‘महंगाई की चक्की में’ बुरी तरह ‘पिस रहा’ आम आदमी

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2016 12:10 AM

inflation common man suffering badly in the mill

दालों-सब्जियों, शक्कर, मसालों, तेल-घी, दूध आदि के भावों में भारी वृद्धि के परिणामस्वरूप आम लोगों के...

दालों-सब्जियों, शक्कर, मसालों, तेल-घी, दूध आदि के भावों में भारी वृद्धि के परिणामस्वरूप आम लोगों के घरों का बजट पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुका है और रसोई का जायका बिगड़ गया है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद महंगाई कम होने का नाम ही नहीं ले रही तथा एक वर्ष में विभिन्न घरेलू उपयोग की वस्तुओं के भावों में दोगुनी या इसके आसपास वृद्धि हो गई है।

सफेद चना 60 रुपए किलो से 155 रुपए, दाल चना 55 से 105, काला चना 55 से 95, दाल अरहर 60 से 200 रुपए प्रति किलो तक होने के बाद अब 135 रुपए के आसपास है। उड़द 60 रुपए से 165 रुपए किलो तक पहुंचने के बाद अब 115 रुपए किलो बिक रही है। बेसन 60 से 100, चावल 55 से 75, तेल सरसों 75 से 100 (ब्रांडेड 125 रुपए), चीनी 32 से 40 रुपए किलो हो गई है। केंद्र सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा देने से आटा, मैदा तथा इनसे निर्मित बेकरी उत्पादों, मिठाइयों आदि के भाव भी आसमान छूने लगे हैं। मैदा 1850 रुपए से बढ़ कर 2050 रुपए प्रति किं्वटल हो गया है।

सब्जियों के भावों में 30 से 60 प्रतिशत तक तेजी आ गई है।ं लौकी जैसी सामान्य सब्जी 60 रुपए किलो बिक रही है जबकि अच्छा टमाटर 100 रुपए प्रति किलो तक पहुंचने के बाद इस समय लगभग 75 रुपए किलो है। आलू 5 रुपए से बढ़ कर 25 रुपए किलो तक जा पहुंचा है। एक ओर श्रमिक वर्ग ने मजदूरी का रेट बढ़ा दिया है तो दूसरी ओर डाक्टरों ने भी अपनी फीस दोगुनी कर दी है जो डाक्टर पहले 100 रुपए लेते थे वही अब 200 रुपए व 200 रुपए लेने वाले डाक्टर 500 रुपए फीस लेने लगे हैं। आम लोगों के लिए इलाज करवाना भी कठिन होता जा रहा है।

मकान बनाने के सामान रेत-बजरी का भाव जो पहले 500 रुपए प्रति 100 फुट था, वह अब बढ़ कर 3000 रुपए हो गया है। इसी प्रकार सीमैंट, लोहा और अन्य आवश्यक वस्तुओं के मूल्य में भी भारी वृद्धि हो चुकी है। यह भी एक विडम्बना ही है कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है परन्तु हमारी सरकार पैट्रोल और डीजल के मूल्यों में 1 रुपए अथवा 50 पैसे की नाममात्र राहत ही देती है।

इस बीच ‘इन एंड ब्रैड स्ट्रीट’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि तथा 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने की वजह से महंगाई दर और ऊपर जाएगी जिन्हें लागू करने से सरकारी कोष पर प्रति वर्ष 1.02 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। उक्त रिपोर्ट के अनुसार जुलाई महीने के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रा स्फीति 5.7 से 5.9 के बीच रहेगी जबकि ग्लोबल फाइनांशियल सॢवसिज कम्पनी एच.एस.बी.सी. ने अगले 2 महीनों में परचून महंगाई दर 6 प्रतिशत से अधिक रहने का अनुमान व्यक्त किया है।

हालांकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से अनिवार्य खाद्य वस्तुओं पर स्थानीय टैक्स हटाने तथा जमाखोरों पर नजर रखने का अनुरोध किया है परन्तु अब तक तो इसका कोई परिणाम देखने में नहीं आया। दालों की कीमतें कम करने के लिए जहां मुनाफाखोरों द्वारा इनके व्यवसाय का एकाधिकार समाप्त करने की आवश्यकता है वहीं हमारे खाद्यान्न प्रबंधन ढांचे में त्रुटियों का निवारण करना भी आवश्यक है। यही नहीं जब थोक बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतें शिखर पर जाने के बाद कुछ घट भी जाती हैं, तब भी परचून किरयाना व्यापारी कीमतें नहीं घटाते जिससे आम लोगों को कीमत कम होने पर भी राहत नहीं मिल पाती, यह रुझान भी समाप्त होना चाहिए।

हमारे देश में खाद्यान्नों, फलों-सब्जियों आदि अनिवार्य जीवनोपयोगी वस्तुओं के समुचित भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण भी भारी मात्रा में खाद्य पदार्थ खुले में पड़े-पड़े या गोदामों में गर्मी या सीलन अथवा इन्हें संभालने वाले कर्मचारियों की लापरवाही के कारण नष्टï हो जाते हैं। अत: सरकार द्वारा महंगाई को रोकने के लिए अन्य प्रतिरोधक पग उठाने के साथ-साथ सभी किस्म के अनाज के भंडारण और इसे सुरक्षित रखने की समुचित व्यवस्था करने  और इनकी जमाखोरी पर रोक लगाने के लिए कड़ी चौकसी बरतने की अत्यधिक आवश्यकता है। —विजय कुमार

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