भाजपा में आंतरिक ‘लोकतंत्र का क्षरण’ और नेताओं में ‘जूतम पैजार’

Edited By ,Updated: 08 Mar, 2019 04:02 AM

internal erosion of democracy in bjp and zootam pajar in leaders

अब जबकि शीघ्र होने जा रहे लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने अपनी सत्ता बचाने के लिए और विरोधी दलों ने इसे हराने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, भाजपा के कुछ शुभचिंतक पार्टी में घर कर गई त्रुटियों के बारे में पार्टी नेतृत्व को लगातार सचेत कर रहे हैं परंतु...

अब जबकि शीघ्र होने जा रहे लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने अपनी सत्ता बचाने के लिए और विरोधी दलों ने इसे हराने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, भाजपा के कुछ शुभचिंतक पार्टी में घर कर गई त्रुटियों के बारे में पार्टी नेतृत्व को लगातार सचेत कर रहे हैं परंतु अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने कृत्यों से पार्टी की छवि खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

नवीनतम मामले में 1984 के लोकसभा चुनावों में आंध्र प्रदेश के हनमकोंडा में नरसिम्हा राव को हरा कर पार्टी का खाता खोलने वाले सांसद चंदू पतला जंगा रैड्डी ने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के क्षरण पर सवाल उठाए हैं। श्री रैड्डी ने कहा है कि ‘‘देश को आज भाजपा की जरूरत है परंतु विश्व की इस सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी में पिछले कुछ वर्षों के दौरान आंतरिक लोकतंत्र कमजोर हुआ है तथा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को समय से पहले ही दरकिनार कर दिया गया है।’’ पार्टी के मौजूदा हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘बेशक मैं नाराज हूं लेकिन मैं क्या कर सकता हूं। मैं अब 84 वर्ष का हो गया हूं और कोई मेरी बात नहीं सुनता। मैंने अमित शाह से मिलने का समय लिया था लेकिन दो मिनट में ही हमारी मुलाकात समाप्त हो गई।’’

गुजरात की भांति आंध्र प्रदेश में पार्टी द्वारा अपना विस्तार न कर पाने संबंधी एक प्रश्र के उत्तर में तीन बार के विधायक श्री रैड्डी ने कहा कि इसके लिए पार्टी के उस समय के नेता जिम्मेदार हैं जिन्होंने एन.टी.आर. के नेतृत्व वाली तेलगू देशम पार्टी के साथ गठबंधन करने का निर्णय लिया था। श्री रैड्डी के उक्त कथन की पुष्टि करते हुए पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का क्षरण होने और सहनशीलता घटने के दो उदाहरण हाल ही में सामने आए हैं। पहला उदाहरण रांची का है जहां भाजपा विधायक साधू चरण महतो के विरुद्ध एक कम्पनी के मैनेजर तथा स्टाफ को पीटने के आरोप में 4 मार्च को पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई गई है।

इससे भी अधिक बड़ा और शर्मनाक उदाहरण उत्तर प्रदेश का है जहां संत कबीर नगर स्थित कलैक्ट्रेट सभागार में जिला योजना समिति की बैठक के दौरान भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी विकास कार्यों के शिलान्यास पट्टा पर अपना नाम न लिखा देख कर विधायक राकेश सिंह बघेल से भिड़ गए और दोनों में बहस शुरू हो गई।सांसद ने जब इंजीनियर ए.के. दुबे से पूछा कि करमैनी-बेलौली बांध के मुरम्मत कार्य के शिलान्यास पट्ट पर विधायक का ही नाम क्यों है तो विधायक राकेश सिंह बघेल बोल उठे कि ‘‘जो पूछना है मुझसे पूछें। इंजीनियर से नहीं।’’ जवाब में शरद त्रिपाठी ने कहा कि ‘‘तुम्हारे जैसे तमाम विधायक मैंने देखे हैं, तुमसे क्या पूछना।’’ इस पर विधायक राकेश सिंह ने जोश में आकर सांसद की ओर इशारा करते हुए कहा ‘‘जूता निकालूं क्या?’’

यह सुनते ही सांसद भी आपा खो बैठे और इससे पहले कि कोई बीच-बचाव करता, प्रभारी मंत्री आशुतोष टंडन उर्फ गोपाल जी के सामने ही शरद त्रिपाठी इस कदर गुस्से में आ गए कि अपना जूता निकाल कर विधायक पर टूट पड़े और ताबड़तोड़ उन पर कई जूते बरसा दिए। देखते ही देखते कलैक्ट्रेट का सभागार युद्ध का मैदान बन गया और सुरक्षा कर्मियों द्वारा बीच-बचाव करने के दौरान विधायक ने भी सांसद पर कई मुक्के रसीद कर दिए और दोनों एक-दूसरे को अपशब्द बोलने लगे। यह तो गनीमत है कि इलैक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया पर इस घटना को लगातार दिखाए जाने के बाद भाजपा नेतृत्व इनके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए विवश हुआ और प्रदेश भाजपाध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे ने दोनों नेताओं को लखनऊ में तलब कर लिया है। जैसा कि हम समय-समय पर लिखते रहते हैं कि भाजपा नेताओं के ऐसे कृत्य पार्टी नेतृत्व के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। पार्टी में लोकतंत्र व अनुशासन का क्षरण चिंताजनक है। इससे पार्टी की छवि को आघात लग रहा है और आने वाले चुनावों में पार्टी को इसका नुक्सान हो सकता है।—विजय कुमार

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