भारत-रूस रिश्ते अब भारत-सोवियत संघ रिश्तों जैसे

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2022 04:42 AM

india russia relations are now like indo soviet relations

रूस ने एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल डिफैंस सिस्टम की दूसरी रैजीमैंट के कुछ घटकों की भारत को सप्लाई शुरू कर दी है। हालांकि, रैजीमैंट के कुछ प्रमुख हिस्सों तथा सिस्टम्स की डिलिवरी

रूस ने एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल डिफैंस सिस्टम की दूसरी रैजीमैंट के कुछ घटकों की भारत को सप्लाई शुरू कर दी है। हालांकि, रैजीमैंट के कुछ प्रमुख हिस्सों तथा सिस्टम्स की डिलिवरी होनी अभी बाकी है। 

यह सप्लाई इस चिंता के बीच आई है कि सैन्य साजो-सामान की भारत को डिलिवरी यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के कारण प्रभावित हो सकती है। हालांकि, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने दो सप्ताह पहले भारत की अपनी यात्रा के दौरान भरोसा जताया था कि इस मिसाइल सौदे की आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं आएगी। माना जा रहा है कि जो हिस्से सप्लाई किए गए हैं उनमें सिम्यूलेटर शामिल हैं, जो ट्रेनिंग के काम आते हैं। कुछ जानकारों के अनुसार दूसरी रैजीमैंट की पूरी डिलिवरी और तैनाती में कुछ महीनों की देरी हो सकती है। 

रूस ने भारत को इस मिसाइल डिफैंस सिस्टम की पहली रैजीमैंट की खेप की डिलिवरी दिसम्बर में शुरू की थी। इस सिस्टम को भारत ने इस तरह से तैनात किया है कि यह चीन के साथ लगती उत्तरी सीमा के अलावा पाकिस्तान से लगती सीमा की सुरक्षा भी कर सके। 

एस-400 दुनिया के सबसे अत्याधुनिक एयर डिफैंस सिस्टम्स में से एक माना जाता है। यह एक लम्बी दूरी का सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम है। इसमें ड्रोन, मिसाइल, रॉकेट और यहां तक कि लड़ाकू जैट सहित लगभग सभी तरह के हवाई हमलों से बचाने की क्षमता है। यह एक साथ 400 किलोमीटर दूरी तक 72 लक्ष्यों को तबाह कर सकता है। चीन के पास भी एस-400 डिफैंस मिसाइल सिस्टम है, जिसे अब भारत द्वारा रूस से खरीद कर सीमा पर तैनात किया किया जा रहा है ताकि चीन के विरुद्ध तैयारी मजबूत की जा सके। 

भारत और रूस ने वर्ष 2016 में एस-400 मिसाइल डिफैंस सिस्टम का सौदा किया था। 5.43 बिलियन डॉलर के इस सौदे को लेकर अमरीका ने कई बार प्रतिबंधों की चेतावनी भी दी। इसके बावजूद भारत अड़ा रहा और रूस ने पिछले साल एस-400 की डिलिवरी भी शुरू कर दी थी। अब ‘काटसा’ (काऊंटरिंग अमेरीकाज एडर्वेसेरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट) के अंतर्गत अमरीकी प्रतिबंधों से निपटने के लिए भारत और रूस ने भुगतान का नया तरीका अपनाने का फैसला किया है जिसके अंतर्गत अमरीकी डालर और इंगलैंड के पौंड के स्थान पर भारतीय रुपए और रूसी मुद्रा रूबल का उपयोग किया जाएगा जिनसे अदायगी करना अधिक सुविधाजनक है। दरअसल, अमरीका के नेतृत्व में कुछ रूसी बैंकों को सोसाइटी फॉर वल्र्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंंशियल टैलीकम्युनिकेशंस (स्विफ्ट) प्रणाली से प्रतिबंधित कर दिया गया था। 

जहां भारत को अमरीका द्वारा प्रतिबंधों के साए में अपनी प्रतिरक्षा मजबूत रखने के लिए रूस से हथियारों की आपूर्ति की आवश्यकता है, वहीं रूस को मौजूदा हालात में भारत से खाद्य सामग्री की पहले से अधिक आवश्यकता है, जिसमें किराना की वस्तुएं एवं सब्जियां आदि शामिल हैं। रूसी डिपार्टमैंटल स्टोरों में किराना का सामान खत्म होने के साथ, प्रतिबंधों से प्रभावित रूस ने तत्काल आपूर्ति के लिए भारतीय खुदरा विक्रेताओं और कृषि निर्यातकों से सम्पर्क किया है क्योंकि यूरोपीय संघ ने लगातार दूसरे महीने रूस को किराना वस्तुओं एवं सब्जियों की आपूर्ति बंद रखी है। 

रूस ने अपनी खाद्य और कृषि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता न्यूनतम करने के लिए भारतीय कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्माताओं और खुदरा संघों से अस्त्राखान (दक्षिणी रूस) में स्थित ‘लोटोस’ नामक एक स्पैशल इकोनोमिक जोन में किराने का सामान, मसाले और अन्य खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने के लिए एक संयुक्त भारत-रूस कृषि औद्योगिक पार्क स्थापित करने का भी आग्रह किया है। रूसी फर्मों को भारतीय विक्रेताओं से जोडऩे के लिए मंगलवार को एक क्रेता-विक्रेता बैठक आयोजित की जा रही है। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार किराना और कृषि वस्तुओं के व्यापार की व्यवस्था करने में कोई समस्या नहीं होगी। 

रूसी डिपार्टमैंटल स्टोरों में चीनी, पास्ता और चावल सहित बुनियादी चीजें खत्म हो गई हैं। कई बड़ी रूसी कम्पनियां विभिन्न उत्पादों के लिए भारत में आपूर्तिकर्ताओं की तलाश के लिए नई दिल्ली पहुंच गई हैं। रूस में एक व्यापार संघ ने अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ से भी सम्पर्क किया है, जिसमें खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के अलावा जूते, कृत्रिम आभूषण और तैयार वस्त्र भी शामिल हैं। चूंकि दोनों देशों की सरकारें पेमैंट सिस्टम पर एकमत हो चुकी हैं, इसलिए रूस के साथ जुडऩे के इच्छुक भारतीय खुदरा विक्रेताओं और निर्माताओं की ओर से रूसी मांग प्रति जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। इसका मतलब भारत रूस में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमरीका के बाजार की जगह ले सकता है। 

सामान से लदे पहले जहाज जून की शुरूआत में भारत से रूस के लिए निकल सकते हैं। भले ही भुगतान तंत्र और समुद्री जहाजों के लिए रास्तों पर अभी पूरी स्पष्टता नहीं है लेकिन भारत में खुदरा विक्रेता इसे बिक्री बढ़ाने के अवसर के रूप में देख रहे हैं। यह समझना अति आवश्यक है कि रूस के साथ व्यापार हमें पश्चिमी देशों से अलग-थलग तो कर सकता है मगर भारत-रूस रिश्ते अब भारत- सोवियत संघ (यू.एस.एस.आर.) रिश्तों जैसे हो सकते हैं।

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