लम्बित मुकद्दमों के पहाड़ तले दबी भारतीय न्यायपालिका

Edited By ,Updated: 11 Jul, 2019 03:08 AM

indian judiciary under the mountain of pending lawsuits

देश की अदालतों में बुनियादी ढांचे के साथ-साथ नीचे से ऊपर तक जजों और अन्य स्टाफ की कमी के कारण करोड़ों की संख्या में केस लम्बित पड़े हैं। कई मामलों में तो न्याय के लिए अदालतों में आवेदन करने वाले न्याय मिलने की प्रतीक्षा में ही इस संसार से चले जाते...

देश की अदालतों में बुनियादी ढांचे के साथ-साथ नीचे से ऊपर तक जजों और अन्य स्टाफ की कमी के कारण करोड़ों की संख्या में केस लम्बित पड़े हैं। कई मामलों में तो न्याय के लिए अदालतों में आवेदन करने वाले न्याय मिलने की प्रतीक्षा में ही इस संसार से चले जाते हैं। एक वर्ष पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने केसों के निपटारे की प्रतीक्षा अवधि पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि देश में 3.3 करोड़ केस लम्बित हैं पर अब 1 जुलाई, 2019 को यह संख्या बढ़ कर 3.53 करोड़ हो गई है। 

अभी हाल ही में न्याय मिलने में भारी विलम्ब के दो उदाहरण सामने आए। पहले मामले में पत्नी से अलग होने के 24 साल बाद एक व्यक्ति को दिल्ली हाईकोर्ट से आधिकारिक रूप से तलाक मिला है। इस व्यक्ति की शादी 1988 में हुई थी परन्तु शुरू से ही पति-पत्नी में न निभने के कारण वे 1995 में अलग रहने लगे थे। इसके बाद व्यक्ति ने तलाक के लिए अर्जी दी परन्तु तलाक के लिए आवेदन करने वाला व्यक्ति तारीखों के चक्कर में ऐसा उलझा कि दूसरी शादी भी नहीं कर पाया तथा अब इस केस का फैसला हुआ है। 

इसी प्रकार के एक अन्य मामले में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक दूध वाले के 24 साल पुराने केस का फैसला सुनाया है। ये दोनों ही मामले विभिन्न कारणों से लम्बी खिंचने वाली अदालती प्रक्रिया का ही परिणाम हैं जिस पर संसद में 4 जुलाई को पेश की गई आर्थिक समीक्षा में भी ङ्क्षचता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि 5 वर्षों में देश में केसों की प्रतीक्षा अवधि समाप्त करने के लिए 8519 जजों की जरूरत है। 

हालांकि हाईकोर्ट और निचली अदालतों में तो जजों के 5535 स्थान खाली हैं तथा सुप्रीम कोर्ट में जजों का एक भी स्थान खाली नहीं है परन्तु समीक्षा में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में भी केसों की इस प्रतीक्षा अवधि को घटाने के लिए वहां 6 अतिरिक्त जजों की जरूरत है। सर्वे में न्यायपालिका की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए अदालतों में छुट्टियां घटाने और न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का सुझाव देते हुए निचली अदालतों पर भी अधिक ध्यान देने की जरूरत बताई गई है जिस पर जल्द से जल्द अमल करना जरूरी है।— विजय कुमार

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