया। इसके अलावा दोनों ओर से राजनयिक एवं सैनिक अधिकारियों ने भी इस वार्ता में भाग लिया। उल्लेखनीय है कि डोकलाम विवाद को अभी मात्र अढ़ाई महीने ही बीते हैं परंतु यह विवाद कोई इसी वर्ष पहली बार सामने नहीं आया बल्कि यह काफी पुराना है। इसी कारण भारत-चीन सीमा पर बार-बार होने वाली घुसपैठ से पैदा होने वाले तनाव से निपटने और सीमा सुरक्षा कर्मचारियों के बीच संवाद सहित संचार एवं सहयोग को मजबूत करने, शांति बनाए रखने तथा दोनों पक्षों के बीच सैन्य अधिकारियों सहित अन्य स्तरों पर संपर्क के लिए इस वार्ता प्रक्रिया अर्थात डब्ल्यू.एम.सी.सी. की 2012 में स्थापना की गई थी। ऐसा करते समय दोनों पक्षों के सुरक्षा कर्मियों के बीच संवाद और सहयोग को मजबूत रखने के विचार का भी इसमें ध्यान रखा गया था। 

भारत-चीन सीमा विवाद के दायरे में 3488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत कह कर उस पर अपना दावा ठोकता है जबकि भारत का बलपूर्वक यह कहना है कि अक्साई चिन का इलाका इस विवाद के दायरे में है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने अक्साई चिन क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। आज यह मामला भले ही शांत हो गया प्रतीत होता हो परंतु एक वास्तविकता यह भी है कि चीन की आंख आज भी इस विवादित क्षेत्र से हटी नहीं है और जिन कारणों से इस क्षेत्र में विवाद आरंभ हुआ था वे काम चीन ने आज भी जारी रखे हुए हैं। इसके बाद संभवत: अगले महीने दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच सीमा वार्ता होने की संभावना है। 

जहां विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के सभी आयामों को निपटाने की संभावनाएं तलाश की जानी हैं वहीं डब्ल्यू.एम.सी.सी. की बैठक में क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन के आधार पर शांति बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया। उल्लेखनीय है कि यह बातचीत उस समय हुई है जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी रूस-भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की अगले महीने होने वाली बैठक में भाग लेने के लिए नई दिल्ली आने वाले हैं। फिलहाल इस संबंध में इतना ही कहना उचित होगा कि हालांकि यह बातचीत छोटे स्तर पर शुरू हुई है लेकिन इसके साथ जुड़े हुए मुद्दे बहुत बड़े हैं। 

उदाहरण के तौर पर शी जिनपिंग का दूसरा कार्यकाल शुरू हो जाने के कारण उसे भारत के साथ समस्याएं सुलझाने की कोई जल्दी नहीं है और दूसरी ओर चीन के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा है कि समय रहते हुए हम न केवल सीमा समस्या हल करेंगे बल्कि अजहर मसूद के विषय में भी कोई निर्णय लेंगे। साथ ही उसने भारत के परमाणु क्लब में प्रवेश के संबंध में भी विचार करने की बात कही है। स्पष्टï है कि जब इतने सारे मुद्दे सूचीबद्ध किए गए हों तो इसका मतलब यह है कि चीन कह कुछ और रहा है तथा कर कुछ और रहा है। लिहाजा भारत को इस मामले में सावधानीपूर्वक आगे बढऩे की आवश्यकता है। 

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